आस्था व भक्ति का संगम है,थावे वाली देवी का दरबार थावे(गोपालगंज)बिहार।नवरात्री के पावन अवसर पर खासतौर से शक्ति का पूजन होता है देश के विभिन्न शक्तिपीठ इस पावन अवसर पर जहां आस्था व भक्ति के रंग में रगें रहते है।वही बिहार के गोपालगंज क्षेत्रं में स्थित थावे की भवानी का दरबार भी आस्था व भक्ति के अलौकिक संगम से सरोबार परम पावन व निर्मल आस्था का केन्द्र भगवती भवानी का यह दरबार भक्तजनों के लिए जगतमाता की ओर से अद्वितीय भेटं है।
कहा जाता है,कि जो भी ,श्रद्वालुभक्तजन यहां पहुंचकर माँ के चरणों में आराधना के श्रद्वापुष्प अर्पित करता है,वह परमकल्याण का भागी बनता है उसके जन्मजन्मान्तरों के पापों का हरण हो जाता है।यह जाग्रत पीठ युगों युगों से परमपूज्यनीय व पावन आस्था का केन्द्र है। भारतभूमि में शक्तिपीठों की एक लम्बी श्रृखंला मौजूद है।बिहार की भूमि में भी परम पावन आस्था के अनेकों शक्तिस्थल आस्था व भक्ति का संगम बनकर आगन्तुको को कृतार्थ करते है।थावे वाली माता का दरबार आस्थाओं के तमाम केन्द्रों में सर्वाधिक जाग्रत पीठ माना जाता है।गोपालगंज जिले में स्थित माँ भवानी के इस दरबार में वर्ष भर भक्तों की भीड़ रहती है।लेकिन नवरात्रीयों के पर्व पर यहां अपार संख्या में देश विदेश से भक्तजन पधारते है।अौर अंसख्य संख्या में माँ से आशीर्वाद प्राप्त करते है। दया की सागर थावे माता की अपरम्पार महिमां के आगे समस्त ब्रहमाण्ड़ नतमस्तक है।सम्पूर्ण मनोरथों को पूर्ण करनें वाली यह देवी सदा अपनें भक्तों की रक्षा करती है।
शक्ति भूमि बिहार के गोपालगंज जनपद मुख्यालय से लगभग छह किलोमीटर की दूरी पर सीवान जाने वाले मार्ग पर थावे नाम का एक स्थान है, जहां निरंतर भक्ति रस की धारा बहती है।इसी पावन भूमि पर भगवती थावे का दरबार विराजमान है,जो प्राचीन काल से पूज्यनीय है।
कहा जाता है,कि रहषु नाम का एक महान् देवी भक्त यहां निरंतर भगवती की आराधना में लीन रहता था।उसके तप के प्रभाव से माता कामाख्या से स्वंय चलकर थावे आयी इस विषय में लम्बी कथा है। बारहाल दंतकथाओं के अनुसार देवी मां का आगमन कामाख्या से चलकर कलकत्ता हुआ जहां वे महाकाली के रुप में प्रतिष्ठित हुई पटना में माई ने पाटन देवी का रुप धारण किया।बाद में आमी होते हुए अपनी अद्भूत लीला से मातेश्वरी परमेश्वरी थावे पहुंचीं और अंचल आस्था का केन्द्र बनकर पूजित हुई।और रहषु के मस्तक को विभाजित करते हुए भक्तों के सामने प्रकट हुई।पौराणिक कथाओं के अनुसार यह कहा जाता है।कि कभी इस क्षेत्रं में राजा मनन सिंह का विशाल सामराज्य था,जो हथुवा के राजा थे।गोपालगंज क्षेत्र के एक विशाल भाग को तब हथुवा कहा जाता था।अौर थावे क्षेत्र इसी विशाल राज्य का एक हिस्सा था।और मनन सिंह उस दौर में यहां के राजा हुआ करते थे।थे तो देवी भक्त लेकिन अहम् के वशीभूत होकर वे स्वंय को देवी माँ का सबसे बड़ा उपासक मानते थे। अन्य देवी भक्तों को वे सदा ही उपहास भरी दृष्टि से देखा करते थे.।एक बार उनके संज्ञान में आया कि,मेरे ही राज्य का रहषु बहुत बड़ा देवी भक्त है।राजमद में चकनाचूर राजा ने उसे ढ़ोगी और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ देवी भक्त बताते हुए सैनिको को आदेश दिया कि उसे पकड़कर शीघ्र ही राजदरबार में पेश किया जाए।राजा के आदेश पर सैनिक जनों ने रहषु को पकड़कर राज दरबार में पेश कर दिया,
