(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)
सर्वविदित है कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है। कुछ खेलों की विशेषताओं में बताया जाता है कि हॉकी बाई प्रेक्टिस और क्रिकेट बाई चांस। खेल प्रतियोगिता में कब कौन सी कमजोर समझी जाने वाली टीम किसी दिग्गज टीम को हराकर जीत हार के समीकरण बदल दे, इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता, फिर भी जीत तो जीत है, चाहे जैसे भी मिले। ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, कि जब कोई टीम विजय के मुहाने पर खड़ी होने के उपरांत भी पराजय का मुंह देखने हेतु विवश होती है तथा हार के मुहाने पर खड़ी होने के उपरांत भी यकायक जीत का वरण करती है। क्रिकेट में ऐसी स्थिति अन्य खेलों की अपेक्षा अधिक देखने को मिलती है। एशिया कप में भी यही दृष्टिगत हुआ, कमजोर समझी जाने वाली टीम से सुपर ओवर खेलना पड़ा तथा भारतीय टीम विजयी हुई ।
भारत और पाकिस्तान के संबंधों में खटास के चलते एशिया क्रिकेट चैम्पियनशिप में पकिस्तान के साथ क्रिकेट खेलने या न खेलने के विमर्श में दो विपरीत धाराएं चलती रही, किसी ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान की भूमिका के मद्देनजर भारतीय क्रिकेट टीम का पाकिस्तान से खेलने पर विरोध किया, तो किसी ने अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धाओं में भारत की भागीदारी को सही ठहराया, कोई ऐसा भी रहा, जो तटस्थ रहा, न विरोध किया और न ही समर्थन। ऐसे में टूर्नामेंट में भारतीय क्रिकेट टीम अजेय रही। उसने अपने सभी लीग मैच जीते। पाकिस्तानी क्रिकेट टीम को बौना सिद्ध किया।
विशुद्ध रूप से कहा जाए तो भारतीय जनमानस की भावनाओं की अभिव्यक्ति भारतीय क्रिकेट टीम ने मैदान में की। खेल को खेल की तरह से नहीं, बल्कि युद्ध की तरह से खेला। कभी टॉस जीतने पर विपक्षी कप्तान से हाथ नहीं मिलाया, कभी मैदान में पाकिस्तानी बॉलिंग आक्रमण का करारा जवाब दिया। यूँ तो क्रिकेट में पूरी टीम की एकजुट समर्पित प्रतिबद्धता जीत या हार का आधार बनती है, फिर भी भारत में जिस प्रकार से खिलाडियों को जाति नायक के रूप में महिमामंडित करके खेल से बढ़कर जाति दर्शाने का चलन शुरू हो गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है। भारत में क्रिकेट के महारथियों की कमी नहीं है। कमी केवल अवसरों की है। आज क्रिकेट प्रतिभाओं को केवल प्रयोगशाला के उपकरण की तरह प्रयोग करने की स्थिति बन गई है। कोई भी दिग्गज ऐसा नहीं है, कि जिसे लम्बे समय तक टीम के साथ जुड़े रहने का विश्वास हो। भारतीय क्रिकेट के विजय अभियान में चंद खिलाडियों का प्रदर्शन प्रशंसनीय रहा, लेकिन जिनके बल पर भारत एशिया क्रिकेट का चैम्पियन बना तथा निर्णायक मैच में जिन खिलाडियों ने स्वयं को विश्वसनीय सिद्ध किया, उनके विश्वास को बढ़ाने के लिए क्रिकेट के नियंताओं को समुचित ध्यान देना चाहिए। बड़बोलापन एवं खेल को खेल भावना के अनुरूप न खेलना भी स्वस्थ क्रिकेट के लिए उचित नहीं कहा जा सकता। सो अच्छा हो, कि खेलों के प्रति देश की नीतियां स्पष्ट हों। *(विनायक फीचर्स)*
लेटैस्ट न्यूज़ अपडेट पाने हेतु -
👉 वॉट्स्ऐप पर हमारे समाचार ग्रुप से जुड़ें