हिमालय में बाबा विश्वनाथ जी का यह है गुप्त क्षेत्र, अद्भूत है यहाँ की महिमां

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रूद्रप्रयाग गुप्तकाशी।बाबा विश्वनाथ जी की गुप्त नगरी गुप्तकाशी की महिमा सदियों से पूज्यनीय है,

आध्यात्मिक लिहाज से यह स्थान जितना महत्वपूर्ण है तीर्थाटन की दृष्टि से उतना ही उपेक्षित भी जितना प्रचार प्रसार बद्री…केदार का है उतना गुप्तकाशी का नही जिस कारण यह क्षेत्र गुमनाम सा लगता है भगवान भोलेनाथ जी का यह दरबार केदारमण्डल क्षेत्र में स्थित है रमणीक पर्वत मालाओं के मध्य शिवजी का यह गुप्त स्थान मोक्षप्रदान करने वाला कहा गया है बाबा विश्वनाथ की विराट महिमां को समेटे इस शिव दरबार की महिमा का बखान शिव पुत्र स्कन्द ने सबसे पहले महर्षि अगस्त्य ऋषि को बताते हुए कहा हे अगस्त्य कैलाश भूमि पर एक मोक्षदायक श्रेष्ठ क्षेत्र है जो काशी के समान परम पूज्जयनीय व पावन है यहां जो भी मनुष्य भक्ति भाव से शंकर भगवान की पूजा अर्चना करता है वह परम कल्याण को प्राप्त होता है

स्कन्द पुराण के केदार खण्ड में विस्तार से गुप्तकाशी का वर्णन मिलता है इसको हिमालय का वाराणसी कहा गया है केदार के दक्षिण भाग में छह योजनों की दूरी पर दो योजनों में फैला यह काशी दिव्यमुक्त क्षेत्र है जहां अनेकों ब्रहमर्शिगण महेश्वर का ध्यान करते हुए महेश्वरत्व को प्राप्त हुए जिनके मस्तक अर्धचन्द्र से अंकित हो गये

यह स्थान गुप्ततम है इसलिए इसका नाम गुप्तकाशी पडा महर्षि अगस्त्य जी को स्कन्द जी ने गुप्तकाशी की महिमा बताते हुए केदारखण्ड के अध्याय 200 में कहा विश्वनाथ के संस्मरण से परम विपदाओं का हरण हो जाता है ‘यस्या….संस्मरणादेव नष्यन्ति परमापद….’ श्लोक 17 अ.200 यहां सिद्वों के द्वारा भगवान षिव की स्तुति की गयी इसलिए इस स्थान को सिद्वेश्वर भी कहा जाता है यहां गंगा व यमुना ईश्वर में गुप्त हाकर रहती है जो मनुष्य यहां स्नान करता है वह दुर्लभ मुक्ति का भागी बनता है विश्वनाथ जी की इस नगरी की महिमा पर प्रकाश डालते हुए स्कन्द ने अगस्त्य जी से कहा

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द्विज श्रेष्ठ। जो मनुष्य गुप्तकाशी में सुवर्ण, रत्न, वस्त्र, भुमि दान करता है वह अक्षय पुण्य को पाता है महाभाग अगस्त्य जो माघमास में मकर राशि में सूर्य के स्थित होने पर यहां स्नान करता है तो समझों उसने गंगासागर आदि सभी तीर्थो में स्नान कर लिया ,और सात दीपों वाली रत्नपूरित पृथ्वी दान कर दी इन्ही क्षेत्रों में राजा नल ने भी राज्यसुखों को त्यागकर शिवजी की तपस्या की व माता राजराजेश्वरी की अर्चना की मन्दाकिनी के दूसरे तट पर स्थित नलकुण्ड में स्नान करके मनुष्य अपने जन्मभर के पापों को जला डालता है

