आस्था व भक्ति का महासंगम है लालकुआँ का यह शक्ति स्थल

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लालकुआं।रुक्मणी व श्री कृष्ण की आराध्या देवी अवान्तिका के दर्शन कर यहाँ लोग धन्य होते है*
कुमाऊं के प्रवेश द्वार लालकुआं नगर में अवन्तिका माता के रुप में स्थित देवी बड़े ही श्रद्वा के साथ पूजित है, मान्यता है, कि मर्यादित, संयमित नीतिसम्मत, सिद्वान्तपरक, मूल्यपरक कुल मिलाकर शान्तिपूर्वक जीवन यापन व्यतीत करने के इच्छुक भक्तों के लिए माँ अवन्तिका की शरणागति ही हर तरह के संशय, संकट ,भय ,रोग,शोक दुःख ,दरिद्र, एवं विपदाओं से मुक्त करती है। शिव के साथ माँ का पूजन वैभव को प्रदान करने वाला कहा गया है।*
मानस भूमि के प्रवेश द्वार लालकुआं नगर के उतर दिशा में माता अवन्तिका का दरबार सदियों से पूज्यनीय है, इस स्थान पर माता अवन्तिका की पूजा कब से होती है यह सब अज्ञात है। कुछ देवी भक्तों का मानना है, कि पूर्वकाल में घनघोर जंगल होने के कारण वट वृक्ष के नीचे माता की एक छोटी सी मूर्ति थी जिसे भक्तजन ललिता देवी, वन देवी, कोकिला देवी, त्रिपुर सुन्दरी आदि तमाम रुपों में अपनी अपनी भावनाओं से इस देवी को पूजते थे, हिमालय की और जाने वाले ऋषि मुनी संतजन इस क्षेत्र में विश्राम के दौरान इस देवी को विभिन्न रुपों में पूजकर हिमालय भूमि की और प्रस्थान करते थे, इसलिए नगर का यह क्षेत्र हिमालयी संस्कृति की आधार भूमि मानी जाती है, देवभूमि हिमालय के बारे में पुराणों में कथन है
अस्त्युन्तरस्या दिशी देवतात्मा हिमालयों नाम नगाधिराजः’’

वास्तव में महाशक्ति ही परम ब्रहमा के रुप में हिमालय भूमि के कदम-कदम पर प्रतिष्ठित है, यहां पधारने वाले लोग सबसे अधिक श्रद्वा स्वभाविक रुप से माता श्री के चरणों में अर्पित करते है, हिमालय भूमि में प्रवेश से पूर्व यहां से गुजरने वाले आगन्तुकों को अवन्तिका माता के दर्शन के बाद ही हिमालय दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है, हिमालय भूमि में नौ दुर्गाओं दस महाविघाओं सहित अनके स्वरुपों में उनकी लीलाऐं दृष्टिगोचर होती है

