भव्य कलश यात्रा के साथ धपोला सेरा गोपेश्वर महादेव मन्दिर में श्री शिवमहापुराण कथा का शुभारम्भ, शिव समान कोई दाता नही : दुर्गादत्त शास्त्री

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बागेश्वर/ जनपद बागेश्वर के धपोला शेरा क्षेत्र में स्थित गोपेश्वर महादेव मंदिर में बुधवार से भव्य श्री शिव महापुराण कथा का शुभारंभ हो गया है शुभारंभ से पूर्व निकाली गई कलश यात्रा आध्यात्मिक जगत में एक अलौकिक व यादगार यात्रा रही
यहाँ भव्य कलश यात्रा के बाद श्री शिवमहापुराण कथा का शुभारम्भ हो गया है।कथा सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में दूरदराज क्षेत्रों से ग्रामीण जन भाग लेकर पुण्य अर्जित कर रहे हैं बुधवार की प्रातः गोपेश्वर महादेव मंदिर क्षेत्र में निकली यात्रा में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया इस दौरान समूचे क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय हो गया ।

 

कथा के प्रथम दिन प्रसिद्व कथावाचक ब्रह्मचारी संत प० श्री दुर्गादत्त शास्त्री जी ने श्री शिव महापुराण कथा के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला इस अवसर पर श्रद्वालुओं के अपार जन समूह पर कथा रूपी अमृत की वर्षा करते हुए उन्होनें कहा शिव समान कोई दाता नहीं है उन्होने कहा श्री शिव महापुराण सुनने से मनुष्य का जन्म धन्य हो जाता है उन्होनें कहा जो भी मनुष्य श्रद्वा के साथ श्री शिव महापुराण कथा का श्रवण करता है, वह बड़ भागी होता है उसके जन्म जन्मान्तर के पापों का हरण हो जाता है शिव कथा सुननें से प्राणी लोक चक्र से मुक्त हो जाता है और अन्त में भगवान शिव के परम धाम को प्राप्त करता है उन्होने कहा शिव कल्याण के देवता है जो इनकी शरणागति लेता है वह कल्याण का भागी बनता है उन्होनें कहा श्री शिव महा पुराण भगवान शिव की लीलाओं और उनके महात्मय से भरा पड़ा है। इसमें ज्ञान का अतुलनीय भंडार है इस महापुराण में चौबीस हजार श्लोक है जो शिव भक्तों के लिए भगवान शिव की ओर से सुन्दर सौगात है ।उन्होनें कहा शिव भक्त कभी दुखी नहीं होता है शिव महापुराण परम कल्याण को प्रदान करता है। सभी पुराणों में शिव पुराण को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण होने का दर्जा प्राप्त है। जैसे क्षेत्रों में काशी वैसे ही पुराणों में शिव पुराण की कोई उपमा नहीं है।
कथा के दौरान उन्होनें देवव्रत व चंचुला एवं बिंदूक की कथा भी सुनाई कि कैसै इन घोर पापियों को शिव कृपा से परम पद प्राप्त हुआ
में संंगीतमय श्री शिव महापुराण कथा के शुभारम्भ से पूर्व बुधवार को गोपेश्वर में भव्य कलश यात्रा निकाली गई। सैकड़ों की संख्या में मातृशक्ति की अगुवाई में निकाली गई यह यात्रा आध्यात्म जगत की यादगार यात्रा रही।इस यात्रा में जहां सैकड़ों मातृशक्तियों के सिरों पर क्लश शुसोभित थे।वही सैकड़ों की संख्या में भक्तजन नाचकर प्रभु की कृपा का यशोगान कर रहे थे।

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उल्लेखनीय है कि हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। बड़े अनुष्ठान यज्ञ यागादि में पुत्रवती सधवा महिलाएँ बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती हैं। उस समय सृजन और मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है।यह क्लश यात्रा की सबसे बड़ी बात है। समुद्र मंथन की कथा काफी प्रसिद्ध है। समुद्र जीवन और तमाम दिव्य रत्नों और उपलब्धियों का आपार केन्द्र है।इसी से क्लश की लम्बी कथा जुड़ी है

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कलश का पात्र जलभरा होता है। जीवन की उपलब्धियों का उद्भव आम्र पल्लव, नागवल्ली द्वारा दिखाई पड़ता है। जटाओं से युक्त ऊँचा नारियल ही मंदराचल है तथा यजमान द्वारा कलश की ग्रीवा (कंठ) में बाँधा कच्चा सूत्र ही वासुकी है। यजमान और ऋत्विज (पुरोहित) दोनों ही मंथनकर्ता हैं। पूजा के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है* *🥀कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः। कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अङेश्च सहितासर्वे कलशन्तु समाश्रिता*🥀।’

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अर्थात्‌ सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्माण्ड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्माण्ड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहाँ इस घट का ब्रह्माण्ड दर्शन हो जाता है, जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है, वहीं ताँबे के पात्र में जल विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊँचा नारियल का फल ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। मंगल कलश वातावरण को दिव्य बनाती है।सभी धार्मिक कार्यों में कलश का बड़ा महत्व है। यज्ञ, अनुष्ठान, भागवत यज्ञ आदि के अवसर पर सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है।

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