यही राजा मान्धाता ने भी तपस्या करके परम सिद्वियों को प्राप्त किया यह क्षेत्र बाणासुर की तपोभूमि भी कही जाती है पुराणों के अनुसार गुप्तकाशी के पश्चिमम दिशा भाग में बाणासुर ने भगवान भोलेनाथ का ध्यान करते हुए अजेयत्व का वरदान पाया बाणेश्वर महादेव का यह शिवलिग समस्त पाप के भय को दुर करने वाला कहा गया है ।इसी भूभाग की पर्वतमालाओं में फेत्कारणी पर्वत पर दुर्गादेवी का प्राचीन मंदिर काफी प्रसिद्व है।

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महादेवी के इस महास्वरूप ने महान् कष्ट से ब्याप्त संसार को दुर्गम भय से बचाकर संसार का उद्वार किया यहां जो भी भक्तजन निष्ठापूर्वक दुर्गा माता की आराधना करता है वह जीवन का आनन्द लेते हुए देवदुर्लभ उत्तम भोगों को भोगकर अन्त में मोक्ष को पा जाता है अगस्त्य ऋषि को बताते हुए स्कन्द जी ने पुराणों में कहा है,

वहां से पूर्वोतर भाग में दो कोस पर द्वैतभेद को नष्ट करने वाली महादेवी विख्यात है उसके नीचे के प्रदेश में दानवती नाम की नदी है जिसकी महिमा का वर्णन अतुलनीय है कुल मिलाकर वाराणसी तुल्य दो योजन का यह क्षेत्र परम पावन है ,राजा नल,वाणासुर,राजा मान्धता,सहित गुप्तकाशी की कृपा पाण्डवों पर भी थी अनेक दतंकथाओं व प्रचलित मान्यताओं के अनुसार महाभारत का युद्व समाप्त होने के पश्चात् पाण्डव काफी दुखी हुए उनके दुख का कारण महाभयंकर नरसहांर था अपनी ब्यथाभरी पीडा को लेकर वे योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण एंव महर्षि वेद ब्यास जी के पास पहुचे श्रीकृष्ण व वेद ब्यास जी ने उनसे कहा भगवान आषुतोष कल्याण के देवता है उन्ही की कृपा से आप लोग परम विश्रातिं को पा सकते है ,आपको उनकी तपस्या के लिए हिमालय की ओर जाना होगा हिमालय के इस क्षेत्र में पहुचकर उन्हें शिवजी की लीला का अहसास हुआ लेकिन यहां उन्हें शिवजी के प्रत्यक्ष दर्शन न हो सके षिवजी यहां गुप्त हो गये क्योकि भोलेनाथ जी तो उन्हें केदारमण्डल में अपनी लीला के विभिन्न पडावों से अवगत करा रहें थे शिवजी के गुप्त होने के कारण यह क्षेत्र गुप्त काशी कहा जाने लगा कहा जाता है कि यहा मातां पार्वती से भगवान शंकर ने गुप्त विवाह का भी प्रस्ताव रक्खा था मान्यता यह भी है कि मुगल सम्राट औरंगजेब ने वाराणसी स्थित बाबा विष्वनाथ जी के मंदिर को तहस नहस करना चाहा तो काशी विश्वनाथ के ज्योर्तिलिगं की इसी स्थान पर गुप्त रूप से पूजा की गई जिस कारण इसका नाम गुप्त काशी पडा कुल मिलाकर गुप्तकाषी की महिमां अपरम्पार है यहां भगवान भोलेनाथ जी का विशाल एवं भव्य मंदिर है आसपास अनेक मंदिरों की अनुपम छटाएं है अनेक षिवालयों की लम्बी श्रृखला मौजूद है ।हिमालय की वादियों में उत्तराखण्ड के रूद्रप्रयाग जनपद में स्थित गुप्तकाषी तक पहुचनें के लिए देहरादून से श्रीनगर होते हुए रूद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि होते हुए यहां तक पहुचां जा सकता है

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