हल्दूचौड़ में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ आज से प्रसिद्ध आत्म ज्ञानी संत दुर्गा दत्त शास्त्री वाचगें कथा कथा को लेकर जबरदस्त उत्साह

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हल्दूचौड़/ पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल के हल्दूचौड़ डूंगरपुर आवास में 30 अक्टूबर सोमवार से श्रीमद् भागवत कथा प्रवचन ज्ञान यज्ञ का आयोजन होने जा रहा है कथा को लेकर समुचित क्षेत्र में जबरदस्त आध्यात्मिक उत्साह छाया हुआ है हिमालय भूमि के प्रसिद्ध संत श्री दुर्गा दत्त शास्त्री जी यहां कथा का वाचन करेंगे श्री बद्रीनाथ आश्रम सोमेश्वर से यहां पहुंच कर उनके द्वारा कथा वाचन किये जाने की सूचना पर भक्त जनों ने उनके स्वागत की जबरदस्त तैयारी की है
कथा के यजमान श्रीमती एवं श्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल श्रीमती एवं श्री धारा बल्लभ दुर्गापाल श्रीमती एवं श्री हेमचन्द्र दुर्गापाल ने बताया कि 30 अक्टूबर की प्रातः 8 बजे से भव्य कलश यात्रा निकाली जाऐगी पंचाग पूजन मूल पाठ जप आदि के पश्चात् प्रतिदिन एक बजे से सांय चार बजे तक कथा का वाचन होगा तत् पश्चात् आरती प्रसाद संध्या वंदन भजन कीर्तन आदि अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित होगें
5 नवम्बर रविवार को पूर्णाहूति व भण्डारे का आयोजन होगा
लोक मंगल व पितृ जनों को समर्पित इस कथा में प्रसिद्व कथावाचक, बद्रीनाथ आश्रम सोमेश्वर से यहाँ पहुंच रहे श्री दुर्गा दत्त शास्त्री महाराज जी अपनी सुधामयवाणी से भागवत कथा वाचेगें।

दुर्गापाल परिवार ने अधिक से अधिक सख्यां में कथा श्रवण को पहुचनें का आवाहृन किया है।

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इधर श्री दुर्गा दत्त शास्त्री जी का कथन है। हर पल नाम सुमिरन व भक्ति करना ही जीवन का मूल उद्देश्य होना चाहिए। सांसारिक कार्य करने के बाद पश्चाताप हो सकता है, परन्तु ईश्वरीय भक्ति, साधना, ध्यान, परोपकार के पश्चात् पश्चाताप का कोई स्थान नही वरन् आनन्द ही आनन्द है। आत्म संतोष की अनुभूति भागवत कथा के श्रवण से प्राप्त होती है।

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वे बताते है,अमृत से मीठा अगर कुछ है तो वह श्री कृष्ण का नाम है,सत्यता के मार्ग पर चलकर परमात्मा प्राप्त होंते है, मन-बुद्धि, इन्द्रियों की वासना को यदि समाप्त करना चाहते हो तो हृदय में परमात्मा की भक्ति की ज्योति को जलाना पड़ेगा।
भागवत की महिमां पर प्रकाश डालते हुए वे कहतें है।श्रीमद्भागवत वेद रूपी वृक्षों से निकला एक अद्भूत पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण परम मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है।यही भागवत की परम विशेषता है। इस अलौकिक रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य कृत कृत हो जाता है इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण निरंतर करते रहना चाहिये

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