हिमालय की भूमि से रहा है खाटू श्याम का गहरा नाता इनके पिता व दादी का मन्दिर है कुमाऊँ के इस क्षेंत्र में, पढ़िये रोचक गाथा

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।। श्री श्याम महिमा ।।
श्री श्याम बाबा की महिमा का वर्णन अतुलनीय है। अर्थात् उसकी कहीं भी तुलना नहीं की जा सकती है। समस्त तुलनाओं से परे श्री श्याम बाबा की महिमा का वर्णन कर पाने में वसुंधरा में कोई भी सक्षम् नही है। उनकी महिमाओं का दिव्य लीलाओं का बखान समय-समय पर अनेक भक्तजनों ने लोक कल्याणार्थ मंगलकामनाओं के लिए अपने-अपने शब्दों में किया है। किन्तु वे शब्दों से भी परे हैं। कलियुग के संतापों से प्राणी मात्र का उद्दार करने के लिए उनका अक्तरण इस भू-धरा पर हुआ है। योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही अपने मुखारबिन्दु से अपने श्याम स्वरूप को कलिकाल का तारणहार बताते हुए कहा है। कि जो भी प्राणी अपनी अराधना के श्रद्धापुष्प श्री श्याम चरणों में अर्पित करेगा। उसके रोग, शोक, दुःख, दरिद्र एवं विपदाओं का हरण हो जायेगा। समस्त लोकों में वह पुरूष सर्वत्र ही पूज्यनीय होगा। इसमें तनिक भी संदेह नही है। स्वयं योगश्वर भगवान श्री कृष्ण का यह वचन आध्यात्म प्रेमी भक्तजनों के लिए उनका द्वारा दिया गया अनुपम उपहार है।

इसलिए कलियुग में श्री श्याम परम आस्था व श्रद्धा के साथ पूज्यनीय है। उनकी लीला को समझने में आखिर कौन समर्थ हुआ है। अर्थात् कोई नहीं कण-कण में व्याप्त बाबा श्याम अनन्त रूपों से इस संसार में पूज्यनीय है। हे! खाटू वाले श्याम बाबा तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम है।

महायोगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की कृपाओं की लीलाओं का वर्णन अवर्णनीय है। भक्तों की रक्षा के लिए समय-समय पर प्रभु ने इस पृथ्वी पर अवतरित होकर धर्म की रक्षा कर भक्तों का मान बढ़ाया है। इस त्राहिमान कलियुग में जब प्राणी चारों ओर से व्याधियों से घिरा हुआ है। अपने मूल स्वरूप से भटक गया है। ऐस समय में प्रभु में खाटू श्याम के रूप में अवतरित होकर खाटू धाम में भक्तों के कल्याण के लिए विराजमान है। इसलिए कलयुग में आपको श्याम अवतार माना जाता है।