उनके आने पर अंहकार के वशीभूत राजा ने रहषु को नीचा दिखानें के लिए गर्व भरे स्वर में हुंकार भरते हुए कहा कि तू महाढ़ोगी है। यदि तू वास्तव में मां का सच्चा व परम भक्त है तो उन्हे मेरे सामने प्रकट कर अन्यथा मृत्यु के लिए तैयार हो जा महान् देवी भक्त रहषु स्वामी ने राजा को भांति भाति प्रकार से समझाकर कहा राजन् माँ की कृपा पाकर अहम् का त्याग करों वो सदा सहाय है।इस तरह बार बार समझाने पर भी राजा मनन सिंह का अहम् नही हटा उनका अंहकार बढ़ता चला गया।कहा जाता है,कि अहम् के मद में चकनाचूर राजा ने देवी भक्त रहषु को गर्वीले स्वर में अन्तिम चेतावनी देते हुए कहा यदि तूने माँ को नहीं बुलाया तो तेरे साथ साथ समूची थावे मृत्युदण्ड़ की भागी होगी।अब माँ को पुकार कर बुलाने के शिवाय रहषु के पास कोई चारा नही था।महान् देवी भक्त इस रहस्य को भी जानता था।माँ प्रकट होगी तो ।लेकिन उसके शरीर का भेदन करके उसे इस देह का परित्याग करना होगा यदि वो माँ को नहीं पुकारता है,तो भी राजमद में चूर इस राजा के हाथों निदोर्ष जनता मारी जाती है।सो लोककल्याण के पावन उदेश्य को सामनें रखकर उसनें मातेश्वरी महामाया भगवती कामाख्या को पुकारना आरम्भ किया
ममतामयी,करूणा की सागर दया की देवी ने अपनें भक्त की पुकार सुनकर अपनी अद्भूत लीला बिखेरनी शुरु की माँ कामाख्या से चली और कलकत्ता में काली का रुप,पटना में पाटन देवी बनकर आमी में भगवती दुर्गा के रुप में प्रतिष्ठित होकर थावे में रहषु के माथे को भेदन कर प्रकट हुई।और भक्तों को दर्शन देकर सबका कल्याण करते हुए सदा के लिए यही प्रतिष्ठित हो गयी कहते है इस घटना के पश्चात् राजा के महल ढह गये उनका अहम चूर हो गया वे मृत्यु को प्राप्त हो गये रहषु भी सदा के लिए अमर हो गये। माँ का यह दरबार सदियों से पावन आस्था व भक्ति का संगम है।यहां माँ का भव्य मंदिर है।अपने भक्त रहषु की कीर्ति भी माँ ने सदा के लिए अमर कर दी कुछ ही दूरी पर रहषु भगत का दरबार है।इस मंदिर,दरबार के दर्शन के बाद ही थावे माँ के दर्शनों का फल प्राप्त होता है।वर्ष भर भक्तों का यहां ताता लगा रहता है,थावे आगमन से पूर्व जहां पर माँ ने विश्राम लीला की वह स्थान घोड़ाघाट के नाम से प्रसिद्व है।यहां पर भी एक सुन्दर,भव्य मन्दिर है ।
नवरात्रि,शिवरात्रि,मकर नवरात्रि के अवसर पर भगवती के इस दरबार की भव्यता और बढ़ जाती है।स्थानीय वाशिदें ही नही देश दुनियां में इनके असख्यँ भक्त कोई भी कार्य करनें से पूर्व थावे की माँ भगवती का स्मरण करते है।दूर दराज क्षेत्रों की कामकाजी महिलायें अपनें परिजनों व नन्हें मुन्हें बच्चों के साथ समय पाकर थावे की देवी माँ के दर्शन करनें अक्सर आती रहती है।माँ थावेश्वरी को कामाख्या देवी के रुप में भी पूजा जाता है बाबा बैजनाथ के दर्शन को जानें वाले लोग माँ थावेश्वरी से आशीर्वाद लेकर ही आगे बढ़ते है।
मंदिर के समीपस्त ही राजा मनन सिंह के महल का खंडहर दिखाई देता है। जगत का कल्याण करनें वाली हे?जगदीश्वरी,थावेश्वरी माता परमेश्वरी,हे ईश्वरी तेरी सदा जय होवे* ///////रमाकान्त पन्त*///
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