पुटगांव के ग्वेलज्यूधार में इंसाफ के लोक देवता ग्वेलज्यू के साथ हुआ प्रभु श्री राम का हुआ पूजन, सैकड़ों ग्राम वासियों ने लिया भाग

ख़बर शेयर करें

पुटगांव ओखलकांडा ।ग्वेल देवता की अलौकिक आभा से पुटगांव ब्लाक ओखलकाण्डा के ग्वेलज्यूधार में भगवान ग्वेल्ज्यू के भव्य मंदिर में दीपदान के साथ गोलज्यू व प्रभु श्री राम का पूजन किया गया पूजन कार्यक्रम में क्षेत्र के तमाम ग्राम वासियों ने भाग लिया

पवित्र पहाडों की गोद में स्थित इसांफ के लोक देवता का यह दरबार जगत के लिए महान मंगल का प्रतीक माना जाता है श्री ग्वेलज्यू मंदिर समिति के अध्यक्ष श्री पंकज कुलौरा ने बताया भगवान ग्वेल्ज्यू की कृपा से ग्वेल्ज्यू धार का यह दिव्य दरवार गोलज्यू की कृपा का प्रताप है इस मंदिर के प्रति रिटायर्ड कर्नल गिरिजा शंकर,प्रनीत जी की विशेष आस्था है इस मंदिर के निर्माण में व इसे भव्य स्वरूप प्रदान करने में दिग्विजय सिह, अनिल मुगंली, विनोद जोशी, हरेन्द्र पडियार, बच्ची सिह कुलौरा, कमल सिह सहित तमाम भक्त जनों का बड़ा ही योगदान रहा है स्थनीय जनता की यहाँ गहरी आस्था है

*🌹गोलज्यू की अलौकिक गाथा🌹*
ग्वेल्ज्यू,गोलू देवता, गोरिया देवता या गोल ज्यू का नाम आते ही कुमाऊं व इससे बाहर निवास करने वाले प्रवासियों का हृदय इस देवता के प्रति अगाध श्रद्वा भावना से नतमस्तक हो जाता है। इस पावन नाम का स्मरण महान् फलदायी माना जाता है। जिस तरह अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है, उसी प्रकार गोरिया देवता के नाम का जाप करने से समस्त पापों का हरण हो जाता है। परम न्यायकारी देवता के रूप में इनकी पूजा होती है इनके दरबार में न्याय व इनकी कृपा पाने के लिए भक्तों का तांता लगा रहता है। न्याय की मांग को लेकर इनके दरबार में पत्र, स्टांप पत्र आदि भी अर्पित किये जाते हैं, मनौती पूर्ण होने पर भक्तजन इन्हें अक्सर घंटिया अर्पित करते हैं क्योंकि इसका अद्भूत महत्व है इसके बजने से शांति व समृद्वि की प्राप्ति होती है। तथा गोलज्यू प्रसन्न होते हैं।
इस न्यायकारी देवता का मूल मंदिर अर्थात् मुख्य स्थान जनपद चम्पावत में मुख्यालय के समीप ही पड़ता है। स्थानीय भाषा में इस स्थान को गोरलचौड़ के नाम से पुकारा जाता है। इस मुख्य स्थान से गोलू देवता ने अपने भक्तों के कल्याणार्थ अनेक स्थानों पर अपनी अलौकिक लीला बिखेरी जिनमें चितई ;अल्मोड़ाद्ध का गोलू मंदिर व घोड़ाखाला ;नैनीतालद्ध का मंदिर काफी लोकप्रिय है। वर्ष भर इन मंदिरों में भक्तों का आना-जाना लगा रहता है। शादी-ब्याह, पूजा-पाठ, कथा-वाचन सहित अनेकों धार्मिक अनुष्ठान इन मंदिरों में सम्पन्न होते रहते हैं। गंगोलीहाट, शेराघाट व पुंगराऊ में भी इनके प्राचीन सि( पीठ मंदिर हैं। प्रचार-प्रसार के अभाव में ये मंदिर गुमनामी के साये में हैं जबकि इनका महत्व भी चितई व घोड़ाखाल की भांति ही है। वैसे तो गांव-गांव में गोलू के मंदिर हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘थान’ कहते हैं किन्तु इनका मूल स्थान चम्पावत अर्थात् गोरलचौड़ का गोलू दरबार, चितई, घोड़ाखाल, ताड़ीखेत, भिकियासैंण, मल्लाकत्यूर, बगड़ सहित दो दर्जन स्थानों पर गोलू देवता जागृत शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित माने जाते हैं। अल्मोड़ा मुख्यालय के निकट व मुख्य मार्ग के किनारे होने के कारण चितई का गोलू मंदिर भक्तों के बीच में सर्वाधिक प्रसि( है। मूल स्थान होने के कारण गोरलचौड़ व पर्यटक आवाजाही का केन्द्र होने के कारण घोड़ाखाल के गोलू मंदिर भी खासे प्रसिद्व हैं शेष अन्यत्र स्थानों पर विराजमान इस देवता के मंदिर भौगोलिक परिस्थितियों व प्रचार-प्रसार के अभाव में विशेष रूप से प्रसिद्व नहीं हो पाये और स्थानीय लोगों की पूजा-अर्चना का केन्द्र बनकर रह गये जबकि दो दर्जन से अधिक सिद्व स्थल इनके कुमाऊं में हैं और अधिकतर गुमनामी के साये में हैं।
