लखनऊ में गूँज रही उत्तराखंड की सांस्कृतिक धुन
उत्तराखंड महोत्सव में उमड़ी भीड़, छोलिया नृत्य से मोहित हुए दर्शक
रिपोर्ट: रमाकान्त पन्त
लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ इन दिनों उत्तराखंड की संस्कृति, रंग और सुगंध से महक रही है। 9 नवम्बर से 18 नवम्बर तक आयोजित उत्तराखंड महोत्सव में देवभूमि की समृद्ध लोक परंपराएं, कला, संगीत और खानपान लोगों को खूब आकर्षित कर रहे हैं। खाटू श्याम मंदिर के समीप गोमती नदी के तट पर आयोजित यह महोत्सव हर वर्ग के लोगों के लिए उत्सव का केंद्र बन गया है।
महोत्सव का मुख्य आकर्षण पारंपरिक पहाड़ी वेशभूषा, हँसिया-घाघरा, माला, पाग, जैंतरी, नथ और टोपी की प्रदर्शनी है, जिनकी खूब बिक्री हो रही है। इसके साथ ही पहाड़ी जैकेट, शॉल और ऊनी वस्त्र भी लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं।
खानपान के स्टॉल पर झंगोरे की खीर, मंडुवे की रोटी, गहत की दाल, भट की चुड़कानी और स्वादिष्ट पहाड़ी पकवान लोगों को उत्तराखंड की स्वाद यात्रा करा रहे हैं। पर्यटक पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद लेकर स्वयं को पर्वतीय संस्कृति से जुड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं।
महोत्सव में प्रतिदिन प्रस्तुत किया जा रहा छोलिया नृत्य लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। ढोल-दमाऊँ और रणबांकुरे पोशाक में प्रस्तुत यह वीर रस से ओतप्रोत नृत्य लोगों को मंत्रमुग्ध कर रहा है। दर्शकों की तालियों से पूरा परिसर गूंज उठता है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के दौरान कलाकारों ने कहा—
“उत्तराखंड की संस्कृति सिर्फ लोककला नहीं, बल्कि हमारी पहचान और विरासत है। इसे देशभर में पहुँचाना हमारा कर्तव्य है।”
कार्यक्रम के आयोजकों ने बताया कि महोत्सव का उद्देश्य लखनऊ और पूरे उत्तर प्रदेश के लोगों को उत्तराखंड की परंपराओं, संस्कृति और पहाड़ी जीवन से परिचित कराना है। आयोजक समिति के एक सदस्य ने कहा—
“हम चाहते हैं कि लोग सिर्फ पर्यटन के रूप में नहीं, बल्कि संस्कृति को समझते हुए उत्तराखंड से जुड़ें।”
स्थानीय लोगों और पर्यटकों ने भी इस आयोजन की खूब सराहना की। एक पर्यटक ने कहा—
“यहां आकर ऐसा लगता है जैसे हम लखनऊ में नहीं, बल्कि पहाड़ की गोद में हों। स्वाद, संगीत और वेशभूषा सब कुछ अनूठा है।”
18 नवम्बर तक चलने वाले इस महोत्सव में प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं और उत्तराखंड की सांस्कृतिक छटा का आनंद ले रहे हैं। यह आयोजन उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के बीच सांस्कृतिक सेतु की तरह कार्य कर रहा है।
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