पहाड़ की निर्मल हवाओं में आज भी एक नाम श्रद्धा से गूंजता है :स्वर्गीय श्री प्रयाग दत्त पंत।
माँ भद्रकाली और माँ त्रिपुरा सुन्दरी के इस परम उपासक की स्मृतियाँ समय के किसी मोड़ पर धुंधली नहीं पड़तीं।
कमस्यार घाटी से लेकर बेरीनाग गंगावली नागभूमि तक, जहाँ-जहाँ उनकी चरण-धूल पड़ी, वहाँ आज भी लोग उन्हें आदर, प्रेम और श्रद्धा से याद करते हैं।
भक्ति से तपकर बना दिव्य व्यक्तित्व
पभ्या गाँव के इस संत-स्वभाव महामानव ने अपना सम्पूर्ण जीवन माँ भद्रकाली की चरण-सेवा में समर्पित कर दिया था।
उनकी भक्ति में ऐसा तेज, ऐसी ऊष्मा थी कि उनके दर्शन मात्र से भक्तों के मन के संशय मिट जाते थे। उनकी वाणी, उनका सौम्य व्यक्तित्व, उनकी सादगी सब मानो किसी ऋषि-युग की छवि समेटे हुए थे। त्रिपुरा देवी के प्रति उनकी आस्था उतनी ही प्रगाढ़ थी। प्रतिदिन का समय, श्रम, जीवन सब देवी की साधना और धर्म-सेवा में समर्पित।
पुराण, वेद और उपनिषदों के प्रकाण्ड ज्ञाता
स्व० पंत जी केवल भक्त ही नहीं, बल्कि भागवत, शिवपुराण, देवीभागवत, वेद उपनिषद, दर्शन शास्त्र के अप्रतिम ज्ञाता थे।
शास्त्रों में छिपे आध्यात्मिक रहस्यों को वे सहज भाषा में भक्तों तक पहुँचाते थे। कई लोग उन्हें युगपुरुष, धर्म-प्रहरी, सनातन ध्वजवाहक, और युग प्रवर्तक कह कर सम्मान देते थे।
हिमालय की छांव में तप का जीवन
बाल्यकाल से ही उनकी रुचि धर्म और अध्यात्म की ओर थी।
माँ त्रिपुरा सुन्दरी के आंचल में पले-बढ़े इस महान पुरुष ने वेद–पुराणों का गहन अध्ययन किया, और फिर उसी ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाकर मानवता का मार्ग प्रशस्त किया। माँ भद्रकाली के मंदिर में उनका आगमन भक्तों के लिए उत्सव जैसा होता था। कई कहते थे “उनके चरणों में बैठना ऐसा है जैसे अपने सभी दुखों की गठरी माँ के हवाले कर देना।”
उनके आशीर्वाद की अनुभूति ही एक तप है
उन्हें मानने वाले भक्त आज भी बताते हैं
“उनका एक स्पर्श, एक वचन जीवन की सारी उलझनें सुलझा देता था।” उनकी कृपा से अनेक लोगों ने जीवन-दर्शन पाया, आत्मा की विराटता को समझा, और धर्म के गौरव को जाना।
सत्य और धर्म के अनन्त प्रहरी
उन्होंने अपने प्रवचनों से यह समझाया कि
“शरीर नश्वर है, पर सत्य धर्म आत्मा के सिद्धांत अनन्त हैं।”
उन्हीं सिद्धांतों पर चलकर उन्होंने पूरी जीवन-यात्रा की और लोगों को भी वही पथ अपनाने की प्रेरणा दी। उनका जीवन निष्काम कर्म, सादगी, दयालुता और मर्यादा—इन सभी गुणों का जीवंत प्रतीक था।
अंत नहीं, एक अनन्त यात्रा
प्रयाग भूमि में उन्होंने इस जीवन-यात्रा को विराम दिया,
परंतु उनका आशीर्वाद, उनके उपदेश, और उनका आध्यात्मिक तेज आज भी भक्तों के मार्ग को प्रकाशित करता है।कमस्यार घाटी में माँ भद्रकाली के चरणों में जब भी कोई श्रद्धा-पुष्प चढ़ाता है, दिल में सहज ही उनकी स्मृति का दीपक फिर से जगमगा उठता है।
वे अमर हैं :भक्तों के हृदयों में, भक्ति के इतिहास में
स्व० प्रयाग दत्त पंत जी केवल एक नाम नहीं,
एक प्रवाह हैं एक परम्परा, एक चेतना, एक अनन्त ज्योति।उनका त्याग, उनकी तपस्या, उनका धर्म-सेवा जीवन
आगामी पीढ़ियों के लिए सदैव एक दिव्य आदर्श और मार्गदर्शन बनकर रहेगी।
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