गौरवपूर्ण गाथा को समेटे हुए है 76 वर्षो से चली आ रही जनपद नैनीताल की यहां की श्री रामलीला

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अतीत के सुनहरे पलों की खूबसूरत यादों को संजोये नैनीताल जिले के विकासखंड ओखल कांडा के ग्राम सभा पतलोट मटेला पोखरी भद्ररेठा की रामलीला विगत 76 वर्षों से गौरवगाथा के क्षेत्र में प्रभु श्री राम की भक्ति की विराट धरोहर है

 

इस धरोहर को सजानें संवारनें में क्षेत्र के बड़े बुजूर्गों युवाओं मातृ शक्तियों ने सेवा समर्पण का जो उल्लेखनीय योगदान दिया है वह भी अपनें आप में अद्वितीय है यहाँ के सांस्कृतिक प्रेमियों का उच्च आदर्शों का सराहनीय प्रयास आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रभु श्री राम जी की भक्ति का सुन्दर संदेश देती रहेगी

76 वर्ष पूर्व शुरु हुर्ई यहाँ की रामलीला ने समूचें क्षेंत्र में विशेष ख्याति अर्जित की है यहाँ के कला प्रेमियों ने भगवान श्री राम के उच्च आदर्शों को आत्मसात कर स्थानीय ही नहीं अपितु दूर – दराज के क्षेत्रों में भी अपनी सशक्त अभिनय क्षमता का लोहा मनवाया है

 

श्री राम भक्त मटियाली जी बताते है लव कुश लीला के साथ इस बार की रामलीला का विगत दिनों समापन हुआ यहाँ पांचवीं बार लव कुश कांड का मंचन हुआ जिसमें वाल्मीकि द्वारा लव कुश को शिक्षा दीक्षा दी गई लवणासुर का वध किया गया उन्होनें बताया यहाँ बड़े ही भक्ति भाव के साथ गांव- गाँव से रामलीलाओं में ग्रामीणों द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ भाग लिया जाता है

 

ग्रामीणों द्वारा नाली से आटा चावल दाल अन्नदान दान भी किया जाता है जिससे अभिनय करने वाले पत्रों एवं बाहर से आए हुए मेहमानों को भोजन कराया जाता है पहले चीड़ के छिलके एवं मिट्टी तेल के गैस द्वारा रामलीला का मंचन होता था आज के दौर में तकनीकी से भी लैस हो चुकी है

यहाँ के भावुक भक्तों की दृष्टि में श्री राम की लीला अपरम्पार है।वही भद्ररेठा की रामलीला ने प्रभु श्री राम के अनादि स्वरूप का चिन्तन करते हुए गौरवशाली इतिहास समेटा हुआ है। यहां की लीला को नई ऊंचाईया यहां के मेहनतकश कलाकारों ने समय-समय पर प्रदान की। श्री रामलीला की अभिनय परंपरा के प्रतिष्ठापक गोस्वामी तुलसीदास हैं, इन्होंने महान आध्यात्मिक बिरासत का श्री गणेश किया।हिंदी में इनकी प्रेरणा से अयोध्या और काशी के तुलसी घाट पर प्रथम बार रामलीला हुई थी।जो धीरे- धीरे समूचे विश्व की धरोहर बनी इसी धरोहर का सुन्दर स्वरुप निरंतर यहाँ की रामलीला के मंचन में देखनें को मिलता रहा है।
रामलीला की सफलता उसका संचालन करनेवाले व्यास सूत्राघार पर निर्भर करती है, क्योंकि वह संवादों की गत्यात्मकता तथा अभिनेताओं को निर्देश देता है। साथ ही रंगमंचीय व्यवस्था पर भी पूरा ध्यान रखता है। रामलीला के प्रांरभ में एक निश्चित विधि स्वीकृत है। स्थान-काल-भेद के कारण विधियों में अंतर लक्षित होता है। कहीं भगवान के मुकुटों के पूजन से तो कहीं अन्य विधान से होता है। इसमें एक ओर पात्रों द्वारा रूप और अवस्थाओं का प्रस्तुतीकरण होता है, दूसरी ओर समवेत स्वर में मानस का परायण नारद-बानी-शैली में होता चलता है। लीला के अंत में आरती होती है।ये सभी प्रस्तुतियां यहां आयोंजित लीला की अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर है
धार्मिक, सामाजिक दृश्यों, घटनाओं की मनोरम झाकियों के भी मंचन की मोहकता पर भी भद्ररेठाकी रामलीला ने हमेशा चार चॉद लगाये
*🌹रघुकुल में सूर्य समान हो तुम हे राम तुम्हारी जय होवें*/// रमाकान्त पन्त///

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