परमात्मास्वरुपिणी अवन्तिका शक्ति मन्दिर परिसर में आज धीरे-धीरे अनेकों देवी देवताओं के छोटे-छोटे मन्दिर है, जिनका निमार्ण स्थानीय भक्तजनों ने बड़े ही श्रद्वा भाव के साथ किया है, चैत्र, आषाढ़, अश्विन, और माघ इन मासों के चारों नवरात्रों में यहां अवन्तिका देवी का विधि का पूर्वक पूजन किया जाता है।
कुमाऊं के प्रवेश द्वार व जनपद नैनीताल की तलहटी पर स्थित अवन्तिका माता की महिमा का वर्णन अनन्त व अगोचर है, अवन्तिका देवी के बारे में व पुराणों में अनेको कथाएं मिलती है, अवन्तिका नाम से प्रसिद्व रमणीय नगरी उज्जैन देह धारियों को मोक्ष प्रदान करने वाली तथा भगवान शिव की परम प्रिय नगरी कही गयी है। परम पुण्यमयी व लोकपावनी नगरी अवन्तिका की महिमा से ही तमाम देवी व शिव भक्तों की अनेकों गाथाएं जुड़ी हुई है, इस नगरी में ही भगवान शिव तीसरे ज्योर्तिलिंग महाकालेष्वर नाम से विराजमान है।
माँ अवन्तिका देवी करुणामयी, दयामयी तथा ममता का अथाह सागर कही गयी है, अपने भक्तों से स्नेह रखना तथा उनका सर्वत्र मंगल करना माँ का परम स्वभाव है। शास्त्रकारों का कथन है, कि विषम परिस्थितियों के बीच जो भक्त सम्पूर्ण श्रद्वा विश्वास व समर्पण की भावना से अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प माँ के चरणों में अर्पित करता है, वह कल्याण का भागी बनता है, इसलिए माता अवन्तिका की अराधना, उपासना वदंना मनुष्य के लिए कल्याणकारी बतलायी गयी है, इसी शक्ति तत्व में माता के सभी रुप समाहित है, जो सृष्टि के कल्याण के लिए अनेकानेक लीलाओं का सतत सृजन करती है।
आधारभूता जगतस्त्वमवेका मही स्वरुपेण यतः स्थितासि’*
इस देवी के दरबार में समान्यतः जीवन में असाध्य रोगों व गम्भीर संकटो से छुटकारा पाने के लिए हर तरह की विध्न बाधाएं शान्त करने के लिए विधि पूर्वक किए जाने वाला पूजन अत्यधिक प्रभावशाली व तत्काल फलदायी माना गया है, स्वयं ब्रहमा जी ने माँ की स्तुति एवं महिमागान करते हुए कहा है, कि हे देवी तुम्ही इस विश्व ब्रहमाण्ड को धारण करती हो, तुम से ही इस जगत की सृष्टि होती है, तुम्ही से पालन होता है, देवी तुम्ही महामाया हो, महाविधा हो महामेद्या हो, महास्मृति और महामोहारुपा भी महादेवी व महेश्वरी भी तुम्हीं हो, तुम ही श्री ईश्वरी व बोध स्वरुपा बुद्वि हो तथा लज्जा, पुष्टि, तुष्टि, शान्ति, तथा क्षमा भी तुम्हीं हो तुम खड्ग धारिणी, घोर रुपा तथा गदा चक्र, और धनुष धारण करने वाली हो तुम सौम्य और सौम्यतर हो इतना ही नही जितने भी सौम्य पदार्थ एवं सुन्दर वस्तुंए है, तुम उनमें अत्यधिक सुन्दर हो इस तरह उस सर्वस्वरुपा आघशक्ति माँ अवन्तिका की महिमा अनन्त है। उनके अर्धश्लोकी परमश्लोक से यह बात पूर्ण रुप से स्पष्ट हो जाती है।*
*💥🌹सर्व रवल्विदमेवाहं नान्यदस्ति सनातनम्*
(श्रीमद देवी भा0 1/15/52)
*💥अर्थात् सब कुछ में ही हूं, और दूसरा कोई भी सनातन नही है।*
लालकुआं नगर के उतर दिशा के प्रवेश द्वार में माता अवन्तिका की पूजा प्राचीन समय से होती है, इस देवी को यहां अवंती देवी के रुप में भी पूजते है, माँ अवन्तिका की प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व भी यहां शक्ति का पूजन होता था, जानकार लोग बताते है ललिता देवी व वन दुर्गा के रुप इस में स्थान पर देवी पूजन की प्रारम्भिक प्रक्रिया धीरे धीरे अवन्तिका व कोकिला आदि अनेकों रुप में हुई
गौरतलब बात यह है, कि माता अवन्तिका का मूल स्थान उज्जैन में है, जो मन्दिरों का शहर है, यहां राम घाट क्षिप्रानदी ऋषि संदीपनी आश्रम सहित असख्ंय मंदिर है, समुद्र मथंन से भी इस नगरी की रोचक गाथा जुड़ी हुई है, देश में अनेक स्थानों पर माता अवंतिका की पूजा होती है, उतर प्रदेश में बुलंदशहर जनपद की अनूप शहर तहसील के अंतर्गत जहांगीराबाद से 15 किमी दूर पतित पावनी गंगा नदी के तट पर इस देवी का दरबार सदियों से पूज्यनीय है*,
*💥अंवतिका देवी की अम्बिका माता रुप से प्रकट हाने की दंत कथा काफी प्रसिद्व है, दूर-दराज क्षेत्रों से लोग दर्शन हेतु यहां पधारते है।*
*💥योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने माता अवन्तिका की कृपा से ही रुक्मिणी को प्राप्त किया और रुक्मिणी की पूजा से ही प्रसन्न होकर माता ने उन्हें भगवान श्री कृष्ण से विवाह होने का वरदान दिया, माता अवन्तिका के प्रसंग में इस संबध में अनेकों दतं कथाएं प्रचलित है, गौरतलब बात यह है, कि सात पुरियों में अवन्तिका पुरी का विशेश स्थान है।
*💥प्रथम मोक्ष दायिनी पुरीः- श्री अयोध्या*
*💥द्वितीय मोक्षदायिनी पुरीः- श्री मथुरा*
*💥तृतीय मोक्षदायिनी पुरीः- श्री हरिद्वार*
*💥चतुर्थ मोक्ष दायिनी पुरीः- श्री काशी*
*💥पंचम मोक्ष दायिनी पुरीः- श्री कांचीपुरम्*
*💥छठी मोक्षदायिनी पुरीः- श्री अवन्तिका*
*💥सप्तम् मोक्षदायिनी पुरीः- द्वारिका*