श्री श्याम के रूप में श्री कृष्ण के अवतरण की लीला बेहद अलौकिक है। भगवान श्री खाटू श्याम पाण्डव नंदन महाबली भीमसेन के पौत्र तथा परमवीर घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक व बबरूभानु के नाम से भी इनको जाना जाता है। इनकी माता का नाम कंटका अहलवती था। ये भगवान शिव व पार्वती के अनन्य भक्त थे। इन्हीं की कृपा से इन्हें तीन दिव्य बाण प्राप्त थे, जो शिव त्रिशूल के समान प्रभावकारी थे। महाभारत के युद्ध अवधी में युद्ध की विराट की चर्चा को सुनकर इनके मन में भी युद्ध देखने तथा युद्ध करने की प्रबल इच्छा जाग्रत हुई यह इच्छा उन्होंने अपनी माता के सम्मुख रखी वीर बालक की जिज्ञासा व वीरता के परम प्रभाव से माता अहलावती ने पुत्र की इच्छा पर हामी भरते हुए धर्मप्रेरित आज्ञा देते हुए कहा कुरूक्षेत्र में इकट्ठे योद्धाओं के प्रभाव को न देखते हुए तुम निष्कामी रूप से युद्ध देखना तथा जो पक्ष हारने लगे इस पक्ष का सहारा बनना और साथ ही यह भी ध्यान रखना कोई भी तुम्हें अपना समझकर कुछ भी दान मांगे उसे दान देना यही तुम्हारा धर्म है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सामने निस्तेज तीन दिव्य बाणों को तुरीण में धारण कर पाण्डव पौत्र बर्बरीक नीले घोड़े पर सवार होकर युद्ध देखने निकल पड़े। कुरूक्षेत्र की ओर उनके आगमन से सारी दिखायें व सारे देवतागण व ब्रह्माण्ड की अलौकिक दिव्य शक्तियाँ उनकी स्तुति करने लगे। समय चक्र भी इस वीर बालक के युद्ध भूमि के प्रस्थान का दृश्य देख स्वयं को धन्य समझने लगा। उधर भगवान श्री कृष्ण का योग जागृत हुआ। वे अचरज में पड़ गये। वे अपने भक्त की शक्ति व पराक्रम भरी शक्ति से भली भांति परिचित थे।

