सत् चित् आनंद का विचार जीवन का करता है उद्धार : सत्यबोधानन्द महाराज

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आध्यात्मिक जगत की प्रसिद्ध विभूति एवं कुमाऊं के प्रसिद्ध संत स्वामी श्री सत्यबोधानन्द महाराज आध्यात्मिक ऊर्जा के अद्भुत भण्डार है शनिवार को भवाली भीमताल के मध्य फरसौली क्षेत्र में वाहन पलटने से सड़क दुर्घटना में घायल हुए श्री महाराज जी का इन दिनों नीलकण्ठ हास्पिटल हल्द्वानी में उपचार चल रहा है उनसे मिलने के लिए उनके शिष्य जन एवं शुभचिंतक उनका हालचाल जानने के लिए हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं बारहाल उनके स्वास्थ्य में धीरे – धीरे सुधार है लेकिन उनका आध्यात्मिक आवरण संकट की इस घड़ी में भी लोक मंगल का पावन संगम बनी हुई है जो भी इनसे मिलने आ रहा है आध्यात्म ज्ञान की कुछ न कुछ भेंट साथ ले जा रहा है

हास्पिटल में हुई एक मुलाकात में उन्होंने ईश्वर का धन्यवाद अदा करते हुए अपनें अनुभव साझा किये तथा बताया कि ईश्वरीय कृपा एवं गुरुदेव के आशीर्वाद से बडे से बड़ा संकट सहज में ही टल जाता है आगे अपने पुराने अंदाज में सांसारिक चर्चाओं से कोसों दूर आध्यात्मिक चर्चा करते हुए उन्होंने कहा मानव का यह जीवन बड़े ही सौभाग्य से प्राप्त होता है इसलिए इसे सदैव परमार्थ के लिए लगाना चाहिए यह शरीर हमें जरूरत मंदों की मदद और भलाई करने के लिए प्राप्त हुआ है। उन्होने कहा परोपकार ही सबसे बड़ा धर्म है जीवन में जब भी दु:ख या संकट की घड़ी आए तो उसका डटकर मुकाबला करना चाहिए तथा सुख और दुख में सम प्रकृति का आचरण अपना कर सदैव ईश्वर का भजन करते रहना चाहिए समय परिवर्तन शील है सुख और दुख आते रहते है लेकिन भजन नहीं छूटना चाहिए
श्री महाराज ने कहा संकट व विपत्ति काल में भी ईश्वर के नाम का सहारा आत्म बल को प्रदान करता है गुरु व ईश्वर के प्रति अपने विश्वास को सदैव मजबूती प्रदान चाहिए। वहीं हर कष्ट और दुखों का निवारण करते हैं। विश्वास को डिगने नहीं देना चाहिए स्वामी सत्यबोधानन्द महाराज जी ने कहा आध्यात्म के सहारे ही ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है और आध्यात्मिकता से ही ईश्वर की शक्ति का एहसास किया जा सकता है। उन्होने कहा आध्यात्म ही एक ऐसा मार्ग है जिससे मन एकाग्रचित एवं शांतचिंत रहता है और यह हमारे भीतर भक्ति भावना को प्रबल करता है

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उन्होने कहा मनुष्य जीवन का लक्ष्य परमात्मा को प्राप्त करना है धर्म के बिना मनुष्य का जीवन पशु समान है, आध्यात्म के द्धारा ही हम ईश्वर तक पहुंचा जा सकता हैं। श्री महाराज ने कहा हमें समझना होगा कि हम शरीर नहीं आत्मा है शरीर तो परमात्मा को पाने का साधन है चेतन आत्मा ही है। परमात्मा रूपी आत्मा के लिए जीवन समर्पित करना ही जीवन की सार्थकता है जो सदा है सदा था सदा रहेगा वही शाश्वत है वही अमर आत्मा,परमात्मा रूप में हमारे घट में ही विराजमान है।उन्होनें कहा जीवन की निरन्तर परिवर्तनशील परिस्थितियों व अवस्थाओ में ज्ञानी पुरुष के मन के समत्व का सतुलन बना रहना चाहिए आत्मा सच्चिदानन्द स्वरूप है।

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वारहाल इन दिनों नीलकंठ हॉस्पिटल हल्द्वानी में स्वास्थ्य लाभ ले रहे श्री सत्यबोधानंद महाराज आत्मनिष्ठ भाव से संकट की इस घड़ी में भी केवल आध्यात्म चितंन में रमें हुए है

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