विशेष रिपोर्ट : गुलदारों के आतंक से भयग्रस्त पहाड़

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उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इन दिनों मानव–वन्यजीव संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है। जंगलों की शांति और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध पहाड़ आज गुलदारों (तेंदुओं) के निरंतर हमलों से भय और दहशत के साये में जी रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में गुलदारों की बढ़ती गतिविधियाँ अब सिर्फ पशुधन तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि बच्चों, बुजुर्गों और राह चलते लोगों पर भी हमलों की घटनाएँ तेजी से बढ़ी हैं।

रात नहीं दिन में भी खतरा

जहाँ पहले गुलदार रात्रिचर माना जाता था, वहीं अब वह दिन के समय भी मानव बस्तियों के पास घूमता हुआ देखा जा रहा है। कई गाँवों में स्थिति यह है कि—
बच्चे अकेले स्कूल नहीं जा पा रहे
महिलाएँ जंगल या खेतों में अकेले नहीं जातीं बुजुर्ग शाम होते ही घरों में कैद हो जाते हैं
चारों ओर चिंता और असुरक्षा का माहौल फैला हुआ है।

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लगातार बढ़ते हमले

पिछले कुछ समय में—
खेतों में काम करते किसानों पर हमले
स्कूल से लौटते बच्चों को निशाना बनाना
घरों में घुसकर पशुधन को मार देना

जैसी घटनाएँ आम हो गई हैं। कई परिवार अपने किसी सदस्य को खो चुके हैं और आज भी उस त्रासदी से उबर नहीं पाए हैं।

समस्या की जड़ प्रकृति का बिगड़ता संतुलन

वन विशेषज्ञों के अनुसार गुलदार के मानव बस्तियों में आने के मुख्य कारण हैं—
जंगलों का लगातार कटान
प्राकृतिक आवास का नष्ट होना
भोजन की कमी मानव विस्तार और निर्माण गतिविधियाँ
इन कारणों ने गुलदार और इंसान की दूरी कम कर दी है।

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पहाड़ों की जीवनशैली में परिवर्तन

पहाड़ों में पहले लोग खुले आंगनों में रहते थे, बच्चे खुले में खेलते थे और महिलाएँ खेतों में देर तक काम करती थीं। अब
घरों में ग्रिल, जाली और मजबूत दरवाजे लगाए जा रहे हैं लोग समूह में बाहर जाते हैं

 

वन विभाग की चुनौतियाँ

वन विभाग ट्रैप कैमरा, ड्रोन और गश्त के माध्यम से निगरानी कर रहा है, पर विशेषज्ञों का मानना है—

 “गुलदार को पकड़ना समाधान नहीं, उसके आवास और भोजन श्रृंखला को पुनर्स्थापित करना असली उपाय है।”

स्थानीय लोगों का तर्क है कि मुआवजा प्रक्रिया धीमी और जटिल होने से पीड़ित परिवारों को समय पर सहायता नहीं मिल पा रही।

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समाधान की दिशा में कदम आवश्यक

मानव–वन्यजीव सीमा निर्धारण
ग्रामीणों को सुरक्षा प्रशिक्षण
रात में सोलर फेंसिंग और अलार्म सिस्टम
त्वरित मुआवजा नीतिवन्य विशेषज्ञों की तैनाती

ऐसे कदम तत्काल उठाए जाने की आवश्यकता है।
पहाड़ों की सुंदरता और शांति आज दहशत में बदल चुकी है। गुलदारों का बढ़ता खतरा केवल सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि गहरी पर्यावरणीय असंतुलन की चेतावनी है।
यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो पहाड़ का यह संघर्ष और अधिक खतरनाक रूप ले सकता है।
पहाड़ सुरक्षित हों, प्रकृति संतुलित हो यही समय की पुकार है।

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