अपनी जड़ों से कभी मत कटो, हमारी संस्कृति में ही हमारा भविष्य बसता है” :समाजसेवी जीवन सिंह

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लालकुआँ/ क्षेत्र के प्रसिद्ध समाजसेवी जीवन सिंह ने युवाओं, बुजुर्गों और समाज के सभी वर्गों से अपनी संस्कृति, भाषा, परंपराओं और मूल पहचान को संजोकर रखने की अपील की है। एक भेंटवार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि “पहाड़ की संस्कृति केवल परंपरा नहीं, यह हमारी आत्मा और हमारी पीढ़ियों की विरासत है, जिसे भूलना अपने अस्तित्व को खोना है।”

जीवन सिंह ने बताया कि आज के आधुनिक युग में जहाँ तकनीक और शहरीकरण तेजी से बढ़ रहा है, वहीं युवाओं में अपनी भाषा, बोली और पारंपरिक मूल्यों से दूरी भी देखने को मिल रही है, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा
“समय चाहे कितना भी बदल जाए, लेकिन हमारी संस्कृति नहीं बदलनी चाहिए। हमारी बोली, हमारे त्योहार, हमारे देवता और हमारी परंपराएँ हमें वह पहचान देती हैं, जिस पर हमें गर्व है।”
उन्होंने समाज को जगाते हुए कहा कि उत्तराखंड की धरती देवभूमि कहलाती है क्योंकि यहाँ की मिट्टी में आध्यात्मिक ऊर्जा, भक्ति और दर्शन की अनोखी छाप है।
जीवन सिंह के शब्दों में—
“पहाड़ की संस्कृति में सिर्फ परंपरा नहीं, देवत्व का वास है। यहाँ का हर मंदिर, हर गीत, हर लोकनृत्य हमारी आत्मा का प्रतिबिंब है।”

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युवा पीढ़ी को संदेश देते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षा, नौकरी और आधुनिक सोच अपनाना आवश्यक है, परंतु अपनी जड़ों को छोड़ना नहीं चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा—
“जो युवा अपनी भाषा, अपने रीति–रिवाज और अपनी मातृभूमि से जुड़े रहते हैं, वही सच्चे अर्थों में आगे बढ़ते हैं।”

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अंत में जीवन सिंह ने सभी से अपील करते हुए कहा कि हमें मिलकर पर्वतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिए कुमाऊंनी-गढ़वाली भाषा, पारंपरिक पोशाकों, लोकगीतों, पर्वों और धार्मिक आस्थाओं को जीवनशैली का हिस्सा बनाना होगा।
उन्होंने संकल्प के साथ कहा —
“जिस दिन हर पर्वतीय अपने बच्चों को अपनी भाषा सिखाएगा, उस दिन हमारी विरासत फिर से स्वर्णिम होगी।”