अयोध्या/
श्री रामचंद्र जी की जन्मभूमि अयोध्या की महिमा तीनों लोकों में अपरंपार है, सनातन संस्कृति की मर्यादा का विराट वैभव यहाँ सर्वत्र बिखरा हुआ है। सूर्यवंशी राजाओं की महा प्रतापी भूमि अयोध्या की धरती पर ही भगवान विष्णु ने श्री रामचंद्र के रूप में अवतार लेकर इस वसुंधरा को कृतार्थ किया सरयू के तट पर स्थित इस नगरी को ईश्वर की नगरी भी कहा जाता है
सप्तपुरियों में अयोध्या भी एक है, पुराणों ने इसे मोक्षदायिनी नगरी कहा है सातपुरी है। काशी, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, कांचीपुरम, अवंतिका (उज्जैन) और द्वारिका ये सप्तपुरिया यानि सात ऐसे नगर कहे गए है,जो मोक्ष को प्रदान करनें वाले है। इन्हीं में अयोध्या एक है रामायण ही नहीं स्कंद पुराण ने भी प्रभु श्री रामचन्द्र जी की जन्मभूमि अयोध्या की महिमां का सुन्दर शब्दों में बखान किया है।
कहा जाता है महाक्षेत्र कुरुक्षेत्र में जब महात्मा राजा श्रीरामचन्द्र जी का बारह वर्षों में पूरा होने वाला यज्ञ चल रहा था, उस समय उस यज्ञ में निमन्त्रित ऋषि- मुनियों व विद्वानों ने व्यास शिष्य रोमहर्षण सूतजी से भारद्वाज आदि मुनिवरों ने पूछा इस पावन अवसर पर हम सभी प्रभु श्री राम चन्द्र जी की जन्मभूमि महापुरी अयोध्या का गुणों से उज्ज्वल एवं रहस्ययुक्त सनातन माहात्म्य सुनना चाहते हैं। विष्णुप्रिया अयोध्या कैसी है? उसमें कैसे स्थान हैं, कौन-कौन से तीर्थ हैं और उसके सेवन से कैसा फल प्राप्त होता है
सूतजी बोले- तपोधनो! मैं भगवान् व्यास को प्रणाम करके आपके आगे महापुरी अयोध्या के रहस्ययुक्त माहात्म्य का यथावत् वर्णन करता हूँ। अलसी के फूल की भाँति जिनकी श्याम कान्ति है तथा जिन्होंने रावणका विनाश किया है, उन कमल के समान नेत्रोंवाले अविनाशी परमात्मा श्रीरामचन्द्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ। अयोध्यापुरी परम पवित्र है,पापी मनुष्यों को इसकी प्राप्ति होनी बहुत कठिन है। जिसमें साक्षात् भगवान् श्रीहरि निवास करते हैं, वह अयोध्यापुरी भला किसके सेवन के योग्य नहीं है? अयोध्या सरयू के तट पर बसी है। वह दिव्य पुरी परम शोभा से युक्त है। प्रायः बहुत-से तपस्वी महात्मा उसके भीतर निवास करते हैं। जिस पुरी में सूर्यवंशी इक्ष्वाकु आदि सब राजा प्रजापालनमें तत्पर रहे हैं। जिसके किनारे मानसरोवर से निकली हुई | पुण्यसलिला सरयू नामवाली नदी सदा सुशोभित होती है और उसके तट पर भ्रमरों के गुंजन एवं पक्षियों के कलरव होते रहते हैं। मुनिवरो! भगवान् | विष्णु के दहिने चरण के अँगूठे से गंगा जी और बायें चरण के अँगूठे से शुभकारिणी सरयू जी निकली हैं। इसलिये वे दोनों नदियाँ परम पवित्र तथा सम्पूर्ण देवताओंसे वन्दित हैं। इनमें स्नान करने मात्र से मनुष्य ब्रह्महत्या का नाश कर डालता है। इनके योग से अयोध्या नाम शोभित होता है।
यह भगवान् विष्णुकी आदिपुरी है और बिष्णु के सुदर्शन चक्र पर स्थित है।अयोध्या क्षेंत्र की परिधी में ब्रह्मकुण्ड़, ऋणमोचन,पापमोचन,चक्र तीर्थ, सहत्रधारा,स्वर्गद्वार, चन्द्रहरि तीर्थ, सीताकुण्ड़, गुप्तहरि, चक्र हरि, सम्भेद तीर्थ,धर्महरि, स्वर्णखनी,कोटिशत तीर्थ,गोप्रतारतीर्थ, क्षमा तीर्थ, इन्द्रिय निग्रह तीर्थ, सर्वभूतदयातीर्थ, ज्ञान तीर्थ, तपस्तीर्थ, सहित अनेकों तीर्थ है, जिनका अपना अलग- अलग महत्व है।
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