कुमाऊं की धरती में गोलज्यू की पूजा परम न्यायकारी देवता के रूप में होती है यही कारण है कि यहां के जनमानस में इनके प्रति गहरी भक्ति भावना है।
नेपाल में एक स्थान है धौली धुवाकोट। यह स्थान अतीत में राजाओं की जागीर रहा है। प्राचीन समय में यहां एक राजा हुए जिनका नाम राजा हालरई था। कहा जाता है, कि गहन ईश्वरीय भक्ति के फलस्वरूप इन्हें झालरई नामक कुशाग्र व परोपकारी पुत्र की प्राप्ति हुई इनके राज्य में जनता सर्वत्र सुखी थी लेकिन राजा अक्सर दुःखी रहते थे, कारण सात रानियां होने के बावजूद उनके घर में कोई संतान नहीं थी वंश वृद्वि व राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने के दंश से वे सदैव चिंतित रहते थे यही चिंता उनके मानसिक तनाव का कारण थी। आखिरकार उन्होंने यह समस्या एक दिन अपने कुलगुरु के आगे रखी तथा समस्या के निदान के उपाय की विनती की। तब गुरु ने उनकी कुण्डली का अवलोकन कर उन्हें अवगत कराया कि उनके भाग्य में आठ रानियों का योग है आठवीं रानी से उत्पन्न बालक इस वसुंधरा में न्यायकारी देव के रुप में सर्वत्र पूजनीय होगा। इसका जीवन सत्य, धर्म व न्याय के पथ पर चलने वालोें के लिए महान् आदशर््ा होगा । जो इनकी भक्ति करेगा सदाचार व सत्य का आचरण करेगा उस पर इनकी कृपा सदैव बनी रहेगी।
कुलगुरु की भविष्यवाणी से राजा झालरई को अलौकिक शांति की प्राप्ति हुई। उन्हें यह अटल विश्वास था कि एक दिन गुरुदेव की भविष्यवाणी अवश्य सत्य सिद्व होगी, इसी कल्पना में उनका हृदय अपार स्नेह व श्रद्वा से गुरुदेव के प्रति नतमस्तक हो उठा। समय बीतता गया। एक रात्रि राजा को स्वप्न में देवलोक की दिव्य आभामण्डल के दर्शन हुए। इस आभामण्डल में उनका विवाह देवलोक की किसी दिव्य कन्या से हो रहा है आंखे खुली तो यह याद एक मीठी याद बनकर रह गई। समय बढ़ता गया किन्तु स्वप्न की वह दिव्य आभामण्डल राजा के हृदय में सदैव खिले हुए मोहक पुष्प की भांति ताजा बनी रही। धीरे-धीरे समय ने करवट बदली। कहते हैं कि एक दिन राजा झलुराई शिकार करते हुए दूर जंगल में जा निकले। बीयावान जंगल में वे प्यास से व्याकुल हो उठे उन्होंने अपने समस्त सैनिकों को आदेश दिया वे जंगल में खोजकर पानी लाये काफी समय बीत जाने के बाद भी जब सैनिक पानी लेकर नहीं लौटे तो स्वयं राजा पानी की खोज में निकल पड़े खोजते-खोजते वे एक तालाब के निकट पहुंचे जहां सुध-बुध खो बैठे राजा ज्योंही प्यास बुझाने तालाब की ओर बढ़े तो उनके कानों में किसी अदृश्य नारी का मधुर स्वर सुनाई पड़ा कि यह तालाब मेरा है तुम मेरी अनुमति लिए बगैर जल नहीं पी सकते तुम्हारे सैनिकों ने मेरी अनुमति की अवहेलना की इसी कारण वे अचेत हैं इतने में राजा को सामने एक सुंदर नारी के दर्शन हुए रुपवती स्त्री को देखते ही वे मोहित हो गये। उस नारी को अपना परिचय देते हुए उन्होंने कहा ये सभी मेरे सैनिक हैं प्यास से व्याकुल होकर मैंने ही इन्हें पानी लाने के लिए भेजा था, हे सुंदरी! में आपका परिचय जानने का अभिलाषी हूं तब उस सुंदरी ने कहा में पंच देवताओं की बहिन कलिंगा हूं यदि आप बलशाली राजा है तो सामने लड़ते भैंसों को अपने बाहुबल से छुड़ाओं राजा असमंजस में पड़ गये कि आपस में किस प्रकार छुड़ाए राजा ने हार स्वीकार कर ली तब उस अतुलनीय सुंदरी कलिंगा ने उन दोनों भैसों के सींग पकड़कर उन्हें छुड़ा दिया राजा के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा तभी पंचदेव वहां पधारे राजा ने उनके सम्मुख कलिंगा से विवाह का प्रस्ताव रखा पंचदेवों ने प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए कलिंका का विवाह राजा के साथ कर दिया।
एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार कालिका अपने पांच भाईयों के साथ अपने गुरु के सानिध्य में नीलकंठ पर्वत पर कठोर तप कर रही थी स्वप्न आभा से खोजते-खोजते इस स्थान तक पहुंचकर राजा ने कालिंका के सम्मुख विवाह का प्रस्ताव रखा कालिंका ने गुरु आज्ञा के बिना विवाह करने में असहमति जताई तब राजा झालरई ने उनके गुरु से अनुनय-विनय कर अपनी व्यथा बताकर कालिंका से विवाह की विनती की राजा के अनुनय-विनय से प्रसन्न होकर उन्हें यह आज्ञा मिल गई। कुछ गोरिया भक्तों का यह भी मत है कालिंका के माता-पिता बचपन में ही स्वर्ग सिधर गये थे उसका सम्बद्व राज परिवार से था ये बड़ी ही तपस्विनी थी यह अपने चाचा के साथ वन में तपस्या कर उनकी सेवा किया करती थी एक बार आखेट के दौरान राजा का वन में कालिंका से सामना हो गया वे उसके रुप-लावण्य को देखकर उस पर मोहित हो गये। राजा ने कुष्ठ रोग पीड़ित इनके चाचा की खूब सेवा की जिससे प्रसन्न होकर उसने कालिंका के साथ इनका विवाह करा दिया खैर स्वप्न साकार रुप में परिवर्तित हुआ राजा का आठवा विवाह हुआ रूपवान, नीतिवान, गुणवान स्त्री को पत्नी के रूप में पाकर वे बेहद प्रसन्न हुए। राजा को इस रानी के प्रति अधिक लगाव देखकर सातों रानियां आठवी रानी से ईर्ष्या करने लगी जबकि आठवीं रानी का व्यवहार अपनी सातों दीदीयों के प्रति कापफी मधुर व विनम्रशील था। दिन बीतते गये रानी गर्भवती हुई इस शुभ सूचना को पाकर समूचे राज्य में दीपावली सा उत्सव छा गया जिस राजकुंवर ने अभी वसुंध्रा पर कदम भी नहीं रखा उसके पैदा होने की खबर मात्रा से राजा व उनकी प्रजा दोनों ही हर्षोल्लासित एवं प्रपफुल्लित थे। किन्तु ईर्ष्या के वशीभूत होकर सातों रानियां आठवी रानी के गर्भवती होने की सूचना पर ईर्ष्या से व्याकुल हो उठी। उन सभी के मन में पाप भर आया, उन्होंने गर्भवती रानी को अपने स्नेहमय जाल मंे पफसां लिया तथा बालक को जन्म देते समय उसकी आंख में पट्टी बांध दी ताकि रानी को कुछ भी पता न चले नियत समय पर ईश्वरीय शक्ति के प्रतीक बालक ने भू-धरा पर जन्म लेकर वसुंधरा को निहाल कर दिया पापी रानियों ने बालक को मरने को छोड़ने की अभिलाषा से गोशाला में डाल दिया और रानी के आगे सिलबट्टा रख दिया जिसे स्थानीय भाषा में ;सिल-ल्वैड़ाद्ध कहा जाता है। उसके बाद रानी के आंख में पट्टी खोलते हुए उसको ताने भरे अंदाज में सातों रानियों ने कहा- ‘तेरे पेट में बेजान वस्तुएं सिल-ल्वैड़ा पैदा हुए हैं।
यह समाचार राजा तक पहुंचा दिया गया भाग्य की इस बिडम्बना से राजा को गहरा आघात लगा, किसी तरह उसने यह आघात सहन किया। अपनी योजना को सफल मानकर प्रसन्न चित्त सातों रानियां जब अगले दिन बालक को गौशाला में देखने गई तो यह देखकर हतप्रभ रह गयी कि बालक जिन्दा है और खिलखिलाकर खेल रहा है तब रानियों ने क्रूरता की हद पार करते हुए मासूम बालक को गोशाला से उठाकर जंगल ले जाकर बिच्छू घास की झाड़ियों में मारने के लिए छोड़ दिया वहां भी उनकी यह आस पूरी नहीं हुई अपनी अधूरी हसरत को पूरी करने के लिए उन्होंने गोबर के ढेर के नीचे बालक को दबाया और भी अनेकों प्रयत्न किये लेकिन लीलाधर गोलू की लीला के आगे वे हारमान हो गई और उन्होंने विचार-विमर्श कर लोहे की पिटारी में बालक को बंद कर बाहर से सात ताले लगा दिये और काली गंगा में उसे बहा दिया कहते हैं, कि काली की यह गंगा उस बालक के लिए परम आश्रय बन गई करूणामयी, ममतामयी गंगा स्वरूप माता कालिका के आंचल