जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रयागराज महाकुंभ में किया ” जय मॉ बगलामुखी ” पुस्तक का विमोचन + पुस्तक का विमोचन करते हुए प्रकाशक ललित पन्त ने प्राप्त किया जगद्गुरु का आशीर्वाद + सनातन संस्कृति को जीवन्त बनाये रखने के लिए पुस्तक प्रकाशन को जगद्गुरु ने बताया जरूरी

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प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश ), सनातन हिन्दू धर्म के प्रकाण्ड विद्वान, रामानन्द सम्प्रदाय के चार जगद्गुरुओं में प्रमुख एवं महान धर्मगुरु, जगदगुरु रामभद्राचार्य ने बीते दिवस यहां प्रयागराज महाकुम्भ में आध्यात्मिक प्रवचन माला के दौरान पूर्व न्यायधीश रहे स्व० श्री उमाशंकर पाण्डेय की मधुर स्मृति में लिखी गयी ” जय माँ बगलामुखी ” पुस्तक का विमोचन किया

” जय मॉ बगलामुखी ” पुस्तक का विमोचन करते हुए पुस्तक के प्रकाशक ललित ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य का आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
पुस्तक का सहर्ष विमोचन करते हुए जगद्गुरु ने प्रसन्नता व्यक्त की और प्रकाशक ललित पन्त और पुस्तक के लेखक रमाकान्त पन्त के इस पुण्य प्रयास की भूरि-भूरी प्रशंसा की। जगद्गुरु ने अत्यन्त ही स्नेहपूर्वक कहा कि भूमण्डल में सनातन संस्कृति ही सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करती है और यही एकमात्र मानव धर्म है । उन्होंने कहा कि प्रत्येक सनातनी हिन्दू को अपने – अपने स्तर से इस महान सनातन संस्कृति को सिंचित करने का कुछ न कुछ प्रयास अवश्य करना चाहिए । हमारे मनीषियों, ऋषियों, , दार्शनिकों, चिन्तकों, कवियों, लेखकों अर्थात हमारे महान पूर्वजों द्वारा सदियों से ही सनातन को सींचा है, संवारा है और अविरल जीवन्त बनाये रखा है । इसीलिए तो अनेकानेक विपरीत स्थितियों के बावजूद यह सनातन संस्कृति आदिकाल से वर्तमान तक लगातार पल्लवित और पुष्पित है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने इस पावन अवसर पर आगे कहा कि सनातन संस्कृति को जीवन्त बनाये रखने के लिए धार्मिक व आध्यात्मिक पुस्तकों का प्रकाशन नितान्त आवश्यक है । उन्होंने कहा कि दस महाविद्याओं में आठवीं प्रमुख महाविद्या बगलामुखी देवी की महिमा को जनसामान्य तक पहुंचाने का प्रयास यानी सनातन संस्कृति को सिंचित करते रहने का अभियान आगे भी सतत जारी रहना चाहिए।
यहाँ बताते चलें कि जगद्गुरु रामभद्राचार्य भारत समेत विश्वभर में संस्कृत के चुनिंदा विद्वानों में से एक हैं। 22 से अधिक भाषाओं के ज्ञाता हैं और हिन्दी व संस्कृत सहित अन्य भाषाओं में अब तक 100 से अधिक ग्रन्थों की रचना कर चुके हैं। महान कवि, लेखक, भजन गायक, चिन्तक, साधक, दार्शनिक व संगीतकार के साथ ही महान कथा वाचक एवं धार्मिक टिप्पणीकार भी हैं।
श्री रामचरित मानस के लेखक गोस्वामी तुलसीदास पर देश के सबसे उच्चकोटि के विशेषजों में गिने जाते हैं। रामचरित मानस का पठन-पाठन, अध्ययन-मनन, चिन्तन तथा गायन जगद्गुरु का सबसे प्रिय विषय रहा है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य चित्रकूट स्थित श्री तुलसी पीठ के संस्थापक सन्त हैं और जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्व विद्यालय के संस्थापक और आजीवन कुलाधिपति हैं।
जन्म से अन्धे होने बावजूद सनातन संस्कृति को आगे बढ़ाने में उनका योगदान शब्दों में व्यक्त कर पाना असम्भव है।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को भारत सरकार द्वारा उनके महान कार्यों को लेकर पद्म विभूषण से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त अवध रत्न पुरुष्कार, कविकुल रत्न पुरुस्कार व धर्म चक्रवर्ती पुरुष्कार समेत अन्य पुरुस्कारों से भी उनको सम्मानित किया जा चुका है।
यहाँ यह भी बता दें कि अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कराने में उनकी निर्णायक भूमिका रही। अर्थात उच्चतम न्यायालय में निर्णायक सुनवाई के दौरान जगद्गुरु रामभद्राचार्य द्वारा प्रस्तुत ज्योतिषीय, आध्यात्मिक, धार्मिक व वैज्ञानिक साक्ष्यों का ही प्रतिफल था कि श्रीराम जन्म भूमि का निर्णय सनातन के पक्ष में आया, जहाँ आज भव्य- दिव्य श्री राम मन्दिर परम प्रकाशित है। विमोचन के दौरान भक्तजनों की आपार भीड़ रही

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मदन मधुकर

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