काठगोदाम के निकट इस स्थान पर तपस्या की लकांपति रावण के दादाजी महर्षि पुलस्त्य ऋषि ने

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आदि शक्ति भगवती महाकाली की महिमा अनंत है* मनुष्य तो क्या बड़े-बड़े ऋषि-मुनि, त्यागी-तपस्वी, सुर -असुर कोई भी माँ की महिमा का बखान करने में पूर्णतः समर्थ नहीं है। शास्त्रों तथा पुराणों में महामाया के विविध स्वरूपों का तथा उनकी उपासना पद्वतियों का विषद वर्णन मिलता है। सृष्टि के मूल में स्थित महामाया भगवती काली सम्पूर्ण जगत की नियंतता है। वह कल्याण स्वरूपा है, करूणामयी है, दयामयी है प्राणीमात्र के मंगल का कारणरूप है। माँ का जिस स्वरूप का जिसने भी स्मरण किया माँ ने उसी रूप में उसके भाव सदैव ग्रहण किये व उस प्राणी का सदा कल्याण किया।
*☘कल्याणी कालिका के इस भू-लोक में अनेक शक्ति स्थल है* जिनकी विमल आभा में प्राणी जगत स्वयं को सदैव सुखी व सुरक्षित महसूस करता है। ऐसा ही एक परम शक्ति स्थल है कालीचौड़ धाम। एक ऐसा धाम जहां निर्मल मन से की गयी प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती। हमारे विद्वान महापुरूष कतिपय कारणों से या फिर सम्भवतः जानकारी के अभाव में इस दिव्य धाम को शक्ति पीठ की मान्यता प्रदान न कर सके जबकि वास्तविकता यही है, कि कालीचौड़ धाम की महिमा किसी शक्तिपीठ से कम नहीं है।
देवालयों की लम्बी श्रृंखला के क्रम में जगतजननी जगदम्बा के कालीचौड़ स्थित काली मंदिर की महिमा का यहां विशेष महत्व है।
‘‘* *☘☘☘☘🌹🌹🌹🌹🌹✨काली-काली महाकाली कालिके परमेश्वरी*
*सर्वानन्द करो देवी नारायणी नमोअस्तुते**।’’
काली का यह पावन मंत्र वियावन वन के मध्य कालीचौड़ में काली भक्तों के मुखारबिंदु से अक्सर गुंजायमान रहता है। आध्यात्मिक शांति को समेटे काली चौड़ का काली मंदिर माता जगदम्बा की ओर से भक्तों के लिए अनुपम भेंट है। पावन भूमि उत्तराखण्ड में *🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🥬🍂🕉कुमाऊं क्षेत्र के अन्तर्गत काठगोदाम के पास वियावान वन में स्थित काली का यह मंदिर प्राचीन काल से ऋषि-मुनियों की आराधना और तपस्या का केन्द्र रहा है। हिमालयी भू-भाग में काली के जितने भी प्राचीन शक्तिपीठ व मंदिर है। वे सभी परम आस्थाओं के केन्द्र हैं। लौकिक व अलौकिक आस्थाओं की सिद्वि का केन्द्र कालीचौड़ के प्रति भी भक्तों में अपार व अटूट विश्वास है। यह एक ऐसा स्थान है जहां पंहुचते ही सांसारिक* मायाजाल में भटका मानव अनायास ही कालिका के चरणों में निराली शांति का अनुभव करता है। यह देवी दरबार प्राचीन काल से ही पूजनीय रहा है। कथाओं के अनुसार सतयुग में सप्त ऋषियों ने इस स्थान पर भगवती की आराधना, तपस्या करके मनोवांछित लौकिक व अलौकिक सिद्वियां प्राप्त की इन्हीं सिद्वियों के प्रताप से उन्होंने सप्तऋषि लोक की प्राप्ति की। श्री मार्कण्डेय ऋषि ने भी यहां तपस्या करके काली की कृपा को प्राप्त किया। यूं तो उत्तराखण्ड की धरती पर अनेकों स्थानों में सप्तऋषियों ने तपस्या की जिनमें झाकर के सैम दरबार के आसपास वनों में लोहाघाट के ऋषेश्वर क्षेत्र में इनकी तपस्या का वर्णन पुराणों