में सात दिन सात रात बहते-बहते यह पिटारी गौरीघाट पहुंची और यहां भी सात दिन सात रात पानी भीतर डूबी रही देवयोग से आठवें दिन भाना धेवर नामक मछेरा मछली मारने आया उसने अपना जाल नदी में फेंका उसमें पिटारी फंस गई कापफी प्रयास करने के बाद भी पिटारी बाहर नहीं निकली बड़ी मछली के फंसने के भ्रम में उसने अपनी पत्नी को आवाज लगायी तब दोनों ने मिलकर जाल को ऊपर खिंचा देखा तो जाल में लोहे की पिटारी फसी है पिफर जिज्ञासावश जाल को तेजी से खींचकर बाहर निकाला पिटारी के ताले तोड़कर पिटारी को खोला गया अन्दर देखा तो एक नन्हा बालक अपनी अंगूली चूस रहा है। यह दृश्य देखकर दोनों ही चकित रह गये अनायास मिले बालक को देखकर व उसके अंगूली चूसने के दृश्य ने भाना धेवर व उसकी पत्नी को करूणा से द्रवित कर दिया बालक को ईश्वरीय उपहार समझकर उनकी खुशी का ठिकाना भी न रहा दोनों बड़े ही लाड़-प्यार के साथ उसे अपने घर ले गये निःसन्तान दम्पति ने बड़े ही स्नेहमय भाव से उसका पालन-पोषण शुरू किया गोरीघाट में मिले बालक को गोरिया नाम दिया गया। ईश्वरीय अवतार इस बालक के धेवर के घर में आते ही वर्षों से सूनी पड़ी खुशियां जाग गई। आस-पड़ोस के सभी लोग बालक से अपार स्नेह करते थे क्योंकि सभी के साथ सहज में ही घुल मिल जाना इस दैवीय बालक की प्रकृति थी।
धीरे-धीरे गोरिया बड़ा हो गया एक रात्रि उसको स्वप्न हुआ कि उसके माता-पिता धैलीकोट के राजा झालराई तथा मां कालिंका है और सात सौतेली मां भी हैं जिन्होंने द्वेष भावना में षड़यंत्र रचकर उसकी मां को नीचा दिखाने के लिए उसे काली नदी में बहा दिया था भोर की किरण का आगमन हुआ। प्रातः नींद खुलने पर उसने यह बात धर्म पिता व धर्म-माता को बतलाई बालक के पालक माता-पिता ने जब यह सुनी तो उन्होंने गोरिया को उसके प्राप्त होने का वृतान्न बतलाया तथा उसे अपने जन्मदाता माता-पिता के पास जाने की आज्ञा दी साथ ही वे बिछोह की पीड़ा से व्याकुल हो उठे। गोरिया ने बालहठ की कि उसे एक घोड़ा चाहिए उस पर बैठकर ही वह धौलीकोट जायेगा। गरीब धेवर घोड़ा लाने में असमर्थ था उसने बालक का मन रखने के लिए काठ का घोड़ा बनवा दिया इसी घोड़े से गोरिया ने अपनी विचित्र लीला रचाई और घोड़े में प्राण फूंक दिए तथा अपने पालक माता-पिता के चरणों में नतमस्तक होकर मधुरवाणी से कहना प्रारम्भ किया कि आप लोग मेरे धर्म के माता-पिता हैं आपके स्नेह की छत्राछाया पाकर ही मेरा जीवन सार्थक हुआ है। आपके )ण को में कभी नहीं भूल सकता जिस बढ़ई ने काठ के सुंदर घोड़े का गोरिया के लिए श्र(ापूर्वक निर्माण किया उस बढ़ई का जीवन भी गोरिया की कृपा से धन्य हो गया। कहते है कि काठ के संुदर घोड़े को देखकर निःसन्तान बढ़ई को गोरिया ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। माता-पिता व बढ़ई दम्पति को साथ ही यह वचन भी दिया कि जब कभी भी किसी भी प्रकार संकट हो तो मेरा सच्चे मन से स्मरण करना हर विघ्न-बाध का निदान स्वतः ही हो जायेगा।
आखिरकार बिछड़ने की घड़ी आ गयी। इस असहनीय पीड़ा से धेवर दम्पति व्याकुल हो उठे गोरिया ने उन्हें समझाते हुए कहा कि यह संसार प्रतिपल व प्रतिक्षण बदलता रहता है यहां कि कोई भी वस्तु स्थाई नही है। इस पृथ्वी पर मेरे जन्म लेने का उद्देश्य धर्म व न्याय की रक्षा कर अधर्मियों को दण्डित करना है। जो लोग धर्म व न्याय के पथ पर चल रहे हैं। उनकी पीड़ा मेरी अपनी पीड़ा है। उनका दुःख मेरा अपना दुःख है इसलिए इस भू-लोक में मेरे कर्तव्य पालन का समय आरम्भ हो रहा है। समय का चक्र धर्म स्थापना के लिए मेरी प्रतीक्षा कर रहा है। अतः हे? माता-पिता तुम नश्वर संसार की कामनाओं से नाता तोड़कर केवल सुखस्वरूप परमात्मा का स्मरण करो संसार में रहते हुए जो भी कार्य करो उसे परमात्मा को अर्पण करो ऐसा करने से इस दुःख स्वरूप संसार से तुम्हारा मोह का बंधन छूट जायेगा अपने हृदय में तुम मेरे ही दर्शन करोगे।
