महर्षि पतंजलि की तपोभूमि है, बागेश्वर क्षेत्र का यह गांव, जहाँ से हुआ योग का विस्तार

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पंतजली ऋषि की भूमि – पतोजा गाँव (काण्डा शानिउडियार, बागेश्वर)

उत्तराखण्ड के कुमाऊँ अंचल में स्थित काण्डा क्षेत्र का पतोजा गाँव जो कि ग्राम सभा कुचौली क्षेत्र का हिस्सा है न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यह गाँव महान योगी और संस्कृत व्याकरण के आचार्य पंतजली ऋषि की तपोभूमि के रूप में भी श्रद्धा का केंद्र माना जाता है। इस कारण से यह क्षेत्र आज भी “पंतजली ऋषि की भूमि” के नाम से प्रसिद्ध है।

पौराणिक और आध्यात्मिक महत्त्व

लोकमान्यता के अनुसार, पतंजलि ऋषि, जिन्होंने योगसूत्र और महाभाष्य जैसे अमर ग्रंथों की रचना की, उन्होंने हिमालय की गोद में आकर कठोर तप किया था। कहा जाता है कि उन्होंने अपने योगबल से यहाँ के वातावरण को पवित्र बनाया और ध्यान साधना के माध्यम से योग और ज्ञान का प्रकाश फैलाया।
गाँव के भीतर प्राचीन ध्यानस्थल और पवित्र गुफाएँ आज भी उनकी उपस्थिति का आभास कराती हैं।

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प्रकृति और संस्कृति का संगम

पतोजा गाँव चारों ओर से देवदार, बुरांश और बांज के जंगलों से घिरा है। यहाँ की हवाओं में एक अद्भुत शांति और स्फूर्ति महसूस होती है। यहाँ के लोग अत्यंत सरल, धार्मिक और परिश्रमी हैं।
गाँव में पारंपरिक त्योहार जैसे हरेला, घी संक्रांति, होलिका दहन, नंदा अष्टमी और दीपावली बड़ी श्रद्धा और उमंग से मनाए जाते हैं। हालांकि पलायन के दंश के बाद सब त्यौहारों का रंग फीका पड़ गया है

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लोक संस्कृति और परंपरा

कभी यहाँ के लोकगीतों में देवी-देवताओं की गाथाएँ, वीरों की कथाएँ और ऋषियों के उपदेश गूंजते थे। झोड़ा, छपेली और जागर जैसी लोक विधाएँ आज भी जीवंत हैं। पलायन से बाहर बसे ग्रामवासी अपने पूर्वजों की परंपराओं को आगे बढ़ाते हुए आधुनिक शिक्षा और संस्कृति का संतुलित संगम बनाए हुए हैं।

पतोजा की पहचान

काण्डा शानिउडियार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला यह गाँव बागेश्वर जिला मुख्यालय से लगभग 25–30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ से हिमालय की चोटियाँ जैसे त्रिशूल और नंदा देवी के दर्शन स्पष्ट रूप से किए जा सकते हैं।
इस गाँव की प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण और आध्यात्मिक आभा इसे एक योगभूमि और ध्यानस्थली के रूप में प्रतिष्ठित करती है। पूर्व ग्राम प्रधान गोकुलानन्द मिश्रा कहते है कि पतोजा गाँव केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं, बल्कि यह आध्यात्मिक चेतना और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक है।
यहाँ की मिट्टी में पंतजली ऋषि की तपस्या की सुगंध आज भी विद्यमान है, जो हर आगंतुक को श्रद्धा और प्रेरणा से भर देता है

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