बिन्दुखत्ता में उत्तरायणी कौतिक का रंग होगा निराला तैयारियाँ जोरों पर

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बिन्दुखत्ता में आयोजित चार दिवसीय उत्तरायणी मेला धूमधाम के साथ मनाया जाऐगा।मेले में लोक संस्कृति की धूम मचेगी तथा स्थानीय कलाकारों को भी मंच से अपनी प्रतिभा का जौहर दिखानें का अवसर मिलेगा समिति मेले की तैयारियों में जुट गयी है समिति के अध्यक्ष दीप जोशी ने बताया इस बार 12,13,14,15 जनवरी को आयोजित मेला अपने आप में अनूठा होनें के साथ साथ लोक संस्कृति से सरोबार होगा।सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक से बढ़कर एक झलक दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र होगी
उत्तरायणी पर वसुधा का ऐसा अभिनन्दन होगा जो समूचे क्षेंत्र में आर्दश का केन्द्र होगा। अन्य क्षेत्रों की भांति यहां भी सनातन संस्कृति के महत्वपूर्ण अंग उत्तरायणी मेले को लेकर क्षेत्र में जबरदस्त उत्साह है।

श्री जोशी ने कहा मकर संकांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है। और विन्दुखत्ता का मेला संस्कृति के सर्व रुप की झलक है।

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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन को देवताओं की रात्रि अर्थात नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्व तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है।
मकर सकांति के अवसर पर गंगा स्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यंत शुभकारक माना गया है। सामान्यतः सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किंतु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यंत फलदायक है। इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बडे होने लगते है दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अंधकार कम होगा।
कहा जाता है कि

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इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। महाभारतकाल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांंति का ही चयन किया था। मकर संक्रांंति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।इस पावन पर्व की तमाम अद्भूत विशेषताओं की झलक यहां बिन्दुखत्ता के मेले में देखनें को मिलेगी

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