इस प्रकार गोरिया ने अपने माता-पिता को निर्मल ज्ञान देकर घोड़े पर सवार होकर आकाश मार्ग से अपनी यात्रा धैलीघाट के लिए आरम्भ की। अपनी अद्भूत माया से सात-दिन, सात-रात तक गगन मण्डल में विचरण करते हुए आठवे दिन धूमाकोट की राजधनी में अपना घोड़ा उतारा यह भी किवदंती है कि सात-दिन, सात-रात तक उन्होंने भू-मण्डल की परिक्रमा कर सत्य की रक्षा के लिए अखण्ड संकल्प धरण किया जिस स्थान पर उन्होंने घोड़ा उतारा वह स्थान ‘राज पनघट’ के नाम से प्रसि( था सप्त धराओं से बहता निर्मल जल वाला यह स्थान नैसर्गिक सौन्दर्य से परिपूर्ण था। इसी स्थान पर उन्होंने सात-दिन, सात-रात्रि की थकान दूर करने के लिए विश्राम किया। कुछ समय पश्चात् हाथों में संुदर गांगरो ;घड़ोंद्ध से सुशोभित सातों रानियां आपस में वार्तालाप करते हुए खिलखिलाहट हंसी के साथ पनघट पर पहुंची, जैसे ही वे पानी भरने के लिए आगे बढ़ी तो बालक ने बीच में आकर कहा पहले मेरी काठ की घोड़ी पानी पियेगी यह बहुत प्यासी है पिफर तुम जल भर लेना इस बात पर अट्टाहास भरी हंसी हंसकर रानियों ने कहा अरे मूर्ख बालक क्या काठ का घोड़ा भी कभी पानी पीता है तपाक से बालक गोरिया ने कहा कि जब स्त्रियों से पत्थर के सिलबट्टे पैदा हो सकते हैं तो मेरी यह काठ की घोड़ी पानी क्यों नही पी सकती इस बात को सुनते ही सातों रानियों के चेहरे का रंग उड़ गया। गोरिया ने अपनी चमत्कारिक लीला का प्रदर्शन करते हुए अपने काठ के घोड़े को जल पिलाया। सातों रानियां यह देखकर दंग रह गई और पानी भरकर चुपचाप चलती बनी। वे रास्ते में आपस में बतियाते जा रही थी कैसा विचित्र बालक है जो हमारे सारे पुराने भेदों को जानता है। भयभीत रानियों ने भेद खुलने के डर से पनघट का रास्ता ही छोड़ दिया। लेकिन पनघट पर बालक के चमत्मकार के किस्से पूरे राज्य में फैल गये।
आश्चर्यचकित लोगों के मुखारबिन्दु से यह बात राज दरबार तक जा पहुंची। राजा भी आश्चर्यचकित हो गये। राजा ने बालक को दरबार में बुलाने के आदेश जारी किये। बालक काठ की घोड़ी को लेकर राजदरबार में उपस्थित हुआ। राजा ने बालक का परिचय पूछा उसने राजा को दण्डवत् प्रणाम करते हुए कहा कि महाराज आप मेरे पिता हैं तथा कालिंका मेरी माता हैं। मेरी माता कालिंका से द्वेष भाव के चलते मेरी सौतेली माताओं ने षड़यंत्र करके मुझे मारने की काफी चेष्ट की और मुझे काली नदी में बहा दिया। इस तरह सातों सह माताओं के षड़यंत्रों का सारा वृतान्त उसने राजा को कह सुनाया आश्चर्य-चकित राजा ने कहा कि आखिर इन सब बातों के प्रमाण क्या हैं। उसने कहा यदि मेरी वाणी में सत्यता है तो मेरी माता के स्तनों में दुध प्रकट होकर मेरे मुंह में गिरे। बालक गोरिया का यह कथन सत्य सिद्व हुआ। माता कालिंका के हृदय में ममत्व की पीड़ा उभर आयी अश्रुपूरित नेत्रों से माता व पिता ने इस बालक को अपने सीने से लगाकर अथाह दुलार प्रदान किया तथा सातों रानियों को राजदरबार में बुलाकर उनसे सारी बातें पूछी।