के आधार पर मिलता है पर कहते हैं काली की कृपा के पश्चात ही सप्तऋषियों ने हिमालय को अपनी तपस्या का केन्द्र बनाया। मार्कण्डेय ऋषि ने इस दरबार में अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प काली के चरणों में इतनी अगाध भक्ति व श्रद्वा से अर्पित किए कि काली कृपा ने उन्हें समस्त चराचर जगत की नश्वरता का ज्ञान दे डाला। अखण्ड ज्ञान को प्राप्त करके ही उन्होंने संसार को ज्ञान का अलौकिक प्रकाश दिया। शक्ति की कृपा के फलस्वरूप ही इन्होंने श्री महाकाली दरबार के निकट ही पाताल भुवनेश्वर में पुराणों की रचना की और पूज्यनीय बने भुवनेश्वर महात्म्य में आया भी है।
‘‘समार्चाति विद्यानेन श्रियं प्राप्तनोति मानवः
कपिलाद्या महात्मानों मार्कण्डेयादयों नृप (340)
मानसखण्ड भुवनेश्वर महात्म्य
अर्थात मार्कण्डेय ऋषि भुवनेश की पूजा में यहां विराजमान होकर भक्तों द्वारा पूजित हैं।
*🌷🌼🌼🌼🌌ऐसा माना जाता है कि जब बाबा गुरु गोरखनाथ जी ने इस वसुधरा में कदम रखा तो सर्वप्रथम इसी क्षेत्र को अपनी आराधना व तपस्या का केन्द्र बनाया क्योंकि कुमाऊं का प्रवेश द्वार क्षेत्र होने से भी यह क्षेत्र यहां पधारने वाले संतो, ऋषि-मुनियों का प्रथम पड़ाव रहा है। इसी कारण से माना जाता है जब गुरु गोरखनाथ जी यहां की धरती पर आये तो सर्वप्रथम इस क्षेत्र में अपना पड़ाव डालकर उन्होंने यहां धूनी रमाकर कालिका की कठोर आराधना की और बाद में काली कृपा से उन्हें यहां के महान प्रतापी देवता हरू, सैम, गोल्ज्यू समेत अनेक देवताओं के गुरू होने का गौरव प्राप्त हुआ। चम्पावत में जल रही गुरू *🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲गोरखनाथ जी की अखण्ड धूनी ‘‘काली की गोरख’’ पर हुई कृपा का ही प्रताप मानी जाती है। महायोगी महेन्द्र नाथ, सोमवारी बाबा की तो यह अद्भुत साधना स्थली कही जाती है* इतना ही नहीं नानतिन बाबा, टाटम्बरी बाबा, हैड़ाखान बाबा सहित अनेकों संतों ने इस स्थान पर साधना करके कालिका माता से निर्मल ज्ञान की प्राप्ति की यहां की प्राचीन सिद्व शक्ति पीठ में सिद्वबली हनुमान, काल भैरव व भगवान शिव की मूर्तियां विराजमान हैं। पौराणिक काल से अनेक कथाओं को समेटे यह स्थल ऋषि-मुनियों की आराधना के पश्चात काफी समय तक गोपनीय रहा आधुनिक समय में यह स्थान लगभग सात दशक पूर्व प्रकाश में आया कहा जाता है कि वर्ष 1942 से पूर्व कलकत्ता में एक बंगाली भक्त को माता कालिका ने स्वप्न में दर्शन देकर कृतार्थ किया व इस स्थान पर अपनी अलौकिक शक्ति होने का भान कराया। दिव्य प्रेरणा से अभिभूत उस काली भक्त ने इस स्थान की खोज की। व बाद में हल्द्वानी निवासी रामकुमार जी ने इस स्थान को बंगाली बाबा के साथ मिलकर माँ की कृपा से मंदिर रूप में स्थापित किया। मंदिर के समीप ही एक तामपत्र निकला इसमें पाली भाषा में महाकाली मंदिर महात्म्य का उल्लेख किया गया है।
*🍃🍃🍃🍃🍃🍃🌻सनातन धर्म की महान ध्वजावाहक आदि जगतगुरु शंकराचार्य महामाया भगवती के अनन्य भक्त थे। देवाधिदेव महादेव की असीम कृपा तथा अपने अंतरमन की प्रेरणा के फलस्वरूप उनके मन में भगवती काली के विविध स्वरूपों तथा शक्तिपीठों के दर्शन की इच्छा जागृत हुई और इस हेतु उन्होंने सम्पूर्ण भारतभूमि के भ्रमण का निश्चय किया* जहां-जहां भी माँ जिस रूप में स्थित थी वहां-वहां उन्हें माँ के उस स्वरूप के दर्शन हुये।