श्री कृष्ण समझ गये यदि बर्बरीक युद्ध भूमि में कूद पड़े तो सारे ब्रह्माण्ड का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा भगवान श्री ने ब्रह्माण का वेश धारण कर अर्जुन को भी शिष्य रूप में ब्रह्मवेश में साथ लिया और वियावान जंगल में खड़े होकर बर्बरीक की प्रतीक्षा करने लगे। जब बर्बरीक श्री कृष्ण के समीप पहुंचे तो ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण के समीप पहुंचे तो ब्राह्मण वेश धारी श्री कृष्ण के चरणों में दण्डवत प्रणाम कर बर्बरीक ने कहा हे? ब्राह्मण देवता मैं कुरूक्षेत्र की ओर युद्ध के लिए प्रस्थान कर रहा हूँ। मुझे आशीर्वाद देकर मेरा मार्ग प्रशस्त कीजिये। नीतिनिपुण योगेश्वर श्री कृष्ण बोले हे, वीर आप कौन हैं। कहां से आये हो, आपकी सेना कहा है। आपनै सै छोटे बालक का युद्ध भूमि में क्या प्रयोजन है। यदि आप कुरूक्षेत्र की ओर जा रहे हो। तो हे, वीर बालक योद्धा तुम किस पक्ष की ओर से युद्ध करोगे कौरव या पाण्डव? बर्बरीक माता का आदेश शिरोधार्य मानकर तपाक से बोले मेरी कोई सना नही। माता भवानी व पिता महादेव का आशीर्वाद ही मेरी परम सेना है। मैं हिम द्वीप से कुरूक्षेत्र की ओर प्रस्थान कर रहा हूँ। युद्ध देखना मेरी अभिलाषा है। मेरी माता ने मुझे आज्ञा दी है। जो हारेगा उस ओर से ही मुझे युद्ध करना है। सो मैं माता की आज्ञा का पालन करूंगा मेरे पास शिव शक्ति के प्रताप से प्राप्त आशीर्वाद के रूप में तीन बाण हैं, ये तीन बाण ही त्रिलोक के लिए काफी हैं। श्री कृष्ण ने अपनी योग लीला रचकर बबरूभानु (बर्बरीक) से कहा कि अपनी वीरता की डींग नहीं मारों तुम अभी बालक हो बालहठ छोड़कर घर जाओं खेलकर मौंज करो श्री कृष्ण से इतना कहते हीं बालक बबरू का स्वाभिमान जाग उठा वे अधीर होकर बोल उठे हे? ब्राह्मण मेरी शक्ति का पौरूषार्थ आप किस रूप में देखना चाहते हैं। नीति निपुण मधुसूदन तपाक से बोल उठे यदि तुम वास्तव में वीर हो, भगवान शिव व माता पार्वती के परम भक्त हो तो दिखलाओं अपना पौरूषार्थ। जिस पीपल के वृक्ष की छवि में हम खड़े हैं। इसके सारे पत्ते एक बाण से बीध दो तो जानें, कि तुमने जो कहा वही सत्य है। श्री कृष्ण की चातुर्यपूर्ण चुनौती काम कर गयी ब्राह्मण वेश में खड़े श्री कृष्ण की बात सुनकर वीर बर्बरीक ने हसते हुए अपने ईष्ट का ध्यान करते हुए बाण छोड़ा जिसने समस्त पत्तों को बीधकर श्री कृष्ण के चरणों को भी बीध डाला क्योंकि एक पत्ता योगेश्वर श्री कृष्ण ने अपने पांव तले दबा लिया था, उनकी इस वीरता भरे चमत्कार को देखकर श्री कृष्ण ने सोचा कि इस वीर के रहते युद्ध का निर्णय होना मुश्किल है। उन्होंने लीला रचकर फिर कहा कि हे? बालक तुम्हारी वीरता की उपमा किसी से भी नहीं की जा सकती है। तुम अतुलनीय वीर हो लेकिन तुम दानवरी हो ये मैं कैसे मानू बिधे पांव पर पीड़ा का श्वांग रचते हुए प्रभु ने यह बात वीर बर्बरीक से कही बर्बरीक ने उत्तर दिया दान मांगना हे? ब्राह्मण देवता आपका अधिकार है। मेरे बाण से तुम्हारे पैर को जो पीड़ा हुई हैं। उस अपराध के लिए भी मैं क्षमा प्रार्थी हूँ। तुम दान मांगकर अपनी यह इच्छा पूरी कर लो इतना सुनते ही ब्रह्म वेश में खड़े श्री कृष्ण ने कहा यदि तुम दानी हो तो दे दो अपना शीश मुझे, जब बर्बरीक ने यह सुना तो वे अचम्भे में पड़ गये, और उनका विवेक परम रूप से जागृत हुआ वे सोचने लगे कि इतना भयंकर दान मांगने वाला कोई साधारण व्यक्ति नही हो सकता तब बर्बरीक ब्राह्मण वेशधारी श्री कृष्ण के हाथ जोड़कर कहने लगे कि मैं अपने वचन को अवश्य पूरा करूंगा लेकिन आप जो भी हो प्रत्यक्ष रूप में दर्शन दें, इतना कहते ही भगवान श्री कृष्ण ने चतुर्भुज रूप में उन्हें दर्शन दिये। धन्य हुए बर्बरीक श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़े ओर कहने लगे हे! माधव आपको यदि मेरे शीश की ही आवश्यकता थी तो प्रभु आपने इतना कष्ट क्यों उठाया मेरा सर्वस्व आपका ही तो है। फिर पल भर ठहरने के बाद वे कहने लगे हे! मधुसूदन मैं आपको अपना शीश प्रदान करता हूँ। किन्तु प्रभु महाभारत का युद्ध देखने की मेरी बड़ी इच्छा है। इस इच्छा को आप ही पूरा कर सकते हैं, कि मैं इसे निष्पक्ष रूप से देखूं, इस पर मधुसूदन बोले तुम तो साक्षात् मेरा ही स्वरूप हो तुम्हें मैं अपना रूप कलियुग में भक्तों के कल्याणार्थ प्रदान करता हूँ। तुम शाश्वत रूप से सदैव पूजित रहोगे और कलयुग में भक्तों के तारण हार बनोगे श्री कृष्ण के वरदान के पश्चात बर्बरीक ने अपनी कमर से तलवार निकालकर एक झटके में अपना शीश काटकर श्री कृष्ण के चरणों में रख दिया भगवान श्री कृष्ण ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंचे स्थान पर विराजमान कर दिया।

