अवंतिका के आंगन में कोटगाड़ी देवी की मूर्ति स्थापित, हवन, यज्ञ व भण्ड़ारे में सैकड़ों भक्तों ने लिया भाग

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लालकुआं[नैनीताल]।
जनपद नैनीताल के प्रवेश द्वार लालकुआं के प्रसिद्ध शक्ति स्थल माँ अवंतिका देवी मंदिर के प्रांगण में आज माता कोटगाड़ी की भव्य मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का कार्य पूर्ण विधि विधान के साथ आयोजित हुआ जिससे लोगों को यहां माता कोकिला अर्थात् कोटगाड़ी देवी के दर्शन सुलभ होंगे। इस अवसर पर मंदिर परिसर में हवन यज्ञ व विशाल भण्डारें में भक्तों ने उत्साह के साथ भाग लिया
यहाँ यह बताते चले कि

*☘️जानिये कोटगाड़ी देवी की महिमां☘️*

हिमालय की पावन भूमि जनपद पिथौरागढ़ के पाखू नामक क्षेत्र में स्थित कोकिला देवी का दरबार भक्त जनों के लिए माता भवानी की और से उनकी कृपा की अलौकिक सौगात है, अभीष्ट कार्यों की सिद्वियों के लिए इनकी शरणागत सब प्रकार से मनोवांछित फल प्रदान करने वाली कही गयी है, मंदिर में फरियादों के असंख्य पत्र न्याय की गुहार के लिए लगते रहते रहे है, दूर-दराज से श्रद्वालुजन डाक द्वारा भी मंदिर के नाम पर पत्र भेजकर मनौती मागते है, तथा मनौती पूर्ण होने पर दर्शन के लिए यहा अवश्य पधारते है, यह दंत कथा भी काफी प्रसिद्व है कि माता के प्रभाव से आजादी के पूर्व अग्रेजों के शासन काल में एक जज ने जटिल यात्रा कर यहां पहंचकर क्षमा याचना की इसके पिछे कारण बताया जाता है।कि क्षेत्र के एक निर्दोष व्यक्ति को जब अदालत से भी न्याय नही मिला तो सामाजिक दंश से आहत होकर स्वंय को निर्दोष साबित करने के लिए करुण पुकार के साथ भगवती कोटगाड़ी के चरणों में विनती की भक्त की करुण विनती के फलस्वरुप चमत्कारिक घटना के साथ कुछ समय के बाद जज ने यहां पहुचकर उसे निर्दोष बताया इस तरह के एक नही सैकड़ो चमत्कारिक करिश्में देवी के इस दरबार से जुड़ी हुई है। हिमालय के देवी शक्ति पीठों में कोकिला माता का महात्म्य सबसे निराला है, सिद्वि की अभिलाषा रखने वाले तथा ऐष्वर्य की कामना करने वाले लोगों के लिए भी यह स्थान त्वरित फलदायक है, देवी के उपासक इन्हें विष्वेष्वरी, चन्द्रिका, कोटवी, सुगन्धा, परमेष्वरी, चण्डिका, वन्दनीया, सरस्वती, अभया प्रचण्डा, देवमाता, नागमाता, प्रभा आदि अनेक नामों से पुकारते है।
कोकिला कोटगाड़ी देवी को न्याय की देवी के रुप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। जिस किसी को भी कही से जब न्याय की उम्मीद नही रह जाती है, तो वह कोटगाड़ी देवी की शरण में जाकर न्याय की गुहार करता है, यह भी मान्यता है,कि कोटगाड़ी देवी उसे अवश्य ही न्याय दिलाती है,
मंदिर के समीप ही अनेक पावन व सुरभ्य स्थल मौजूद है। इस पौराणिक मंदिर में शक्ति कैसे और कब अवतरित हुई इसकी कोई प्रमाणिक जानकारी नही हो पायी है ,दंत कथाओं में कई भक्त मानते है, कि यह देवी नेपाल से यहां आई है इनके विश्राम स्थल अनेकों स्थानों पर है, जहां नित्य इनकी पूजा होती है कोट का तात्पर्य अदालत से माना जाता है, पीड़ितों को तत्काल न्याय देने के कारण ही इस देवी को न्याय की देवी माना जाता है, और इसी भाव से इनकी पूजा प्रतिष्ठा सम्पन कराने की परम्परा है, एक प्राचीन कथा के अनुसार जब योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने बालपन में कालिया नाग का मर्दन किया और उसे जलाषय छोड़ने को कहा तो कालिया नाग व उसकी पत्नियों ने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना कर प्रार्थना की कि,हे प्रभु हमे ऐसा सुगन स्थान बताये जहां हम पूर्णतः सुरक्षित रह सके तब भगवान श्री कृष्ण ने इसी कष्ट निवारिणी माता की शरण में कालिया नाग को भेजकर अभयदान प्रदान किया था।
