पंच पर्व दीपावली का रहस्य

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दीपावली उमंग ,उत्साह , आपसी प्रेम सौहार्द का एक ऐसा पर्व है। जो पंच पर्व के रुप में सर्ववीदित है।

1* धन तेरस का त्यौहार दीपावली के आगमन का अलौकिक आध्यात्मिक पर्व है। खासतौर से श्री गणेश व माता महालक्ष्मी के पूजन के रूप में मनाये जाने वाली दीपावली से दो दिन पूर्व खरीददारी के लिए प्रसिद्ध धन तेरस बेहद लोकप्रिय पर्व है। मान्यता है, कि इसी दिन समुद्र मथंन से समृद्धि के देवता भगवान् धन्वंतरि इस वशुधंरा में अवतरित हुए और जगत के कल्याण के लिए उन्होनें आज ही के दिन अमृत पिलाकर देवताओं के सतांपो का हरण कर उन्हें अमृत प्रदान किया। भगवती माता महालक्ष्मी के स्वागत में लोग विभिन्न दैनिक उपयोगी वस्तुओं की खरीदारी कर वातावरण में आध्यात्मिक रंगत बिखेरते है। इस दिन धर्मराज यमराज की पूजा का विधान भी है कहा जाता है कि यमराज की पूजा करने अकाल मृत्यु का हरण होता है। धन, आयु, आरोग्यता के लिए इस दिन श्रद्धापूर्वक पूजन करते है।

2/ *नरक चतुर्दशी* दीपावली के पंचपर्व में नरक चतुर्दशी का भी अपना एक विशेष महत्व है। नरक चतुर्दशी को की गई देवताओं की पूजा मनुष्य को सौंदर्ययता प्रदान करती है । इस दिन हर प्रकार से सौंदर्य प्राप्त करने के लिए विभिन्न नदियों में स्नान की परंपरा भी है। इस दिन योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण की की गई पूजा विशेष रूप से फलदाई मानी जाती है कहा जाता है कि इसी दिन उन्होंने नरकासुर का वध करके धरती को दैत्यों के ताण्डव से मुक्त किया था। इस दिन विशेष रुप से तर्पण भी किया जाता है।

 

3/ *दीपावली पूजन*

पंचपर्वों में दीपावली के पूजन का बड़ा ही महत्व है इस दिन की गई पूजा मां लक्ष्मी की कृपा को प्रदान करती है भगवान श्री राम के चरणों में अर्पित दीपावली का पर्व इस पर्व के पूजन का विशेष दिन खासतौर से जनमानस में बेहद लोकप्रिय है। जो मनुष्य में दिव्यता का गुण विकसित करती है।इस महान ज्योर्तिमय पर्व की व्यापकता से समूचे संसार में दीपदान की अलौकिक परम्परा है।पुराणों के अनुसार आज ही के दिन मर्यादा पुरूषोत्तम प्रभु श्रीराम ने रावण का सहांर कर उन पर विजय प्राप्त करके इसी दिन अयोध्या को वापसी की थी। उनके आगमन की खुशी में यह त्यौहार आज भारत भूमि ही नहीं बल्कि समूचे संसार में आस्था के साथ मनाया जाता है आज ही के दिन श्री हरि विष्णु ने वामन रूप धारण करके दैत्यराज बलि से दानस्वरूप समस्त भूमि प्राप्त करके उन्हें पाताल का राजा बनाया था । इस दिन मनुष्य सहित देवताओं को यश, साम्राज्य सम्पत्ति आदि सहित महालक्ष्मी की महान कृपा भी प्राप्त हुई। जिसके कारण इस पर्व का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस महान दीपपर्व का अर्थ यही-असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय।। अर्थात् यह दीप पर्व हमारे जीवन को असत्य से सत्य की ओर और अंधकार से प्रकाश की ओर सदैव बढ़ाता रहे।

*गोवर्धन पूजन* 4/ यह पर्व अन्नकूट गोवर्धन पूजा के नाम से प्रसिद्ध है दीपावली के ठीक दूसरे दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है यह पूजा भारतीय संस्कृति में आदितीय है।जो प्रकृति के संरक्षण व संवर्धन का संदेश देती है। गाय की पूजा करके इस दिन लोग अपना जीवन धन्य करते हैं। तथा अनेक प्रकार के व्यंजनों को बनाकर जिसे अन्नकूट के नाम से जाना जाता है। इस दिन बनाया गया अन्य भगवान श्री कृष्ण को अर्पित करके प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है।

इस विषय में कहा जाता है।कि प्राचीन समय में लोग इंद्र देव की पूजा 56 प्रकार के भोगों से करते थें। परन्तु द्वापर में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र के अहंकार को दूर कर प्रकृति के देवताओं की पूजा को महत्वपूर्ण बताया तब से प्रभु श्रीकृष्ण की पूजा का क्रम बड़े ही श्रद्धा के साथ चला आ रहा है इस दिन भक्तजन गोबर से बने हुए पर्वत आदि की पूजा करके भगवान श्रीकृष्ण की कृपा प्राप्त करते है। जो उल्लास का प्रतीक है।

*भैया दूज*/5
पंच महापर्व का पांचवाँ पर्व भैया दूज व यम द्वितीया के नाम से प्रसिद्ध है। भाई बहन के पवित्र रिश्तों का प्रतीक यह पावन त्यौहार बड़े ही महत्त्व का है। इस कारण इसे भैया दूज कहते है। इस त्यौहार के माध्यम से प्रत्येक बहन अपने प्रिय भाई हेतु दीर्घायु की मंगल कामना करती है,।
इस व्रत के संदर्भ में पुराणों में कहा जाता है कि है कि सूर्य पुत्र यम और पुत्री यमुना जो कि आपस में भाई बहन थे, बहुत दिनों के बाद एक दूसरे से आज के ही दिन मिले थे ।तथा उनकी बहन यमुना ने यम जी का नाना प्रकार से आदर करके यह वरदान प्राप्त किया था। इस दिन स्नान, ध्यान करके जो अपने बहन के घर जाकर सम्मान सहित मिलें और बहन के घर में भोजन व मिष्ठान को ग्रहण करें तथा अपनी क्षमता के अनुसार बहन को द्रव्य आदि भेंट स्वरुप प्रदान करे तो उन्हें अकाल मृत्यु का भय न रहे और न ही उन्हें यम लोक की वेदनाएं भोगनी पड़े। कहा जाता है कि इस दिन यमराज भी अपनी बहन यमी से मिलने जाते हैं और यदि इस दिन किसी की मृत्यु होती है तो वह सीधे दिव्यलोक का भागी बनता है /////रमाकान्त पन्त///

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