*☘🍂भारत भ्रमण करते हुये जगदगुरु शंकराचार्य ने जब हिमालय के अंचल में अवस्थित देवभूमि उत्तराखण्ड में पदापर्ण किया तो उनके आनंद का कोई पारावार नहीं था। कूर्मांचल की तराई में आगमन पर सर्वप्रथम जगद्गुरु ने गार्गी गंगा के दर्शन तथा इस पवित्र नदी में स्नान की इच्छा अपने भक्तों के बीच व्यक्त की* कुछ स्थानीय भक्तों ने उनकी इस इच्छा को पूर्ण करने में अपना योगदान दिया।
इसी क्रम में जगद्गुरु एकाएक कह उठे कि ‘‘यहां तो भगवती काली की अद्भुद आभा सर्वत्र बिखरी है।’’ अवश्य ही कही आस-पास में वह आदिशक्ति विद्यमान है। यह सुनकर स्थानीय भक्तों ने जगद्गुरु को गार्गी नदी के उस एक प्राचीन मंदिर स्थित होने की जानकारी दी। फिर क्या था शंकराचार्य समस्त भक्त मण्डली के साथ तत्क्षीण माँ काली के उस दरबार की ओर प्रस्थान कर गये और वहां पहुंचकर वीरान वन में स्थित पवित्र दरबार के दर्शन कर धन्य हो गये।
*💐🌷🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲कहा जाता है कि कूर्मांचल के पर्वतीय भू-भाग में चरण रखने से पूर्व आदिगुरु कई दिनों तक इस दिव्य स्थल में साधनारत रहे। इस बीच उनके अनुयायों की संख्या निरन्तर बढ़ती रही पुराने बुर्जग बताते हैं कि यह मंदिर घनी झाड़ियों के बीच स्थित था जहां बढ़ने योग्य स्थान का अभाव था। आदिगुरु के आदेश पर तब भक्त मण्डली द्वारा मंदिर के चारों ओर की झाड़ी व उबड़-खाबड़, भू-भाग को काट कर चौरस किया गया और यही से लोग इसे कालीचौड़ कहने लगे। इसके अलावा नाम को लेकर और भी अनेक किवदंतियां हैं किन्तु इतना अवश्य है कि आदिगुरु *🕉शंकराचार्य ने इस दिव्य स्थल के दर्शन के पश्चात् ही पर्वतों की ओर अपनी यात्रा का शुभारम्भ किया*। पवित्र धाम काली चौड़ में तभी से माँ काली के वैष्ण स्वरूप की पूजा की प्राचीन परम्परा लोक संस्कृति का अभिन्न अंग बन गई जो आज भी जीवंत है।
पुराणों के अनुसार इस भू-भाग में सटे तमाम पर्वतीय क्षेत्र महान् आस्थाओं के सिद्व क्षेत्र हैं। इन्हीं क्षेत्र में लंकापति रावण के पितामह पुलस्त्य ऋषि ने काली की कठोर तपस्या करके उनके दर्शन किए स्कंद पुराण के *इकतालीसवें अध्याय के उपरोक्त श्लोक –
*🌱अत्रिः पुलस्त्यः पुलहः ऋषयो गर्ग पर्वतम्*
से यह संकेत मिलता है कि महर्षि पुलस्त्य के साथ यहां ब्रह्म पुत्र अत्रि पुलह ने भी इन वन क्षेत्रों में घोर तपस्या की है। गर्ग ऋषि की तपस्थली भी इस क्षेत्र की परिधि के पवित्र पर्वत ही रहे हैं। इसी पर्वत माला में गर्गांचल पर्वत का जिक्र भी महर्षि व्यास जी ने मानस खण्ड में ‘‘शेषस्य दक्षिणे भागे पुण्यो गर्गगिरिः स्मृत।’’ के नाम से इन तमाम क्षेत्रों की महिमा स्कंद पुराण में गाई है। कालीचौड़ मंदिर के एक ओर गर्गांचल व समीपस्थ ही भद्रवट क्षेत्र भी स्थित है। भद्रवट का स्मरण ही करोड़ों पापों को दूर भगा देता है। व्यास जी का यह कथन मानस खण्ड के 42वें अध्याय के तीसरे श्लोक से स्पष्ट है।