कालिया नाग का प्राचीन मंदिर कोटगाड़ी से थोड़ी ही दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है जिसे स्थानीय भाषा में ‘‘काली नाग को डान कहते है, बताते है, पर्वत की चोटी पर स्थित इस मदिर को कभी भी गरुड़ आर-पार नही कर सकते ऐसी परमकृपा है, कोटगाड़ी माता की कालिया नाग पर इस मंदिर की शक्ति पर किसी शस्त्र के वार का गहरा निशान स्पष्ट रुप में दिखाई देता है, लोक मान्यताओं के अनुसार किसी ग्वाले की सुन्दर गाय इस शक्ति पर आकर अपना दूध स्वय दुहाकर चली जाती थी, ग्वाले का परिवार बेहद अचम्भे में रहता था, कि आखिर इसका दूध कहा जाता है। इस प्रकार एक दिन ग्वाले की पत्नी ने चुपचाप गाय का पिछा किया जब उसने यह दृश्य देखा तो धारधार शस्त्र से उस शक्ति पर वार कर डाला इस प्रहार से तीन धाराये खून की बह निकली जो क्रमशः पाताल, स्वर्ग व पृथ्वी पर पहुंची पृथ्वी पर खून की धारा प्रतीक स्वरुप यहां देखी जा सकती है। वार वाले स्थान पर आज भी कितना ही दूध अर्पित किया जाए, दूध शोषित हो जाता है। कालिया नाग मंदिर के दर्शन स्त्रियों के लिए वर्जित माना गया है, जिसे श्राप का प्रभाव कहा जाता है। मंदिर के पास ही माता गंगा का एक पावन जल कुण्ड है, मान्यता है, कि ब्रहम व मूहत में माता कोकिला इस जल से स्नान करती है। सच्चे श्रद्वालुओं को इस पहर में यहां पर माता के वाहन शेर के दर्शन होते है, इस प्रकार की एक नही सैकड़ों दंत कथाएं इस शक्तिमयी देवी के बारे प्रचंलित है, जो माता कोकिला के विशेष महात्मय को दर्शाती है, इस दरबार में माता कोकिला के साथ बाण मसूरिया, उडर, घषाण आदि अनेकों देवताओं की पूजा की जाती है स्थानीय गांव के पुजारी पाठक मंदिर में पूजा अर्चना का कार्य सम्पन करते है। भण्डारी, गोलू चोटिया व वाण के पुजारी कार्की लोग है।
कुमाऊ मण्डल में जनपद नैनीताल के हरतोला क्षेत्र में स्थित कोकिला वन की कोकिला माता इन्ही का रुप मानी जाती है, दारमा घाटी के कनार क्षेत्र में भी माता विराजमान है, भक्तों का यह भी मत है, कि कत्यूर घाटी से इन्हें इनके भक्तजन चंदवषीय राजा लोग नेपाल को ले जा रहे थे लेकिन मां को यह स्थान भा गया और वे यही स्थापित हो गयी माता की कृपा से ही कालीय नाग को भद्रनाग नामक पुत्र की प्राप्ति हुई,भदनाग की महिमा का वर्णन मानस खण्ड के 51 वे अध्याय में आता है, इन्होंने माता भद्रकाली की घोर आराधना करके विषेष सिद्वियां प्राप्त की माता कोकिला माता भद्रकाली के पूजन के साथ भद्रनाग व कालिया नाग के पूजन से सर्पभय दूर होता है। ज्ञातव्य हो कि माता भद्रकाली का मंदिर बागेश्वर जनपद के कांडा नामक स्थान से लगभग चार पांच किमी की दूरी पर स्थित है, यह अद्भूत क्षेत्र है, मन्दिर के नीचे गुफा है जिसमें शिव व शक्ति दोनों विराजमान है, कोकिला माता की छत्रछाया में विराजमान काली नाग को भी काली का परम उपासक माना जाता है।
काली सम्पूज्यते विप्रा कालीयने महात्मना
81/11 (मानस खण्ड)
कुल मिलाकर कोकिला माता का दरबार श्रद्वा व भक्ति का संगम है, जो सदियों से पूज्यनीय है।

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इन्हीं देवी का एक स्वरूप वर्षों पूर्व लालकुआँ में यहां पर रजवार परिवार द्वारा कोटगाड़ी के पावन धाम से यहाँ लाकर स्थापित किया गया जिसकी पूजा अर्चना पिंडी स्वरूप में यहां पर होती आई है और आज माता की साकार मूर्ति की स्थापना भी हो गई है अब यहां माँ अवंतिका के साथ-साथ कोकिला देवी की मूर्ति के भी दर्शन होंगे

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*☘️जानिये माँ अवंतिका के बारे में☘️*

