लालकुआँ व हल्द्वानी के मध्य में सड़क के दोनों ओर स्थान- स्थान पर झुण्डों के रूप में दिखायी देने वाले पर्यावरण प्रहरी के रूप में प्रसिद्व इन पक्षियों के दर्शन अब दुर्लभ हो गये है ना जाने ये पक्षी अब कहां गुम हो गये है विगत दो दशक से इन पक्षियों के लापता होने से पर्यावरण जगत पर गहरा असर पड़ा है गिद्धों के नाम से इस पक्षी से आप सभी परिचित है लेकिन इनके दर्शन अब दुर्लभ है
पर्यावरण संरक्षण में गिद्धों की भूमिका बड़ी ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे प्राकृतिक सफाई कर्मी के रूप में कार्य करते हैं, मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर बीमारियों को फैलने से रोकने में गिद्वों की भूमिका सबसे शानदार रहती हैं साथ ही पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में मदद मिलती हैं। पर्यावरण को स्वच्छ रखने में गिद्व ही सबसे ज्यादा उपयोगी मानें गये है गिद्ध मृत पशुओं के शवों को खाकर प्राकृतिक रूप से सफाई करते हैं, जिससे पर्यावरण में सड़े हुए मांस का ढेर नहीं लगता है। वे एंथ्रेक्स और रेबीज जैसे बीमारियों को फैलाने वाले हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं, जिससे मानव और पशु स्वास्थ्य को खतरा कम हो जाता है। गिद्ध मृत जानवरों के अवशेषों को खाकर पोषक तत्वों को प्राकृतिक चक्र में वापस लाने में मदद करते हैं। तथा पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने में अद्भूत भूमिका निभाते हैं।
लेकिन अब लम्बे समय से गिद्व गायब है गिद्वों के गायब होने के शुरुआती कारणों में खाल उतारने वाले गिरोहों की सक्रियता मानी जाती थी खाल बचाने के लिए मृत जानवरों की देह पर जहर फैलाकर खाल उतार ली जाती थी इसके अलावा शुरुवाती दिनों से ही क्षेत्र में गिद्ध संरक्षण के मूल में अनुसंधान रहा है
कुल मिलाकर बचे खुचे गिद्वों को बचाने के नाकाफी प्रयास क्या सार्थक होगे यह आने वाला समय ही बताएगा
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