‘‘*क्षेत्र भद्रवट नाम *🌸सर्वपापप्राणशनम्’’ अर्थात् इस क्षेत्र की उपमा व्यास जी ने तीर्थराज के रूप में की है*।
*🥬🥬🥬🥬🥬🥬🌹🌹🌹🌹☘☘☘कालीचौड़ के आसपास पवित्र पहाड़ों में तीर्थों की भरमार है। ये किसी न किसी ऋषि-मुनियों की तपस्याओं के महान केन्द्र रहे हैं। कालीचौड़ क्षेत्र के बारे में श्रीमद्भागवत में भी कथा आती है कि इस क्षेत्रों में शिव व शक्ति की आराधना करते हुए एक बार ऋषि मार्कण्डेय ने स्वर्ग में भी हलचल पैदाकर दी उनके कठोर तप को भंग करने के लिए देवराज इन्द्र ने प्रकृति के देवता यम, वरूण, अग्नि सहित अनेक अप्सराएं भेजी जब इन्द्र सहित सभी देव असफल हो गये तब भगवान के रूप में नर और नारायण ऋषि से वरदान मांगने को कहा। दर्शन से प्रसन्न *🥬🥬🥬🥬🥬🌹🌹🌹🌹मार्कण्डेय जी ने प्रभु से प्रभु की कृपा को मांगा इस दौरान धन्य मार्कण्डेऋषि को नश्वर माया का ज्ञान प्राप्त हुआ। ये चिरजीवी ऋषि के रूप में संसार में प्रसिद्व हुए*। श्री महाकाली की कृपा के प्रताप से ही मार्कण्डेय ऋषि की पूजा लोग चिरजीविता के लिए करते हैं। माता महाकाली के शक्ति स्थल उत्तराखण्ड मंे अनेकों स्थानों पर मौजूद हैं। कालीचौड़ की कालिका की कथा, महिमा, अनन्त है। इसे शब्दों में समेट पाना किसी भी प्राणी के लिए सहज व संभव नहीं है। इस स्थान पर काली कब से और किस कारण पूजित है। इस बारे में कोई स्पष्ट मत नहीं है। पुष्पभद्रा तीर्थ-महात्म्य के 40वें अध्याय में ‘‘वाम तत्र महादेवी चण्डिका परमेश्वरी’’ के नाम से इस देवी की विराट महिमा की ओर इशारा किया गया है। जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट क्षेत्र में स्थित श्री महाकाली का शक्ति पीठ भी सदियों से पूजनीय है। इस मंदिर की ख्याति देश-विदेशों तक है। जगतगुरु शंकराचार्य जी ने अपने तपोबल से इस स्थान पर काली माँ के दर्शन किए।
बड़ा ही विराट है, कालीचौड़ की कालिका का स्वरूप यहां मूर्ति रूप में पूजित काली गंगोलीहाट में शक्ति पीठ के रूप में पूजी जाती है। *🥬🥬🥬🥬🌹कालीचौड़ की महिमा का एक रूप गंगोलीहाट की महाकाली का दरबार भी है। यह भी सदियों से पूज्यनीय है। बागेश्वर के समीप कांडा से आगे भद्रकाली का दरबार कालिका की विराटता को प्रकट करता है। इस मंदिर के नीचे एक छोटी गुफा है और बीच में एक शिवलिंग भी *🌹दुर्गासप्तशती में ‘‘भीतेभद्रकाली नमोअस्तुते’’ नामक मंत्र से इस देवी की स्तुति की गई है। जिस प्रकार से *🥬🥬🥬🌹🌹🌹☘कालीचौड़ के निकट स्थित पर्वत व क्षेत्र को ‘‘भद्रवट’’ कहा गया है। उसी भांति यहां स्थित कालिका का जो शक्तिपीठ है। पुराणांे में इस क्षेत्र को भद्रपुर कहा गया है। कालिया नाग व भद्रनागों को भी यह तपोभूमि है। यहां इन नाग मंदिरों में पूजा करने से प्राणी को सर्प भय नहीं रहता है। पुराणों के अनुसार इस क्षेत्र में कालिया नाग ने कालिका का पूजन किया। कालीचौड़ की काली महिमा की विराटता का कहीं कोई पारावार नही है। कुमाऊं के काली मंदिरों के हर स्थान पर काली की कोई न कोई अलौकिक लीला के रहस्य है। कालीचौड़ भी इन्हीं में से एक है*
।। *🌹जय काली मैय्या🌹*।।

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