“चमत्कारों की छिपी दुनिया: रुड़की के चूड़ामणि मंदिर में जहाँ ‘पवित्र चोरी’ से पूरी होती है हर मनोकामना”

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“ रहस्यमयी आस्था का धाम :रुड़की की चूड़ामणी माता : दुनिया का एकमात्र देवी मन्दिर , जिसकी कथा है सबसे निराली :आस्था, इतिहास और रहस्यमयी परंपराओं का अनोखा संगम”

जहाँ पुत्र-कामना की अनोखी ‘लोकड़ा’ परंपरा सदियों से चली आ रही है, और जहाँ सती के चूड़े की कथा भी जीवित है

रुड़की/चूड़ियाला (उत्तराखंड)
भगवानपुर क्षेत्र के ऐतिहासिक चूड़ियाला गाँव में स्थित माँ चूड़ामणि मंदिर आज भी आस्था, चमत्कार और रहस्य की वह अनूठी विरासत समेटे है, जो श्रद्धालुओं के मन में दशकों से विश्वास की ज्योति प्रज्वलित करती आई है। यह मंदिर न केवल अपनी सिद्धिपीठीय प्रतिष्ठा के कारण विशिष्ट है, बल्कि यहाँ सदियों से चली आ रही एक अद्वितीय परंपरा इसे भारत के प्रसिद्ध मंदिरों में विशेष स्थान देती है।

मंदिर का इतिहास :जहाँ राजा के वन-सैर ने लिखी एक चमत्कारी कथा

दंत कथाओं के अनुसार सन 1805 में लंढौरा रियासत के राजा ने इस प्राचीन स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया। किंवदंती है कि राजा एक दिन वन क्षेत्र में भ्रमण के दौरान अचानक मातृशक्ति की दिव्य पिंडी के दर्शन से अभिभूत हो गए।
राजा निःसंतान थे और उन्होंने वहीं माता से पुत्र की याचना की। कुछ समय पश्चात् उनकी इच्छा पूरी हुई और इसी पुन्य क्षण की स्मृति में इस मंदिर का निर्माण हुआ। यही वह समय माना जाता है, जब यहाँ “लोकड़ा परंपरा” की शुरुआत हुई।

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अनोखी लोकड़ा परंपरा : आस्था का अद्भुत चमत्कार

देश में बहुत से सिद्धपीठ हैं, परंतु चूड़ामणि माता मंदिर की यह परंपरा अद्वितीय है।

लोकड़ा क्या है?

लोकड़ा एक लकड़ी से बना लड़के का पारंपरिक खिलौना है जो पुत्र-संतान का प्रतीक माना जाता है।

यह परंपरा कैसे चलती है?

जिन दंपतियों को पुत्र की प्राप्ति नहीं होती, वे मंदिर में नतमस्तक होकर माता के चरणों में रखा लोकड़ा “चुरा लेते” हैं। इस चोरी को पाप नहीं, बल्कि माता की अनुमति समझा जाता है क्योंकि इसे माता द्वारा दी गई संकेत-स्वीकृति माना जाता है। पुत्र प्राप्ति के बाद वही दंपति अपने बच्चे के साथ वापस आते हैं लोकड़ा लौटा देते हैं माता को एक नया लोकड़ा चढ़ाते हैं और भंडारा कराते हैं यह परंपरा आज भी अटूट आस्था के साथ जीवित है। कई परिवारों का दावा है कि वर्षों की साधना असफल होने के बाद मां चूड़ामणि की शरण में उन्हें संतान-सुख मिला।

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दुर्लभ पौराणिक संबंध :जहाँ माता सती के ‘चूड़े’ की कथा भी जुड़ी है

चूड़ामणि मंदिर की पहचान केवल आधुनिक आस्था से नहीं, बल्कि पौराणिक इतिहास से भी जुड़ी है।

कथाओं में वर्णित है कि :
सती-वियोग के समय जब भगवान शिव तांडव कर रहे थे,
तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन से माता सती के शरीर के टुकड़े पृथ्वी पर स्थापित किए थे। इन्हीं खंडों को शक्तिपीठ कहा गया। चूड़ियाला गाँव की कथा यह मानती है कि
यहाँ देवी सती का ‘चूड़ा’ (चूड़ामणि) पृथ्वी पर गिरा था।
इसी कारण इस स्थान का नाम चूड़ियाला और देवी का नाम चूड़ामणि माता प्रचलित हुआ। स्थानीय कथाएँ और पौराणिक संकेत इस विश्वास को बल देते हैं कि यह स्थल प्रागैतिहासिक शक्ति-ऊर्जा का केंद्र रहा होगा।

दुर्गा सप्तशती में उल्लेख : सिद्धपीठ का ऐतिहासिक प्रमाण

स्थानीय विद्वानों और पुरोहितों का मत है कि
मां चूड़ामणि के इस धाम का संबंध दुर्गा सप्तशती में वर्णित उन स्थलों से है, जहाँ देवी के चरण-चिह्न और शक्ति-प्रवाह का उल्लेख मिलता है। मंदिर में आज भी माता के चरणों के पास लोकड़ा स्थापित होता है पिंडी पर प्राकृतिक तेज का अनुभव होता है और नवरात्रों में विशेष दिव्यता का अनुभव होता है चूड़ियाला का यह मंदिर सिर्फ धार्मिक केंद्र नहीं, बल्कि गाँव की सांस्कृतिक पहचान सामाजिक एकता और लोक-मान्यताओं की धुरी है। नवरात्र, सावन, विशेष पूजन, भंडारे—यहाँ की धार्मिक गतिविधियाँ पूरे क्षेत्र को जीवंत रखती हैं। दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि मंदिर परिसर में एक अद्भुत शांति और ऊर्जा का अनुभव होता है। चूड़ियाला का मां चूड़ामणि मंदिर अपने भीतर राजवंश की स्मृतियाँ पौराणिक घटनाओं की गूँज लोक परंपराओं की जीवंतता
और आस्था की अविचल शक्ति सब समाए हुए है। यह वह धाम है, जहाँ चमत्कार और विश्वास दोनों साथ-साथ चलते हैं। जहाँ एक खिलौना भी मातृत्व की गारंटी बन जाता है। और जहाँ हर भक्त यही कहता है“मां चूड़ामणि से जो मांगो, वह खाली नहीं लौटाती।”

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@ रमाकान्त पन्त

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