भयभीत रानियों ने डर से सारी बातें बता दी तथा कालिंका के चरण पकड़कर क्षमायाचना करने लगी। क्रोधित राजा ने सातों रानियों को मृत्यु दण्ड देने का आदेश दे दिया। राजा के इस आदेश को सुनते ही सत्य व धर्म का रक्षक न्यायप्रिय बालक आगे आया उसने राजा से विनती की कि आप इन्हें ऐसा कठोर दण्ड न दें। राजा ने निर्णय बालक गोरिया पर छोड़ दिया। उसने सातों माताओं को वनवास की सजा सुनाते हुए कहा कि जाओ वन में जाकर तपस्या करो। इससे तुम्हारे पापों का प्राश्चित भी होगा। तुम्हें असीम शांति मिलेगी और ईश्वरीय कृपा से तुम्हारा कल्याण होगा। इस निर्णय से बालक की उदारता पर मां कालिंका का हृदय भर आया, आंखों से आसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा उसने अपनी माता को समझाते हुए कहा व्यर्थ में दुःखी मत हो जो भाग्य में लिखा था वह तो होना ही था। जिस सिलबट्टे के कारण तुम्हें घोर अपमान झेलना पड़ा वे तुम्हारे परम सम्मान का कारण बने इतने में आंखों से बहती अश्रु की धरा सील पर जा पड़ी जो बालक हरूवा के रूप मंे परिवर्तित हो गया दूसरी बूंद ल्वैड़ा पर पड़ते ही यह बालक कलुवा के रूप में परिवर्तित हो गया। तीन पुत्रों को एक साथ पाकर राजा व रानी निहाल हो उठे।
इस अलौकिक चमत्कार को देखकर राजा समझ गया कि यह कोई साधरण बालक नहीं अपितु ईश्वर का महान अवतार है। राजा ने गोरिया का राजतिलक कर उन्हें राज्य भार सौंपा तथा अपने दो अन्य पुत्रों कलुवा व हरुवा को दीवान नियुक्त किया और धीरे-धीरे समूचे क्षेत्र में इनकी कीर्ति न्यायकारी देवता के रूप में प्रसि( हुई। अपनी धर्म परायण नीति के चलते इनको लोग देवता के समान पूजने लगे। नेपाल व इससे सटे चम्पावत आदि क्षेत्रों में लोग चौपल लगाकर इनके किस्से व कहानियों का बखान करने लगे। कहते हैं कि उस समय काली कुमाऊं चम्पावत क्षेत्र में महा दानवीर राजा नागेश्वरनाथ का विशाल राज्य था उनके राज में प्रजा बहुत सुखी थी उनके कोई संतान न होने के कारण वे प्रजा को ही पुत्रवत समझकर सहज भाव से प्रजा के बीच में ही अपना समय व्यतीत करते थे।
पिथौरागढ़ के उत्तरी छोर से टनकपुर के भाबरी क्षेत्र तक इनके राज्य का विस्तार था, कहा जाता है कि इस राज्य के मध्य में सिमाड़सरोवर नामक एक तालाब में एक महा भयानक भसान रहता था था इसके साथ में इसकी दो बहिने थी इस भसान का मुख्य कार्य राहगीरों पर हमला बोलकर उनकी जीवन लीला को समाप्त करना था। महाबलवान भसान के आंतक से समूचे राज्य में हाहाकार मच गया लोग त्राहिमान होकर अपने दुःखों के निवारण के लिए राजा के सम्मुख पहुंचे वृ(ा अवस्था को प्राप्त हो जाने के कारण दुःखी राजा भसान का सामना करने की हिम्मत नही जुटा पाये जिस कारण वे अक्सर मानसिक रूप से बैचेन रहने लगे एक दिन उनके सेनापति ने धौली-धूमाकोट के राजा गोरिया से सहायता लेकर प्रजा के दुःख दूर करने की सलाह दी। राजा को सेनापति का यह सुझाव कापफी अच्छा लगा। गोरिया के पास प्रजा के दुःख दूर करने के अनुनय, विनय के संदेश के साथ, चम्पावत से धौली-धूमाकोट को दूत भेजा गया। जब न्यायप्रिय, धर्मात्मा, सत्यवादी राजा गोरिया के पास यह वेदना भरा संदेश पहुंचा तो उनका हृदय करूणा से भर उठा। शीघ्र ही घोड़े पर सवाल होकर वे काली कुमाऊं की ओर चल पड़े। अनेक स्थानों पर रास्ते में लोगों के जटिल दुःखों का उन्होंने अपनी शक्ति से निदान किया और वे चम्पावत की पावन धरती पर पहुंचे उनके यहां पहुंचते ही राजा नागनाथ सहित समूची प्रजा ने उनका जोरदार स्वागत किया। राजा नागनाथ ने उन्हें सिमाड़ सरोवर के महाभयानक भसान के आतंक की पीड़ा का विस्तार से बखान सुनाया यह सुनते ही वे व्याकुल हो उठे। प्रजा की पीड़ा ने उन्हंे बुरी तरह झकझोर डाला। बिना बिलम्ब किए वे घोड़े पर सवार होकर सरोवर सिमाड़ की ओर चल पड़़े बियावान जंगल घनघोर ऊंची-नीची पहाड़ियों को तूफानी वेग से चीरते हुए जब वे सरोवर की ओर जा रहे थे तो रास्ते में इन्हें दो औरते मिली ये दोनो जटिया भसान की बहिनें थी इनमें से एक काफी उदास व दूसरी काफी प्रसन्न थी। गोरिया ने दोनों से उदासी व प्रसन्नता का कारण पूछा उनमें से एक स्त्री ने इस प्रकार कहना शुरू किया हे?
