लालकुआँ/
’लालकुआं में उतरायणी मेले की धूम मची है वरिष्ठ समाज सेवी व पूर्व चेयरमैन पवन चौहान ने सभी को उत्तरायण पर्व की शुभकामनाएं देते हुए कहा भगवान सूर्य जब धनु राशि को छोड़ कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो इसे उत्तरायण काल कहा जाता है। इस अवसर पर प्राणी जगत में एक नये परिवर्तन की शुरूआत होती है जिसे जीवन्त बनाने के लिए त्यौहार एवं उत्सव आयोजित किये जाते हैं। यह अवसर विश्व शांति का महान प्रतीक है। मकर संक्रांति में वसुधैव कुटुम्बकम की पावन भावना सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार की तरह रहने का संदेश देती है।
उत्तरायण काल से सूर्य की उत्तरायण गति प्रारंभ होती है इसलिए इसको उत्तरायणी भी कहते हैं। उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति, तमिलनाडु में पोंगल, कर्नाटक, केरल तथा आंधा्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रांति कहते हैं। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में मकर संकांति की पहली रात्रि को जागरण की परम्परा है। इस दिन शुध एवं सात्विक भोजन के उपरान्त रात्रि काल में लोग आग जलाकर उसके चारों ओर बैठ जाते हैं और अपनी प्राचीन परम्परा एवं मर्यादाओं पर आधारित कथा-कहानियां तथा आदर्शों को याद करते हैं। प्रातःकाल नदियों, तालाबों, जल बााराओं पर जाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करते हैं और अपने पूर्वजों की पूजा करते हुए बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया जाता है। कुर्मांचल क्षेत्र में इसे महारानी जिया की जयन्ती के रूप में तथा घुघुतिया त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। लालकुआं का मेला भी यादगार रहता है
लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें