(कुमार कृष्णन-विभूति फीचर्स)
संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर की पुस्तक ‘ रंगमंच के सामाजिक सरोकार’ समकालीन रंगपरिदृश्य में हस्तक्षेप की तरह है। इसमें रंगमंच के उन पहलुओं पर विचार किया गया है जिन पर अमूमन कम चर्चा होती है।
राज्य सभा सांसद महुआ माजी ने उषा गांगुली, जात्रा आदि का उदाहरण देते हुए कहा ” अनीश अंकुर ने रंगकर्म के अंदर के उठी बहसों, प्रवृत्तियों और परिघटनाओं पर कलम चलायी है। इन परिघटनाओं की पृष्ठभूमि में किस किस्म की समाजी व सियासी शक्तियाँ काम करती रही है इस ओर इशारा किया गया है।”
साहित्यकार और आलोचक अरुण कुमार ने कहा ” इस पुस्तक में बिहार रंगमंच पर काफी अच्छी सामग्री है। आलेखों, टिप्पणियों के अलावा रंगजगत के प्रमुख निर्देशकों व अभिनेताओं के दुर्लभ साक्षात्कार हैं। ये साक्षात्कार पाठकों को रंगकर्म के कई नए आयामों से परिचित करायेंगे।”
प्रकाश देवकुलिश ने कहा कि ” ‘रंगमंच के सामाजिक सरोकार’ हमें भारतीय और विश्व रंगमंच की उन शख्सियतों से परिचित कराती है जिनके बगैर रंगमंच सम्बन्धी कोई बातचीत पूरी नहीं होती। ऐसे व्यक्तियों का रंगकर्म किन विचारों से प्रभावित रहा है, उसे यह पुस्तक सामने लाने की कोशिश करती है।”
डॉ. उर्वशी ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ” इस किताब से अध्यापन कार्य में सुविधा होगी। बिहार विशेषकर पटना रंगमंच हिन्दी क्षेत्र में अपनी सृजनात्मक गतिविधियों के अलावा बौद्धिक और सामाजिक हस्तक्षेप के लिए भी जाना जाता है। पर इसके बारे में लिखा बहुत कम गया है। पुस्तक इस अभाव को पूरा करने की दिशा में एक कदम है।
पुस्तक लेखक अनीश अंकुर ने अपने संबोधन में कहा ” शेक्सपीयर ने अपने नाटकों में यह सवाल उठाया कि यह जीवन जीने लायक है या नहीं। टु बी और नॉट टू बी। 1857 के महाविद्रोह के दौरान जब भारतीयों का नृशंसता से दमन किया गया तब तक पहला विद्रोह नाटक के माध्यम से शुरू हुआ। नाटकों से पैदा होने वाले विरोध का मुंह बंद करने के लिए अंग्रेज ड्रामेटिक परफॉर्मेंस एक्ट, 1876 लाये। आज तक यह काला कानून भारत के कुछ हिस्सों में बरकरार है। हबीब तनवीर ने नाटक में अरस्तू के थ्री यूनिटीज के सिद्धांत के बदले रस की अवधारणा को लाकर भारतीय रंग पद्धति की खोज की। इसकी प्रेरणा उन्हें ब्रेख्त से मिली। ”
एम. जेड खान के अनुसार ” अनीश अंकुर ने रंगमंच से जुड़े अपने उन साथियों को भी याद किया है जो असमय इस दुनिया से चले गए परंतु अपने छोटे से जीवन में बिहार के जनपक्षधर रंगकर्म पर अपनी अमिट छाप छोड़ गए है।”
प्रकाश सहाय ने कहा ” यह पुस्तक न सिर्फ रंगकर्मियों के लिए बल्कि सामाजिक-राजनीतिक सरोकारों वाले हर व्यक्ति के लिए उपयोगी साबित हो सकती है।”
रांची में आयोजित पुस्तक मेले में संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर की पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में लेखिका व राज्यसभा सांसद महुआ माजी मौजूद थी ।
कार्यक्रम में कथाकार पंकज मित्र, कवि प्रेम रंजन अनिमेष, विनोद नारायण सिंह, डॉ. रेणु दीवान, शशि, सच्चिदानंद, महुआ माजी ,अरुण कुमार, प्रकाश देवकुलिश, एम. जेड खान, डॉ. उर्वशी , प्रकाश सहाय ,चित्रकार अजीत दुबे, आनंद कुमार, प्रमोद कुमार झा, जी.बी पांडे और वैभवमणि त्रिपाठी भी उपस्थित थे।
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