दिव्य पुरुष तुम्हारी कीर्ति का हमने बहुत बखान सुना है परमार्थ के क्षेत्रा में तुम महान धर्मात्मा हो। सत्य, धर्म व न्याय के सच्चे रक्षक हो। लेकिन मेरा भाई बड़ा बलवान है मुझे दुःख है कि वह तुम्हें नष्ट कर देगा और यह पृथ्वी एक महान् न्यायकारी, प्रतापी पुरुष विहीन हो जायेगी, तब गोरिया ने उससे कहा मेरा जन्म ही र्ध्म व न्याय की रक्षा के लिए हुआ है, अधर्मियों को दण्डित कर पीड़ितों के दुःख-दर्द को दूर करना ही मेरा कार्य है। धर्म पथ पर चलने वाला न तो कभी नष्ट होता है और न ही उसकी दुर्गति होती है। दूसरी प्रसन्न चित्त स्त्राी ने भ्राता मोह में गोरिया से कहना शुरू किया मेरी प्रसन्नता का कारण यह है कि मेरा भाई कापफी दिनों से भूखा है तुम्हें खाकर उसकी भूख शांत होगी और भाई की भूख से पीड़ित मेरे व्याकुल मन को अनोखी शांति मिलेगी। तब गोरिया ने उस स्त्री से कहा, संसार में सुख तभी मिल सकता है जब निरासक्त भाव से किसी के कल्याण की कामना करो किसी के अनिष्ट की भावना चाहने से मन को कभी शांति नहीं मिलती है। शेष उन्होंने उन दोनों की बातों में कोई ध्यान नहीं दिया और सरोवर के पास जाकर महाभयानक भसान को यु( के लिए ललकारा काफी समय तक दोनों में भयानक संग्राम हुआ।
अन्ततोगत्वा गोरिया ने भसान को इतना थका दिया कि वह थककर हारकर निढाल हो गया अचेतन अवस्था में उसने गोरिया देव के चरण पकड़ लिये तथा जीवन रक्षा के लिए याचना करने लगा। शरणागत पड़े भसान पर गोलू को दया आ गई उन्होंने उससे वचन लेकर उसे क्षमा कर दिया। इस तरह प्रजा के दुःख दूर करके वे विदा लेने वापिस राजा नागनाथ के पास पहुंचे राजा ने उनसे कहा आपका दिव्य स्वरूप क्या है यह मैं नहीं जानता किन्तु इतना जरूर समझता हूं कि सनातन पुरुष के आप परम न्यायकारी सनातन अंश हैं आपने हमारी प्रजा का दुःख दूर करके हम पर बड़ा उपकार किया है और अब मैं वृ(ावस्था को प्राप्त हो चुका हूं। वन में रहकर तपस्या करके सनातन शिव के धाम को प्राप्त होना चाहता हूं। तुम मेरी इस अभिलाषा को पूरी करने में मेरी मदद करो और इस राजगद्दी पर बैठकर अपने धर्म व न्याय के लक्ष्य के कार्य को आगे बढ़ाओ। काफी अनुनय विनय के पश्चात् गोरिया देव ने राजगद्दी संभाली प्रसन्नचित्त प्रजा ने उनका अभिवादन किया राजा नागनाथ तपस्या हेतु वन को चल पड़े गोरिया के राजगद्दी संभालते ही समूचे क्षेत्रा में भांति-भांति के धर्म अनुष्ठान आयोजित हुए। यहां उन्होंने भगवती देवी अखिलतारणी माता, बालेश्वर महादेव, क्रांतेश्वर, मानेश्वर, हरेश्वर सहित अनेक देवी-देवताओं से आशीर्वाद प्राप्त कर वीर घटोत्कच की इस भूमि से न्याय की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया और यही के होकर रह गये। देवभूमि उत्तराखण्ड ही नहीं बल्कि अब समूचे भारतवर्ष में गोलू देव की पूजा होती है। विदेशों में बसे प्रवासी उत्तराखण्डी इनका स्मरण करने के बाद ही अपने जीवन की दिनचर्या शुरू करते हैं। राजा होते हुए उन्होंने दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों की यात्रा की। गरीब लोगों के दुःख दर्द को सुना सभी लोगों में आपसी प्रेम व सौहार्द की भावना विकसित की।
उन्होंने परहित के लिए किये जाने वाले कर्म को कर्मयोगी का कार्य बताया तथा अपने लिए किए जा रहे कर्म को कर्मभोगी बताया इस ज्ञान को प्रसारित करते हुए उन्होंने यह भी संदेश दिया कि मानवता से बड़ा कोई धर्म नही है। इसलिए सबके प्रति सदैव समान व सम्मानजनक भाव होना चाहिए। उन्होंने जगह-जगह अपने भाई कलुवा व हरुवा के साथ दरबार आयोजित कर पीड़ित लोगों की समस्यायें सुनी तथा तत्काल उनका निदान भी करवाया। कहा जाता है कि कुमाऊं की सीमा में राज करने वाले डोटी के राजा डोटियाल को भी परास्त कर गोलू देव ने उसका अंहकार नष्ट किया। कुमाऊं में एक स्थान बेतालघाट कहा जाता है।