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इसके पश्चात माधव मधुसूदन की रोचकता श्री श्याम रूप में अग्रपथ की ओर अग्रसर होती है। कहते हैं, कि अठारह दिन के महाभीषण संग्राम के पश्चात जब युद्ध का तूफान खामोश हो गया, कौरव दल पर विजय पताका फहराने के लिए पांचों पाण्डव गर्व में डूब गये। जब भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्तों को गर्व में डूबा हुआ पाया तो उन सबका अंहकार दूर करने के लिए पाण्डवों से श्री कृष्ण कहने लगे हम तो युद्ध भूमि में प्रतिपल व्यस्त थे। आप लोगों में से किस योद्धा के प्रभाव से हम विजयी हुए हैं। सच्ची बात का पता करने के लिए हमें बर्बरीक के पास जाना होगा। क्योंकि उन्होंने ही निष्पक्ष रूप से सारा युद्ध देखा है। तब पांचों पाण्डव द्रौपदी को साथ लेकर भगवान श्री कृष्ण बर्बरीक के शीश के समक्ष पहुंचे और पूछने लगे कि हे महावीर तुमने इस धर्म युद्ध को निष्पक्ष रूप से देखा है। बताओं इन पांचों वीर पाण्डव भाईयों में सर्वश्रेष्ठ वीर योद्धा कौन है, जिसकी वजह से विजयी श्री की प्राप्त हुई है। यह सुनते ही बर्बरीक का शीश बड़े जोर के साथ हंसा तथा अट्टाहास भरते हुये कहने लगा इस युद्ध में भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र व महाकाली के खप्पर के सिवाय मैंने कुछ भी नहीं देखा इतना सुनते ही अंहकार में चूर पाण्डवों का गर्व चकनाचूर हो गया योगेश्वर श्री कृष्ण की महत्ता व अचल निष्ठा के प्रति दृढ़ भाव से नतमस्तक हो पाण्डवों ने कहा हे! मधुसूदन आपकी लीला तीनों लोकों में न्यारी है।

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इस तरह योगेश्वर मधुसूदन भगवान श्री कृष्ण ने अपने भक्तों का अंहकार तोड़कर अपनी निर्मल आभा में विलय किया तथा वीर के शीश को वरदान दिया कि हे! महावीर कलयुग में मेरे नाम श्याम से तुम पूजे जाओगे मेरा स्वरूप ही अब तुम्हारा रूप है। जो भी कोई प्राणी श्रद्धापूर्वक सच्चे मन से तुम्हारी शरण आयेगा तुम अपने परम प्रताप से उस प्राणी की मनोकामना पूर्ण करोगे। तुम मेरे साक्षात् अवतार बनकर कलयुग में भक्तों के कल्याण के लिए विराजमान रहोगे। कालान्तर में राजस्थान के सीकर जिले की अलौकिक दिव्य वादियों में खाटू ग्राम में बाबा श्याम विराजमान है।
कथाओं के अनुसार खट्वांग राजा की राजधानी खाटू ग्राम में मोक्षदायनी वैतरणी रूपावती नदी की धार से होकर बाबा श्री श्याम अपने चमत्कार के साथ यहाँ एक कुण्ड में प्रकट हुए जिसे श्याम कुण्ड के नाम से जान जाता है। श्री श्याम बाबा ने खाटू ग्राम को अपना बसेरा बनाया जो आज खाटू धाम के नाम से विख्यात है आज यहां के श्याम मंदिर में प्राणी दूर-दूर से अपनी मनौती लेकर पधारते हैं। तथा मनोकामना पूर्ण होने के पश्चात श्रद्धापूर्वक श्याम चरणों में नतमस्तक होते हैं जिस स्थान पर जल कुण्ड में बाबा श्री श्याम ने अपने आप को प्रकट किया वह कुण्ड श्री श्याम कुण्ड के नाम से जाना जाता है। इसे चमत्कारी कुण्ड भी कहते है। इस कुण्ड में स्नान करने से समस्त रोग, शोक, संताप, दुःख, दरिद्र एवं विपदाओं का हरण हो जाता है। तथा निर्मल आभा की प्राप्ति होती है। यह सब श्याम कृपा का ही प्रताप माना जाता है।

