प्रतापी राजा कुरु के नाम से संसार में प्रसिद्व है, कुरुक्षेत्र

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विश्व का सबसे बड़ा महाभीषण संग्राम हुआ था,इसी भूमि पर
कुरुक्षेत्र/हरियाणा/योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से इसी भूमि पर संसार को दिया गीता का ज्ञान जिस भूमि पर योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के माध्यम से संसार को गीता का ज्ञान दिया और उस ज्ञान में कर्तव्य को सर्वोपरि स्थान दिया वह स्थान कुरुक्षेत्र की पावन भूमि है*। यहीं धर्म-अधर्म के बीच संसार का सबसे बड़ा महासंग्राम हुआ था। इस भूमि पर हुए कौरव पांडव के महासंग्राम के साक्षी स्वंय परमेश्वर प्रभु योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण रहे कुरुक्षेंत्र की भूमि से प्रभु का नाता बाल्यकाल से ही रहा यहां स्थित माँ भद्रकाली के दरबार में ही श्री कृष्ण और बलराम जी का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था यह भूमि धर्म क्षेत्र के नाम से भी जगत में प्रसिद्व है।पुराणों के अनुसार इस भूमि की कथा राजा कुरु से जुड़ी हुई है। महाभारत में इस विषय में बड़ा ही रोचक वर्णन आता है कहा जाता है कि, भरतवंश में *

*🌹राजा कुरु ने इस भूमि की अनेकों बार जुताई की और उन्हीं के नाम यह स्थान कुरुक्षेत्र* कहलाया। राजा कुरु की कर्म कौशलता पर प्रसन्न होकर ही देवराज इंद्र ने राजा कुरु को वरदान दिया था कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर युद्ध करते हुए मरेगा, उसे आपके पुण्य के प्रताप से स्वर्ग की प्राप्ति होगी। भगवान श्री कृष्ण इस वरदान के रहस्य को जानते थे इसी कारण उन्होंने कुरुक्षेत्र की भूमि महाभारत का युद्ध करवाया गीता का उपदेश देकर संसार में ज्ञान की ध्वज पताका फहरायी *

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🌹उल्लेखनीय है कि राजा कुरु कुरु वंश के प्रथम पुरुष थे। वे बड़े ही र्धर्मात्मा ,न्यायप्रिय, शौर्यशाली,प्रतापी और तेजस्वी राजा थे। इन्हीं की भातिं एक से बढ़कर एक प्रतापी और तेजस्वी वीर धर्मात्मा राजा कुरु के वंश में पैदा हुए। गौरतलब है,कि पांडवों और कौरवों ने भी कुरु वंश में ही जन्म लिया था* और इन्हीं कुरुवंशियों ने कुरुक्षेंत्र में ही आपस में महाभारत का युद्व लड़ा। जिसकी रोचकता का ‘वर्णन समूचे संसार में प्रसिद्व है। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार प्राचीन समय में, हस्तिनापुर में एक प्रतापी राजा थे, संवरण हुए। सूर्यदेव की पुत्री ताप्ती के साथ ये परिणय सूत्र में बधे इन्हीं से कुरु का जन्म हुआ। इन्हीं के नाम पर इस भूमि का नाम कुरुक्षेंत्र पड़ा
*🌹पुराणों ने इस पावन भूमि की बड़ी ही महिमां गायी है।कुरुक्षेत्र की पावन भूमि की महिमा के बारे में कहा गया है। कुरुक्षेत्र में आकर मनुष्य समस्त पापों से ‘मुक्त हो जाता है कहा तो यहां तक गया है।कि जो बार यह कहता है कि मैं कुरुक्षेत्र जाऊगां उस पर सहज’ में ही श्रीकृष्ण की कृपा होती है*

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यहां की उड़ी हुई धूल के कण यदि पापी मनुष्प के शरीर पर पड़ जाएं तो वह भी परम मुक्ति का भागी बनता है। नारद पुराण में आया है कि ग्रहों, नक्षत्रों एवं तारागणों को कालगति से (आकाश से) नीचे गिर पड़ने का भय है, किन्तु वे, जो कुरुक्षेत्र में मरते हैं पुन: पृथ्वी पर नहीं गिरते, अर्थात् वे पुन:जन्म नहीं लेते। भगवद्गीता के प्रथम श्लोक में कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र कहा गया है।
राजा कुरु का विवाह शुभांगी से हुआ, जिनके वशं का विस्तार बाद में कौरव और पाण्डवो के रुप में हुआ। लोक कल्याण के दृष्टिगत ही
इंद्र ने दिया राजा कुरु को वरदान
महाभारत के अनुसार, कुरु ने जिस क्षेत्र को बार-बार जोता था, उसका नाम कुरुक्षेत्र पड़ा। कहते हैं कि जब कुरु इस क्षेत्र की जुताई कर रहे थे तब इन्द्र ने उनसे जाकर इसका कारण पूछा। कुरु ने कहा कि जो भी व्यक्ति इस स्थान पर मृत्यु को प्राप्त हो, वह पुण्य लोक में जाए, ऐसी मेरी इच्छा है। इन्द्र ने उनकी बात का उपहास उड़ाया और वे स्वर्गलोक चले गए। देवगण राजा कुरु के पुरुषार्थ को जानते थे। उन्होने इन्द्र को समझाया राजा कुरु से वैर लेना बुद्धिमानी नहीं है। कुरु से मित्रता फायदे का सौदा है।देवताओ की बात पर मनन करते हुए
*🌹इन्द्र ने कुरु से मित्रता की तथा उसके पास जाकर कहा कि राजन् तुम व्यर्थ ही कष्ट कर रहे हो। मैं तुम्हें वरदान देता हूँ यदि कोई भी पशु, पक्षी या मनुष्य निराहार रहकर या युद्ध करके यहां मारा जायेगा तो वह स्वर्ग का भागी होगा। इस बात को भीष्म, कृष्ण आदि सभी जानते थे, इसलिए महाभारत का युद्ध कुरुक्षेत्र में लड़ा गया* इसके अलावा अनेक रोचक रहस्य इस भूमि से जुड़े हुए है यहां तीर्थ स्थलों की लम्बी श्रृखंला है। *🌹मान्यता है, कि कुरुक्षेंत्र की भूमि में ब्रहमा जी ने सहत्रों वर्ष पूर्व हजारों ऋषि मुनियों के साथ एक विराट यज्ञ का आयोजन किया ब्रहम सरोवर उस यज्ञ की याद का प्रतीक है*।यहां किये जानें वाला तर्पण पितरों के लिए परम कल्याणकारी माना जाता है।देश वह विदेश से यहां आकर श्रद्धालु बड़े ही श्रद्वा के साथ स्नान व अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं इसके अलावा ज्योतिसर तीर्थ जो कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थों में एक है यहीं वह स्थल है जहां पर भगवान कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।
और अर्जुन को अपना विराट रूप दिखाया था।बाण गंगा व माँ भद्रकाली मंदिर का भी अपना अलग महत्व है।इसके अलावा भगवान शिव को समर्पित शिव मंदिर की अपनी अलग की गाथा है और भी अनेक तीर्थ स्थल कुरुक्षेत्र की शोभा बढ़ा कर श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं

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