कहा जाता है प्राचीन समय में बेताली राजा के नाम से प्रसिद्व नकुवा का यहां पर बड़ा आतंक था जिसका अंहकार भी गोलू देवता ने इन्हें परास्त कर तोड़ा तथा इन्हें क्षमादान देकर कल्याण का मार्ग अपनाने को कहा लम्बे समय से दोनों भाईयों के साथ यात्रा पर निकले गोरिया एक दिन एकांत में बैठे माता कालिंका के वियोग में कापफी व्याकुल हो उठे उन्होंने माता से भंेट करने की इच्छा से राजधानी वापिस लौटने का निर्णय लिया। हरूवा और कलुवा ने भी उनकी इस बात पर सहमति जताते हुए कहा उनका मन भी दिव्य वेग से उस दिशा में दौड़ रहा है जहां माता कालिंका हैं उनकी आंखों से मां की याद में भावातिरेक के आंसू भर आये। राजधानी लौटते हुए चितई में उन्होंने अपने मामा डाना के गोलू के साथ दरबार लगाया यह स्थान उन्हें बहुत भाया। देवयोग से उन्होंने इस स्थान को अपना परम शक्ति पंुज बनाया और एक रूप में यहीं स्थापित हो गये जहां लोग आज भी भारी संख्या में पहुंचकर मनौती मांगते हैं तथा कष्टों के निवारण की याचना इस दरबार में करते हैं। प्रसिद्व सूर्य मंदिर कटारमल मजखाली, ताड़ीखेत, उदयपुर, भण्डारी गांव, चमड़ाखान आदि अनेकों क्षेत्र में भी इनके दरबार लगाये जाने के किस्से हैं। इन तमाम क्षेत्रों की यात्रा कर गोलज्यू जब माता कालिंका के पास पहुंचे तो वृद्व माता अपने पुत्रा के न्यायकारी, धर्मपरायणता की गाथा सुनकर गद्गद हो उठी गोरिया बोले माता यह सब तुम्हारे ही आशीर्वाद का प्रताप है। इस विनम्रता पर उनका मन आनन्दातिरेक से पुलकायमान हो गया उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया जब तक पृथ्वी पर सूर्य व चन्द्र होंगे तब तक इस भूतल पर देव स्वरूप से तेरी पूजा होती रहेगी। जो सच्चे मन से तेरी स्तुति करेगा वह कभी दुःखी नहीं रहेगा। तेरी न्यायकारी यात्रा सदैव अजर व अमर रहेगी। अचल, अखण्ड आशीष के साथ उन्होंने पुनः गोलू को लोक कल्याण के लिए यात्रा पर जाने की आज्ञा दी।
कहते है कि अपनी इस यात्रा में गोलू ने छाना गांव, कत्यूरी आदि तमाम दुर्गम पर्वतीय घाटियों की जटिल यात्रा के पश्चात् भाबरी क्षेत्रों में भी लोगों की समस्याओं को सुनकर त्वरित न्याय प्रदान किया। कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने नैनीताल, बरेली, पीलीभीत, काशीपुर, बहेड़ी, हल्द्वानी, किच्छा, हैड़ाखान, ओखलकाण्डा, रामनगर, खटीमा, टनकपुर, रामगढ़, श्यामकोट, भीमताल सहित अनगिनत स्थानों पर अपना पड़ाव डाला तथा घोड़ाखाल में अपनी दिव्य शक्ति को प्रतिष्ठित कर इसे प्रमुख केन्द्र बनाया। जहां वर्तमान में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में भक्तजन व श्रद्वालुजन पधारकर गोलज्यू के मंदिर में पूजा अर्चना करते हो। इनकी अदालते गढ़वाल के जोशीमठ क्षेत्र तक आयोजित हुई हैं? ऐसा भी माना जाता है कि जोशीमठ में भगवान नरसिंह व उसके आगे बद्रीनाथ में श्री हरि के साक्षात् दर्शनों की इच्छा से भी इन्होंने इन क्षेत्रों की यात्राएंे की। ;गोरिया देव, अर्थात् गोलज्यू या गोलू देवता के कुमाऊं में अनेक स्थानों पर मंदिर स्थित हैं, लेकिन चितई घोड़ाखाल व गोरलचौड़ खासे प्रसिद्व हैं।
ग्वेलज्यू का भव्य दरवार भी पुटगांव में धीरे – धीरे विशेष आस्था का केन्द्र बनता जा रहा है
*🌹जय गोलज्यू🌹*

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad