समय, काल, परिस्थिति पर किसी का बस नहीं चलता, ठीक एक साल पहले यानि दिसंबर के शुरूआती दिनों में मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान सबसे बड़ा नाम हुआ करते थे मध्यप्रदेश की पूरी राजनीति उनके आसपास ही सिमटी हुई थी, लेकिन उसी दिसंबर में वक्त बदला भाजपा के विधायक दल की बैठक शुरू होने से पहले मोहन यादव पांचवी पंक्ति में बैठे थे, चंद मिनट बाद वे प्रथम पंक्ति के सबसे अहम किरदार हो गए। इस वक्त मध्य प्रदेश भाजपा की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान के कद के समान कोई दूसरा नेता नहीं था। मुख्यमंत्री की दौड़ में शिवराज सिंह चौहान के साथ कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल जैसे दिग्गजों के नाम थे। इन सबके बावजूद मोहन यादव को मुख्यमंत्री का ताज दिया गया। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनते ही उनके सामने कई चुनौतियां थी। जिसमें सबसे पहली चुनौती अपने काम के बल पर सफलता की नई कहानी लिखने की थी। तो दूसरी तरफ चाणक्य बनकर राजनीति की आड़ी तिरछी चालों से मुकाबला करना था।
अब इस दिसंबर में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को इस पद पर बने हुए एक साल हो रहा है। इस एक साल में उनके खाते में उपलब्धियां खूब आई तो राजनीति की चालों में वे विरोधियों के साथ साथ अपनों के निशाने पर भी रहे और उनके वार भी झेलते रहे। वहीं अपनी कूटनीति और रणनीति से वे प्रदेश भाजपा के कई मजबूत नेताओं को एक निश्चित दायरे में सीमित करने में भी सफल रहे। विरोधाभास यह भी कि कई फैसलों में दिल्ली ताकतवर नजर आई तो कई फैसलों में अफसरशाही हावी दिखाई दी। डॉ. मोहन यादव ने जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी, तब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती मध्य प्रदेश भाजपा के ताकतवर नेताओं के कद्दावर कद के बीच में स्वयं को स्थापित करने की थी।
सबसे पहले उनके सामने चुनौती तब आई जब उनके मंत्रिमंडल में कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल जैसे राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय मध्य प्रदेश के दिग्गज और वरिष्ठ नेताओं को मंत्री बना दिया गया। इनके साथ ही प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष रहे राकेश सिंह को भी मंत्रिमंडल में जगह दे दी गई। हालांकि भाजपा में यह परम्परा नई नहीं थी, बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री पद से हटाकर उन्हें शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था । इसी तरह पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी भी सुंदरलाल पटवा के मंत्रिमंडल में शामिल हुए। मंत्रिमंडल के गठन के पहले ही दिन से इस चुनौती से मोहन यादव जूझते रहे। हालांकि कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद पटेल, राकेश सिंह ने भी मुख्यमंत्री का साथ दिया और उनके कदम से कदम मिलाकर निर्णयों का स्वागत किया। इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री इस चुनौती से वे उभरते दिखाई दे रहे थे लेकिन राजनीति सदैव परिवर्तन शील ही रहती है यह तब दिखाई दिया जब दिसंबर में हुई कैबिनेट की बैठक में कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल ने सड़कों को लेकर आए प्रस्ताव पर आपत्ति जता दी। यानि दिग्गजों की इस चुनौती से मोहन यादव पूरी तरह से उभर नहीं सकें हैं।
*सिमटते शिवराज सिंह*
इधर मुख्यमंत्री बनने के बाद महज 6 महीने बाद ही शिवराज सिंह चौहान विदिशा लोकसभा सीट से सांसद बनकर दिल्ली चले गए। वे वहां केंद्रीय कृषि मंत्री बन गए। शिवराज सिंह चौहान का दिल्ली जाना मुख्यमंत्री मोहन यादव के लिए सुखद रहा। दरअसल शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री के रूप में मध्य प्रदेश में खासी लोकप्रियता हासिल कर ली थी। वे महिलाओं के भाई और मामा बन चुके थे। युवाओं में भी उनका क्रेज कम नहीं था। ऐसे में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को शिवराज सिंह चौहान के नाम और लोकप्रियता के आगे स्वयं को स्थापित करना भी कम चुनौती भरा नहीं था। शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं के उत्थान के लिए कई योजनाएं प्रदेश में लागू की। जिसमें लाड़ली लक्ष्मी योजना, लाड़ली बहना योजना ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचा दिया। मुख्यमंत्री रहते हुए शिवराज सिंह चौहान पूरे प्रदेश में सक्रिय थे। मोहन यादव के मुख्यमंत्री बनने के बाद जब चौहान केंद्रीय मंत्री बने तो मध्यप्रदेश में वे केवल विदिशा-रायसेन-सीहोर और देवास जिले तक यानि अपने लोकसभा क्षेत्र तक ही सिमट गए हैं। वैसे केंद्रीय कृषि मंत्री के रुप में शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों में अब खासे सक्रिय हो गए हैं।
*संगठन में भी सफल रहे यादव*
डॉ. मोहन यादव ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी तब संगठन में उनके समर्थकों की संख्या कम थी, उस वक्त संगठन के अधिकांश नेता शिवराज सिंह चौहान की ताारीफों के कसीदे गढ़ते थे लेकिन अब इनमें से अधिकांश नेता मोहन यादव के समर्थक हो गए हैं। इस मामले में वे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा से ज्यादा मजबूत माने जाने लगे हैं। संगठन के पदाधिकारी मोहन यादव के निर्णयों का खासा प्रचार कर, उनकी लोकप्रियता बढ़ाने में जुटे हुए हैं। इस काम में लगभग पूरा संगठन मुख्यमंत्री के साथ कदम ताल करने लगा है। हालांकि केंद्रीय योजनाओं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के काम-काज का प्रचार करने में ये पदाधिकारी उतने सक्रिय नहीं हैं, जितने डॉ. मोहन यादव की योजनाओं और कामकाज का प्रचार-प्रसार और तारीफ करते हैं।
*अफसरों पर कभी भारी तो कभी कमजोर*
मुख्यमंत्री बनने के बाद मोहन यादव के तेवर देख कर अफसर भी दंग थे। शाजापुर जिले के तत्कालीन कलेक्टर किशोर कान्याल ने एक ड्राइवर को अपमानित कर दिया, इस पर मुख्यमंत्री ने उनका तबादला कर दिया। ऐसे ही कई उदहारण उन्होंने अफसरशाही में प्रस्तुत किए। इसी दौरान उन्होंने ऐसे अफसरों को फील्ड से हटाया जो लंबे समय से फील्ड में पदस्थ थे। इससे कई ऐसे अफसरों को मौका मिला जो कुछ वर्षो से उपेक्षा का शिकार सा महसूस कर रहे थे। इसी बीच उन्होंने मुख्यमंत्री सचिवालय में अफसरों की पदस्थापना की। इन्हीं में से एक अफसर को मुख्य सचिव बनाए जाने की चर्चा होने लगी थी, लेकिन मुख्य सचिव का फैसला दिल्ली से ही तय हुआ माना गया। वहीं इसी दौरान उन्होंने किशोर कान्याल को श्योपुर जिले का फिर से कलेक्टर बना दिया, यानि उनके तेवर कान्याल को लेकर क्यों नरम हुए, यह सवाल खड़ा हो गया। दूसरी ओर पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति में मोहन यादव ने अपनी ताकत का अहसास करवाया और अपनी पसंद के कैलाश मकवाना को यहां पर पदस्थ किया। इसके साथ साथ चर्चाएं तो यह भी हैं कि अफसर मुख्यमंत्री के आदेशों में जमकर अडंगे लगा रहे हैं और मुख्यमंत्री के सैकड़ों आदेशों को दबा दिया गया है।
*उम्मीदें जो बाकी हैं*
कुल मिलाकर मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. यादव का एक साल अच्छे से बीत गया, अब आने वाले वर्षो में उनसे सबसे ज्यादा उम्मीद उन लाड़ली बहनों को होगी, जिन्हें पिछले साल से ही हर महीने 1250 रुपए मिल रहे हैं। यह राशि तीन हजार रुपए तक ले जाने का भाजपा का वादा है। अब इस राशि में कब बढ़ोतरी होती है, इस उम्मीद में प्रदेश में सवा करोड़ से ज्यादा महिलाएं हैं। वहीं मध्य प्रदेश में इन दिनों रीजनल इंडस्ट्री कॉन्क्लेव हो रहे हैं। इसमें आने वाले निवेश का भी लोगों को इंतजार है, बेरोजगारों को रोजगार का इंतजार है। राज्य पर बढ़ते कर्ज के बोझ से कैसे छुटकारा मिलेगा इसका भी लोगों को इंतजार है।
कुल मिलाकर एक साल में डॉ. मोहन यादव प्रदेश में चुनौतियों से लगभग उभर चुके हैं और मजबूती से स्थापित हो गए हैं, अब दूसरा साल उनका शुरू होने जा रहा है। केंद्रीय नेताओं और केंद्रीय सरकार से भरपूर सहयोग मिलने से यह उम्मीद की जा सकती है कि मुख्यमंत्री का दूसरा साल पहले साल से बेहतर साबित होगा और उनके कार्यकाल में मध्यप्रदेश के नागरिकों का जीवन सुख,समृद्धि और खुशहाली से भरपूर रहेगा।
(पवन वर्मा-विनायक फीचर्स)
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