फेणीनाग मंदिर : नागवंश की प्राचीन आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक

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फेणीनाग मंदिर : नागवंश की प्राचीन आध्यात्मिक विरासत का जीवंत प्रतीक

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले की देवदार और चीड़ की सुरम्य घाटियों के बीच स्थित फेणीनाग मंदिर पहाड़ की प्राचीन नाग-सभ्यता, आस्था और परंपराओं का एक अद्भुत संगम है। कमेड़ी देवी क्षेत्र के पास राष्ट्रीय राजमार्ग से दिखाई देने वाला यह मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक जीवित इतिहास है जो नागवंशीय संस्कृति, न्याय परंपरा और लोक आस्था को आज भी सांसों की तरह संजोए हुए है।

नागवंश का प्राचीन केंद्र

मान्यता है कि आर्यों के आने से बहुत पहले यह पूरा क्षेत्र नागवंश के अधीन था। उस समय नागवंशियों ने अनेक मंदिर और देवस्थल बनाए, जिनमें फेणीनाग एक प्रमुख देवता माने जाते हैं। कहा जाता है कि यह भूमि कभी नाग-कुल की राजधानी समान क्षेत्र थी, जहाँ उनके उपदेवता, वीर योद्धा और रक्षक देवताओं की पूजा की जाती थी।

फेणीनाग : पिंलगनाग के भाई और न्याय के देवता

स्थानीय किवदंतियों के अनुसार फेणीनाग, प्राचीन नागदेवता पिंलगनाग के सगे भाई माने जाते हैं। दोनों भाइयों को शक्ति, न्याय और रक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है। फेणीनाग की सबसे बड़ी पहचान है

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“न्याय का देवता”

ऐसा विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके से किसी पर अत्याचार करता है, या अन्याय करता है, तो फेणीनाग देवता के सामने प्रतिज्ञा लेने पर सत्य बाहर आ ही जाता है। अनेक लोग विवाद, बीमारी या संकट के समय फेणीनाग देवता से न्याय माँगने आते हैं।

कालियानाग से संबंध : एक पुरातन मान्यता

कुछ धार्मिक व्याख्याओं के अनुसार फेणीनाग का वंश भगवान कृष्ण द्वारा पराजित किए गए कालियानाग से जुड़ा माना जाता है। यह मत बताता है कि नागवंश की शाखाएँ हिमालय की ओर चली आईं और उन्होंने यहाँ अनेक मंदिरों की स्थापना की।
यह मान्यता इस क्षेत्र को पौराणिक कथा और लोकविश्वास की कड़ी से जोड़ देती है।

राजा बेनीमाधव और नागवेणी वंश की कथा

एक अन्य महत्वपूर्ण मान्यता कहती है कि इस पूरे क्षेत्र का नाम नागवेणी वंश के राजा बेनीमाधव के नाम पर पड़ा। वे अत्यंत पराक्रमी और धर्मपरायण राजा थे, जिन्होंने फेणीनाग मंदिर का निर्माण कराया था।
उनके शासनकाल को न्याय, धर्म और लोककल्याण का युग माना जाता है—इसलिए फेणीनाग की न्याय परंपरा राजा बेनीमाधव के समय से ही चली आ रही मानी जाती है।

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मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

फेणीनाग मंदिर आज भी नाग संस्कृति का जीवित केंद्र न्याय और सुरक्षा के देवता का साक्षात्कार स्थल स्थानीय परंपराओं का प्रमुख तीर्थ माना जाता है कि देवता के पास साधारण से साधारण प्रार्थना भी सुनी जाती है। कई परिवार आज भी फेणीनाग के नाम से व्रत रखते हैं, बलि नहीं देते, बल्कि प्रसाद के रूप में केवल फल-फूल चढ़ाते हैं।

एक पहाड़ी की चोटी पर दिव्य शांति

कमेड़ी के पास, ऊँचाई पर स्थित इस मंदिर तक पहुँचने पर चीड़ की सुगंध, देवदार की छाया और मंद हवा के साथ एक दिव्य शांति महसूस होती है। यह स्थान मानो प्रकृति का तपोवन हो, जहाँ भगवान की उपस्थिति शब्दों से नहीं, अनुभूति से महसूस होती है।

त्योहार और परंपराएँ

यहाँ प्रतिवर्ष नागपंचमी स्थानीय मेलेविशेष पूजा-अनुष्ठान उत्साह से मनाए जाते हैं। दूर-दूर से भक्त आकर फेणीनाग देवता के दर्शन करते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं।

फेणीनाग मंदिर : आस्था का शाश्वत पहरुआ

फेणीनाग केवल एक देवता नहीं, बल्कि पहाड़ की आत्मा, संस्कृति और प्राचीन सभ्यता के रक्षक हैं। उनकी परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सदियों पहले थी नागवंश की महिमा, लोकआस्था का दीप और न्याय का प्रतीक बनकर।
जो यहाँ आता है, वह शांति, संतोष और एक अदृश्य सुरक्षा की अनुभूति लेकर लौटता है।

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कुल मिलाकर फेणीनाग मंदिर का इतिहास आस्था, वीरता और प्रकृति का अद्भुत संगम है कुमाऊँ की पवित्र धरती पर स्थित फेणीनाग मंदिर अपने रहस्यमयी इतिहास, प्राकृतिक सौंदर्य और लोक आस्थाओं के कारण विशेष महत्त्व रखता है। ऊँचे पर्वतों, घने वनों और शांत वातावरण के बीच स्थापित यह देवस्थल केवल पूजा का केंद्र नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति, लोक श्रद्धा और वीर परंपराओं का जीवंत प्रतीक है। नाग पूजा की परंपरा कुमाऊँ में अनेक स्थानों पर मिलती है, परंतु फेणीनाग का मंदिर इन सभी में अत्यधिक प्रतिष्ठित माना जाता है।लोक मान्यताओं के अनुसार फेणीनाग महाशक्ति सम्पन्न नाग देवता हैं, जिन्हें वीरता, रक्षा, न्याय और धर्मपालन के देवता के रूप में पूजा जाता है। कहा जाता है कि जहाँ फेणीनाग की कृपा होती है, वहाँ सर्पदोष, भय, रोग, कृषिकष्ट और अनर्थ का नाश होता है।

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