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लालकुआं स्थित अवन्तिका देवी के बारे में स्थानीय बुर्जगजन बताते है, कि पूर्व में यहां पर माता के वाहन का आवगमन रहता था, बाद में धीरे-धीरे नगर में बढ़ती बसासत के बाद शेर के दर्शन दुर्लभ हो गये इस स्थान पर शक्ति का अवतरण कब और कैसे हुआ सब कुछ अज्ञात है, साथ ही नगर की बसासत के प्रारम्भिक चरण में क्षेत्र की समृद्वि व शान्ति के लिए यहां पर कोटगाड़ी देवी की स्थापना भी की गई ज्ञातव्य हो कि कोटगाड़ी अर्थात् कोकिला देवी का मूल शक्ति पीठ जनपद पिथौरागढ़ के पाखूं नामक क्षेत्र में है, यह देवी न्यायकारी देवी के रुप में प्रसिद्व है, यहां पर अवन्तिका माता के साथ साथ कोकिला माता की पूजा करने से भक्तजनों को परम शान्ति की प्राप्ति होती है
वर्तमान समय में स्थानीय भक्तजनों ने मंदिर को भव्य व दिव्य रुप प्रदान किया है।*

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माँ अवन्तिका की पूजन विधी

अवन्तिका देवी को अम्बिका माता के नाम से भी पुकारा जाता है।
ये स्वयंभू देवी है, इसलिए भू देवी के रुप में भी इनकी पूजा की जाती है।
अवंतिका देवी को सिन्दूर, व चोला एव आभूषण चढ़ाया जाता है।
इनके दरबार में घी से दीपक जलाया जाता है।
कुंवारी युवतियां अच्छे पति की कामना से अंवतिका देवी का पूजन करती है
रुक्मिणी ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रुप में पाने के लिए इनकी ही आराधना की
अंवितका देवी के पूजन के पश्चात् श्री कृष्ण व रुक्मिणी का पूजन अखण्ड सौभाग्यदायक माना जाता है।
अंवितका देवी पापों का नाश करने वाली तथा भुक्ति और मुक्ति प्रदायनी है।
भक्त प्रहलाद भी माता अवन्तिका की कृपा पाकर कृतार्थ हुए थे वामन पुराण में इसका जिक्र है।
भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम व श्री सुदामा को माँ अवन्तिका का विशेषं आशीर्वाद था।
अंवतीखण्ड में विस्तार से देवी के महात्म्य का वर्णन आता है,
शरीर रुपी पाप तभी तक गर्जना करते है, जब तक माँ अवन्तिका का स्मरण नही किया जाता है।
अत्री ऋषि ने इनकी घोर तपस्या से महाऋषि का स्थान प्राप्त किया।
मंगल देव की उत्पति भी माँ अवन्तिका की कृपा से ही हुई इनके पूजन से मंगल का दोष मिट जाता है।
माता अवन्तिका के पूजन के साथ महाकाल की पूजा का विधान है*।
अवन्तिका माता के अन्य नमः- विषाला देवी, प्रतिकल्पा देवी, मां कुमुदवती, मंदनी, स्वर्णषृगा,नंदनी अमरावती सहित असंख्य नाम है*। ////@ रमाकान्त पन्त ////

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