• देश के विभिन्न राज्यों से आये हज़ारों आशाओं और स्कीम वर्कर्स का संसद के समक्ष प्रदर्शन

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हल्द्वानी
• उत्तराखण्ड से भी सैकड़ों की संख्या में आशा वर्कर्स शामिल हुईं
• देश के प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को मांग पत्र दिया गया

ऐक्टू के नेतृत्व में ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन के बैनर तले हजारों की संख्या में आशा कार्यकर्ता व अन्य स्कीम वर्कर्स ने दिल्ली के जंतर मंतर पर केंद्र सरकार के खिलाफ और अपने अधिकारों के लिए आवाज बुलंद की और चेतावनी दी कि यदि हमारी मांगे नहीं मानी गई तो पूरे देश में अनिश्चितकालीन हड़ताल की जाएगी।
प्रदर्शन में उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले उत्तराखण्ड से भी सैकड़ों की संख्या में आशा वर्कर्स शामिल हुईं. प्रमुख मांगों में सरकारी कर्मचारी का दर्जा, जीवन जीने लायक 28 हजार वेतन, 60 साल के रिटायरमेंट के बाद पेंशन, कोरोना काम का हर महीने 10 हजार रु भत्ता आदि शामिल हैं. रैली के बाद देश के प्रधानमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री को मांग पत्र भेजा गया. दिल्ली रैली से लौटकर उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पांडेय ने यह जानकारी दी.

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आशाओं और स्कीम वर्कर्स के राष्ट्रीय फेडरेशन अखिल भारतीय स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजक शशि यादव, सह संयोजक सरोज चौबे के साथ उत्तराखंड से आशा यूनियन प्रदेश उपाध्यक्ष रीता कश्यप, पूजा शर्मा, रिंकी जोशी, डॉ कैलाश पांडेय, बिहार से आशा नेता विद्यावती, सुनीता, शबया पांडे, कविता, उत्तर प्रदेश की आशा कार्यकर्ता की राज्य अध्यक्ष लक्ष्मी देवी, राज्य सचिव साधना पांडे, कंवल प्रीत कौर, महाराष्ट्र से मदीना शेख, सुवर्णा तालेकर, झारखंड से अनिता देवी, रविन्द्र कुमार, आंध्र प्रदेश से आशा नेता जाहिरा बेगम, आशा नेता अतर जान बेगम, पंजाब से अंगूरी देवी, दिल्ली से आशा नेता श्वेता राज, रमा, असम एवं कार्बी आंग्लोंग, छतीसगढ़ से उमा नेताम आदि अनेक प्रदेशों की आशा नेताओं ने रैली को संबोधित किया.

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अखिल भारतीय स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजक शशि यादव ने सभी स्कीम वर्कर्स के लिए नियत काम के घण्टों, नियमित वेतन, कर्मचारी का दर्जा के साथ जेण्डर सेल बनाने की मांग की.

ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने सभी राज्यों आये स्कीम कर्मचारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार इन सबसे महत्वपूर्ण काम करने वाले महिला कर्मियों के साथ भारी अन्याय कर रही है और उनकी मांगों के पूरा नहीं होने की स्थिति में पूरे देश में संघर्ष तेज होगा. उन्होंने कहा कि एक ओर तो विश्व स्वास्थ्य संगठन आशाओं को ‘ग्लोबल हैल्थ लीडर’ का सम्मान दे रहा है वहीं हमारी सरकार उनका शोषण कर रही है और उन्हें न्यूनतम वेतन व कार्यस्थल की सुविधाओं से वंचित कर रही है. कोरोना महामारी के दौरान बहुत सी आशाओं और अन्य स्कीम कर्मियों ने जनसेवा में अपनी जान तक गंवा दी थी, लेकिन उनके परिजनों को कोई मुआवजा तक नहीं दिया गया.

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स्कीम कर्मियों ने अपने प्रदर्शन के माध्यम से निम्नलिखित मांगें दुहराईंः
1. आशाओं समेत सभी स्कीम वर्कर्स को सरकारी कर्मचारी का दर्जा दो!
2. स्कीम वर्कर्स के लिये राष्ट्रीय स्तर पर 28,000 रूपये मासिक वेतन तय करो! पेंशन सहित समुचित सामाजिक सुरक्षा की गारंटी करो!
3. स्कीम वर्कर्स के लिये काम के घंटे तय करो!
4. कार्यस्थल पर होने वाले लैंगिक शोषण को रोकने के लिए जेंडर सेल का गठन करो!
5. इन जनोपयोगी सरकारी स्कीमों (एनएचएम, मिड-डे मील, आईसीडीएस, आदि) का निजीकरण/एनजीओकरण बंद करो!
6. कोरोना काल में दिवंगत हुए स्कीम वर्कर्स के परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान करो!

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