खाटू श्याम मंदिर के आस-पास अनेक मंदिरों का समूह है। प्राचीन व नवीन कलाकृतियों से युक्त ये मंदिर यहां पधारने वाले श्रद्धालुओं के अपार आस्थाओं के केन्द्र है। जिनमें सीताराम जी का मंदिर, गौरी शंकर मंदिर, बिहारी मंदिर खासे प्रसिद्ध है। इसके अलावा क्षेत्र में अनेक जलाशय व बावड़िया भी है। खाटू धाम में लगने वाले मेलों के अवसर पर यहां की पावन छटा देखने लायक होती है।

देवभूमि उत्तराखण्ड में स्वामी श्री श्याम बाबा की अराधना व स्तुति बहुत ही श्रद्धापूर्वक की जाती है। दिन पर दिन यहां श्याम भक्तों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती जा रही है। श्याम सत्संग मण्डलों द्वारा समय-समय पर यहां विशाल जागरण आयोजित किये जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के स्वरूप श्याम बाबा की भक्ति से अब यहां जन-जन सरोबार होता दिखाता है। कुमाऊँ व गढ़वाल की भूमि भी महाभारत काल की गाथाओं को अपने आप से जोड़े हुए है। बताते है कि आज भी महाबली अश्वत्थामा यहां की पावन वादियों में विचरण करते हैं।

कहते हैं, कि महाबली भीम ने हिडम्ब नामक महाबलशाली राक्षस का चम्पावत के घनघोर जंगलों में वध किया था तथा यही हिडिम्बा से विवाह रचाया था। इन्हीं वादियों में हिडिम्बा ने घटोत्कच नामक वीर पुत्र को जन्म दिया बाद में जब वीर पुत्र अपनी माँ से आज्ञा लेकर भीम से मिलने गये तो तब अपने पुत्र को देखकर भीम गद्गद हो उठे उन्होंने घटोत्कच को अपने गले से लगाकर तथा भगवान श्री कृष्ण की प्रेरणा से इनका विवाह कामकट नामक कन्या से किया। इन्हीं से इन्हें बबरूभानु (बर्बरीक) नामक वीर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जिन्हें योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने अपने रूप में विलय कर श्याम स्वरूप दिया और कलयुग के स्वामी की उपाधि से नवाजा।
बाल्यकाल में भगवान श्री कृष्ण ने श्याम रूप में ही कालिया नाग का मर्दन कर उसे उसकी पत्नियों के कहने पर उसे क्षमा कर माता कोकिला की शरण में भेजा आज भी आप जनपद पिथौरागढ़ के पाखूं नामक स्थान से आगे चलकर कोकिला दरबार के समीपस्थ ही कालिया नाग के चमत्कारिक मंदिर के दर्शन कर सकते है। यह मंदिर पर्वत की चोटी में स्थित है। भगवान श्री श्याम के आशीर्वाद से नागों के दुश्मन गरूड़ इस पर्वत की चोटी को पार नहीं कर पाते हैं, और यही कालिया नाग का वास बताया जाता है।

