केदारमण्डल के बंगलाक्षेत्र में स्थित भिल्लेश्वर महादेव का मन्दिर पौराणिक काल की विराट आध्यात्मिक गाथा को अपने आप में समेटे हुए है माँ बंगलामुखी के सानिध्य में स्थित भिल्लेश्वर महादेव की महिमां का वर्णन पुराणों में भी मिलता है पुराणों में यह स्थान
सकल पापों का नाश करने वाले भिल्लक्षेत्र के नाम से प्रसिद्ध है इस स्थान की महिमां का बखान करते हुए स्वयं महादेव ने माता पार्वती से कहा है भिल्ल क्षेत्र मैं तुम्हारे साथ भिल्ल के रूप में लीला कर चुका हूँ यह क्षेत्र एक अत्यन्त सुन्दर पर्वत है इसी पर्वत से निकलने वाली रमणीक गंगा भिल्लांगणा नाम से प्रसिद्ध एवं महापापों का नाश करनेवाली नदी है । इस क्षेत्र की महान् महिमां का वर्णन करते हुए आगे महादेव ने महादेवी से कहा है भिल्लेश्वर नाम से जो मुझे पूजता है वह धन्य है दर्शन और स्मरण से महापाप की कोटि में रहने वाला मनुष्य भी शुद्ध हो जाता है। मेरी प्रिये! वहाँ भिल्लरूपी महादेव काले कम्बल का वस्त्र धारण करके मध्य रात्रि में नाना भिल्लगणों के साथ रहते है वहाँ भिल्लों, भीलों के बजाये हुए बाजों के शब्द सुनायी पड़ते हैं। भम्भ- भम्भ शब्दों का नाद होता रहता है और इसी प्रकार नगाड़ों के शब्द सतत होते रहते हैं । उसके आँगन में अनेक रूपधारी भिल्ल विचरण करते हैं। भिल्लांगण में उत्पन हुई
(भिल्लांगणा) नदी में जो स्नान करता है, वह शिव का ही शरीर धारण करता है । यह अत्यन्त गोपनीय पीठ है जिसे पुराणों में भी छिपाया गया है। जो वहाँ आहार-विहार त्यागकर दस रात जप करता है, उसे मन्त्र सिद्धि की प्राप्ति हो जाती है भिल्लेश्वर क्षेत्र में भक्तिपूर्वक कामेश्वरी देवी का पूजन करके मनुष्य दस अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त करता है। कामेश्वरी देवी के दक्षिण भाग में बहुत बड़ा शिवलिंग है जिसके दर्शन से ही मनुष्य शिवभक्त हो जाता है। उसके ऊपर आधे कोस में सुरसुता नाम की नदी है जहाँ पहले, प्रिये। देवि मैंने पवित्र भस्म धारण किया था। उस भस्म को धारण करने के लिए इन्द्र आदि देवता उस नदी के किनारे आये थे और उस (नदी) को कन्या मान लिया था। उसमें स्नान करके मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल लाभ करता है उसके दक्षिण भाग में मातलिका नामक शिला है। उसका स्पर्श करने से इन्द्रपुरी में वास मिलता है भिल्लांगण महाक्षेत्र है।
उसका स्मरण करने से पापों का क्षय होता है। वह क्षेत्र पाँच योजन चौड़ा और चार योजन लम्बा है वह समस्त पापों का हरण करनेवाला पवित्र तीर्थ है। उसका दर्शनकरने से शिवसायुज्य मोक्ष प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस क्षेत्र की प्रदक्षिणा करता है, मानों उसने सातों द्वीपवाली पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर ली। यहाँ जो कर्म किया जाता है, उसका अनन्तगुण फल मिलता है इसलिए सब प्रकार के प्रयत्न से इस तीर्थ में पाप से बचना चाहिए। अपनी उन्नति चाहनेवाले को यहाँ पुण्य ही करना चाहिए इस प्रदेश में नाना प्रकार की मणियाँ तथा सोने की खानें मिलती हैं, उससे उत्तम दूसरा कौन प्रदेश भूतल पर हो सकता है यहाँ अनेक शिवलिंग तथा सैकड़ों नदी की धाराएँ हैं, जो पवित्र एवं पुण्यप्रद हैं।
विस्तार से इनका वर्णन कौन कर सकता है
इस तरह से स्कंद पुराण के केदारखण्ड के 44 वें अध्याय में माँ बंगलाक्षेत्र में स्थित भिल्लेश्वर महादेव जी की महिमां की अद्भूत गाथा स्वंय महादेव ने महादेवी से गायी है @ रमाकान्त पन्त
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