उल्लेखनीय है,कि आदि शक्ति जगत-जननी माता जगदम्बा का विराट स्वरुप जहां भांति-भांति रुपों में पूजित है, वही कुमाऊं के प्रवेश द्वार लालकुआं नगर में अवन्तिका माता के रुप में यह देवी बड़े ही श्रद्वा के साथ पूजित है, मान्यता है, कि मर्यादित, संयमित नीतिसम्मत, सिद्वान्तपरक, मूल्यपरक कुल मिलाकर शान्तिपूर्वक जीवन यापन व्यतीत करने के इच्छुक भक्तों के लिए मांअवन्तिका की शरणागति ही हर तरह के संशय, संकट भय रोग,शोक दुख दरिद एवं विपदाओं से मुक्त करती है। शिव के साथ मां का पूजन वैभव को प्रदान करने वाला कहा गया है
मानस भूमि के प्रवेश द्वार ललिता देवी की नगरी लालकुआं नगर के उतर दिशा में माता अवन्तिका का दरबार सदियों से पूज्यनीय है, इस स्थान पर माता अवन्तिका की पूजा कब से होती है यह सब अज्ञात है। कुछ देवी भक्तों का मानना है, कि पूर्वकाल में घनघोर जंगल होने के कारण वट वृक्ष के नीचे माता की एक छोटी सी मूर्ति थी जिसे भक्तजन ललिता देवी, वन देवी, कोकिला देवी, त्रिपुर सुन्दरी आदि तमाम रुपों में अपनी अपनी भावनाओं को इस देवी को पूजते थे, हिमालय की और जाने वाले ऋषि मुनी संतजन इस क्षेत्र में विश्राम के दौरान इस देवी को विभिन्न रुपों में पूजकर हिमालय भूमि की और प्रस्थान करते थे, इसलिए नगर का यह क्षेत्र हिमालयी संस्कृति की आधार भूमि मानी जाती है, इसलिए देवभूमि हिमालय के बारे में पुराणों में कथन है अस्त्युन्तरस्या दिषि देवतात्मा हिमालयों नाम नगाधिराजः’’ वास्तव में महाषक्ति ही परम ब्रहमा के रुप में हिमालय भूमि के कदम-कदम पर प्रतिष्ठित है, यहां पधारने वाले लोग सबसे अधिक श्रद्वा स्वभाविक रुप से माता श्री के चरणों में अर्पित करता है, हिमालय भूमि में प्रवेश से पूर्व यहां से गुजरने वाले आगन्तुकों को अवन्तिका माता के दर्षन के बाद ही हिमालय दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, हिमालय भूमि में नौ दुर्गाओं दस महाविघाओं सहित अनके स्वरुपों में उनकी लीलाऐं दृष्टिगोचर होती है, परमात्मास्वरुपिणी अवन्तिका शक्ति मन्दिर परिसर में आज धीरे-धीरे अनेकों देवी देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर है, जिनका निमार्ण स्थानीय भक्तजनों ने बड़े ही श्रद्वा भाव के साथ किया है, चैत्र, आषाढ़, अष्विन, और माघ इन मासों के चारों नवरात्रों में यहां अवन्तिका देवी का विधि का पूर्वक पूजन किया जाता है
कुमाऊं के प्रवेश द्वार व जनपद नैनीताल की तलहटी पर स्थित अवन्तिका माता की महिमा का वर्णन अनन्त व अगोचर है
अवंतिका के आंगन में कोटगाड़ी देवी की मूर्ति स्थापित, हवन, यज्ञ व भण्ड़ारे में सैकड़ों भक्तों ने लिया भाग

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*☘️ये भक्तजन रहे मौजूद☘️*

स्व० श्री गुमान सिंहं रजवार जी की मधुर स्मृति में नव निर्मित कोटगाड़ी मन्दिर में मूर्ति स्थापना के अवसर पर सर्वश्री जीवन सिंह रजवार गोपाल सिंह रजवार पूरन सिंह रजवार किशन सिंह रजवार आनन्द सिंह रजवार राजेन्द्र सिंह रजवार नरेन्द्र सिंह रजवार सुन्दर सिंह रजवार मनोज सिंह रजवार शिवांश सिंह रजवार विक्की रजवार रिक्कू रजवार करन रजवार कुनाल रजवार लक्ष्य रजवार गुनगुन रुद्राक्ष रजवार पूर्णिमां रजवार अंजलि रजवार गोविन्द रजवार संजय रजवार ममता प्रथम रजवार ज्योति रजवार कंचन सिंह रजवार श्रीमती कमला रजवार सुन्दर रजवार श्रीमती रजवार दुर्गा रजवार रमा रजवार पुष्पा रजवार बीना रजवार हेमा रजवार लीला रजवार मीना रजवार मीना रावत दीवान सिंह बिष्ट दीपू नयाल धन सिंह बिष्ट सहित अनेकों भक्तजन मौजूद रहे

*☘️इनका रहा सानिध्य☘️*
हिमालय के सिद्व पीठ श्री बदरीनाथ आश्रम सोमेश्वर के संत श्री दुर्गा दत्त त्रिपाठी जी के दिशा निर्देशन में आचार्य प० चन्द्र शेखर जोशी प० विमल पाण्डे प० मिश्रा ने पूजन अर्चन का कार्य सम्पन कराया

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