साहिबजादों की शहीदी और मोतीराम का अद्वितीय बलिदान
भारतीय सभ्यता के इतिहास में साहस, धर्मनिष्ठा और आत्मबलिदान का जो अध्याय श्री गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार ने लिखा, वह मानवता के लिए एक चिरस्थायी दीपक है। मुगल अत्याचारों के उस घने अंधकार में जब हिंदुओं को ज़बरन इस्लाम अपनाने को मजबूर किया जा रहा था, तब सिखों के दशम गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह जी और उनके परिवार ने सनातन धर्म की रक्षा में जो बलिदान दिया, वह अतुलनीय है।
गुरु गोविंद सिंह जी का पूरा जीवन इस भूमि की अस्मिता बचाने में बीता। परंतु उनका व्यक्तिगत बलिदान अपना संपूर्ण परिवार धर्म की वेदी पर अर्पित कर देना इतिहास में किसी और के लिए दुर्लभ है।
पूरा परिवार बिछड़ गया : संघर्ष जारी रहा
मुगलों के अत्याचार बढ़ते गए। धर्म की रक्षा के संघर्ष में गुरु जी के बड़े साहिबजादे अजीत सिंह व जुज़र सिंह चितौड़ी के युद्ध में शहीद हो गए। और फिर वह दिन आया जब गुरु जी की वृद्ध माता माता गुजरी जी और छोटे दो साहिबजादे 9 वर्षीय ज़ोरावर सिंह और 7 वर्षीय फतेह सिंह नीचे उतरते काफिले से बिछड़ गए और सरहिंद के नवाब वज़ीर खान के हाथों गिरफ्तार कर लिए गए।उनके लिए बंदीगृह नहीं, बल्कि कड़ाके की सर्दी से जमती हुई कोठरी जिसे “ठंडा बुर्ज” कहा जाता था तैयार की गई।
बच्चों से कपड़े उतारने का आदेश : निर्दयता की पराकाष्ठा
वज़ीर खान ने आदेश दिया कि दोनों नन्हें साहिबजादों के तन से कपड़े तक उतार दिए जाएँ, ताकि घोर सर्दी में उनका मनोबल टूट जाए और वे इस्लाम स्वीकार कर लें। परंतु धर्म के ये छोटे दीपक अडिग रहे। सर्द हवाओं से तपती रातों में भी उनकी आवाज़ यही थी
“हम अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे।”
मोतीराम का अमर बलिदान : दुनिया का सबसे महंगा दूध
जब यह बात गुरु जी के सेवक मोतीराम को पता चली, तो उसका हृदय फट पड़ा। उसने निश्चय किया कि इन नन्हें धर्म-वीरों के लिए कुछ भी कर गुजरना होगा।
मोतीराम ने प्रहरी सिपाहियों को सोने की मोहरों का लालच दिया और किसी प्रकार साहिबजादों तक पहुँच बनाकर उन्हें तीन दिन तक गर्म दूध पहुँचाया।
यह कोई साधारण सेवा नहीं थी
यह था धर्म के दीपक की रक्षा का वास्तविक प्रयास।लेकिन जब यह समाचार वज़ीर खान तक पहुँचा, तो उसने अमानवीय आदेश दिया
“मोतीराम और उसके पूरे परिवार को कोल्हू में पीस दिया जाए।” और वह निर्दय आज्ञा पूरी की गई।
मोतीराम, उसकी पत्नी, उसके बच्चे एक-एक प्राण धर्म की रक्षा के लिए कुर्बान हो गए।
इतिहास साक्षी है कि
दुनिया का सबसे महंगा दूध मोतीराम के परिवार ने चुकाया।
इस पवित्र सेवा के लिए पूरा परिवार शहीद हो गया।
साहिबजादों का अंतिम संघर्ष 22 से 28 दिसंबर तक का वह अमर सप्ताह
22 दिसंबर दोनों साहिबजादों और माता गुजरी जी को सरहिंद में गिरफ्तार किया गया। 22–25 दिसंबर ठंडे बुर्ज में कैद रखकर तीन दिन तक प्रताड़ित किया गया।
रोज़ पूछा जाता”इस्लाम कबूल करो”,
और रोज़ जवाब मिलता “धर्म नहीं बेचेंगे, चाहे जान चली जाए।” 25–28 दिसंबर दीवार खड़ी करने की सजा सुनाई गई। दोनों नन्हें बालकों को ज़िंदा दीवार में चुनवाया गया।
एक दहला देने वाला दृश्य—
पर उनकी आँखों में न भय था, न कंपन
बस धर्म की अग्नि जल रही थी।
28 दिसंबर सन 1705
इतिहास की वह तारीख है जब नन्हें सिंहों की शहादत ने पूरी दुनिया को दिखाया
कि धर्म की महानता शरीर से नहीं,
आत्मा से मापी जाती है।
माता गुजरी जी ने भी ठंडे बुर्ज में ही अपने प्राण त्याग दिए।
इस तरह गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने माता-पिता, अपने चारों बेटे, और अपने अनगिनत शिष्य सब कुछ सनातन की रक्षा में बलिदान कर दिया। अमर संदेश साहिबजादे आज भी बोल रहे हैं साहिबजादों की शहादत हमें बताती है धर्म की रक्षा उम्र की मोहताज नहीं। सच की राह कठिन हो सकती है, पर अमर होती है। अत्याचार का अंत निश्चित है।और धर्म कभी पराजित नहीं होता।
आज जब हम साहिबजादों, माता गुजरी जी और मोतीराम के बलिदान को याद करते हैं, तो नमन करते हैं उस परंपरा को जिसने इस भूमि को पवित्र रखा।
श्रद्धांजलि
साहिबजादा ज़ोरावर सिंह
साहिबजादा फतेह सिंह
माता गुजरी जी
मोतीराम और उनका परिवार और
श्री गुरु गोविंद सिंह जी
जिन्होंने धर्म की रक्षा में अपना सर्वस्व अर्पित कर दिया।
धर्म के ये सूर्य कभी अस्त नहीं होते
इनकी रोशनी आज भी हमारे मार्ग को आलोकित करती है।
डा० आर० के० सेतिया लालकुआँ
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