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इस तरह देवभूमि उत्तराखण्ड में भी श्याम बाबा व उनके परिजनों की चमत्कारिक गाथाओं के भण्डार भरे पड़े हैं।
जिला मुख्यालय चम्पावत से 2 किमी0 की दूरी पर चौकी गाँव में श्याम बाबा (बर्बरीक) के पिता घटोत्कच का मंदिर विद्यमान है, और चम्पावत से 5 किमी0 की दूरी पर धौन गाँव में हिडिम्बा का मंदिर स्थित है। विदित हो कि हिडिम्बा बर्बरीक की दादी माँ थी। खाटू वाले श्याम बाबा के परिजनो से जुड़े ये मंदिर आज भी प्रत्यक्ष चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। किन्तु आश्चर्य का विषय है कि गुमनामी के साये में समाये हुये हैं। जब कभी क्षेत्र में लंबे समय से वर्षा नहीं होती है और लोग वर्षा के अभाव में व्याकुल हो उठते हैं। तब श्रद्धापूर्वक घटोत्कच के मंदिर में दिया जलाया जाता है। दिया जलाने के कुछ समय पश्चात ही घनघोर वर्षा शुरू हो जाती है।
चौकी गाँव में स्थित बर्बरीक के बाबा भीम की छः फीट लंबी छड़ी बेहद आकर्षण का केन्द्र है। यह छड़ी कितनी गहराई तक है इसका आज तक कोई पता नहीं लग पाया यहाँ पर एक अन्य और चमत्कार खासा प्रसिद्ध है कि जब धौनी गाँव मंे स्थित हिडिम्बा के मंदिर में दूध चढ़ाया जाता है। तो वह दूध विपरीत दिशा में लगभग 7 किमी0 की दूरी पर स्थित घटोत्कच मंदिर तक पहुंच जाता है। इस चमत्कार का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया है। कहते हैं कि बर्बरीक ने बाल्यावस्था के प्रथम चरण में चम्पावत क्षेत्र की पावन वादियों में पिता घटोत्कच व दादी हिडिम्बा के साथ विलक्षण चमत्कारी शिक्षा ग्रहण की इस तरह से तमाम प्रकार की किवदन्तियों से भरा पड़ा है। काली कुमाऊँ का इतिहास महाभारत कालीन गाथाओं को अपने आप में समेटे हुआ है। महायोगेश्वर श्री कृष्ण की लीला कहें या उनकी रचना जिन्होंने एक साथ दो रूपों में जन्म लेकर जगत का कल्याण किया एक तो अर्जुन के सारथी बनकर पूरा महाभारत रच डाला और दूसरी ओर खाटू श्याम के रूप में अवतरित होकर कलयुग के देव के रूप में स्वयं को विदित किया जिनके चरणों की श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना से मनुष्य परम गति को प्राप्त होता है।
महिमा श्याम कुण्ड की

योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की लीला से अवतरित होकर श्री श्याम जी का शीश जहाँ पर प्रकट हुआ वह कुण्ड श्याम जगत में श्याम कुण्ड के नाम से प्रसिद्ध है। इस कुण्ड का जल इतना निर्मल बताया जाता है कि इसमें स्नान के प्रभाव से अंतःकरण की शुद्धि तो होती ही है। साथ ही शारीरिक रोग, शोक, संताप का भी हरण होता है।

ध्वजा श्री श्याम की
श्याम ध्वजा को धर्म ध्वजा भी कहते हैं। कलियुग में यह ध्वजा भक्तों के प्रेम का प्रतीक माना जाती है। ध्वजा के दर्शन ही दृष्टि को परम पावनता व निर्मलता प्रदान करती है। श्री श्याम बाबा के दर्शनार्थ प्रभु के दरबार में आने वाले भक्त रींगस से श्री श्याम ध्वजा की पूजा कर नाचते गाते भक्तिमय वातावरण में नंगे पैर पैदल चलकर आते हैं श्याम धाम से रींगस की यह दूरी लगभग 17 किमी0 है। लेकिन क्षमतावान भक्तजन दूर-दराज क्षेत्रों से अपने नियत स्थान से इस पावन गंतव्य स्थान तक पैदल यात्रा करते हैं। यह पद यात्रा फाल्गुन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अधिकतर शुरू होती है। रींगस श्याम प्रभु के धाम का मुख्य स्थान है। मोर पंख की छड़ी रूपी इस ध्वजा का दर्शन सांसारिक पीड़ाओं से मुक्ति का साधन बताया गया है।

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