मथुरा/योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण जी की जन्म स्थली व लीलास्थली मथुरा की महिमां तीनों लोकों में न्यारी है। यहाँ का विराट आध्यात्मिक वैभव अतुलनीय है।पुराणों ने इस भूमि की ऐसी महिमां गायी है।जिसे शब्दों में नही समेटा जा सकता है। यह सप्तपुरियों में एक है
भारतभूमि की प्राचीन नगरी के रूप में मथुरा की ख्याति समूचे विश्व में प्रसिद्ध है पुराणों में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जिनमें शूरसेन नगरी मधुपुरी, मधुनगरी, मथुरा आदि है यमुना नदी के किनारे बसे मथुरा के दर्शनों को देश दुनियां के लोग यहां के मंदिरो के दर्शनों को यहाँ पधारते रहते है
कहा जाता है कि मथुरा शहर को मधु दैत्य ने बसाया था माना जाता है कि प्राचीन काल में यह लवणासुर नामक महा दैत्य की राजधानी भी रही है यहां की परिक्रमा का भी विशेष महत्व है मथुरा में विभिन्न देवी देवताओं के मन्दिरों की लम्बी श्रृंखलाएँ मौजूद है मुरलीधर व वंशीधर की लीलाभूमि मथुरा का संगीत लोक गीतों की प्रसिद्धि जन- जन में है बासुरी यहाँ का प्रमुख बाद्य यन्त्र है जिसे भगवान श्री कृष्ण ने धारण किया और मुरलीधर कहलाये इनकी लीला भूमि वृदावन की महिमां भी तीनों लोकों से न्यारी मथुरा की महिमां में बड़ी ही मन भावन है
श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल नगरी से कंस के ताण्डवो से बचने के लिए नंदजी अपनें बंधु,बाधंव कुटुंबीजनों सहित वृदांवन में आ बसे थे। इस पावन अतुलनीय नगरी का स्मरण करते ही मनुष्य समस्त सतांपों से मुक्ति पा लेता है योगियों के ईश्वर
योगेश्वर श्री कृष्ण की मनभावन मूर्ति जब हृदय रुपी आसन में बस जाती है।तो सारा अंधकार दूर हो जाता है।यहां के कण कण में उनकी दिव्य आलौकिक लीलाओं की आभा से मन श्रद्वा व भक्ति से झूम उठता है।वृन्दावन की भूमि ब्रज की हृदय भूमि कहीं जाती है*। इस पावन नगरी में श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलाएँ करके संसार को भक्ति व प्रेम का संदेश मानव कल्याण के लिए दिया।वृदांवन की भूमि आनन्द का परम आश्रय है।यहीं कारण है आदि काल से भक्ति की धारा यहां से शाश्वत रुप से बहती रही है। चैतन्य महाप्रभु, स्वामी हरिदास, महाप्रभु वल्लभाचार्य आदि अनेक भक्तों ने वृदांवन में रहकर श्रीकृष्ण की व्यापक भक्ति का प्रचार व प्रसार किया। वैभव को सजाने और संसार को
महान् श्रीकृष्ण भक्त चैतन्य महाप्रभु जिस दौर में वृदांवन में पधारे उस दौर में श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन ध्यानस्थ अवस्था में उन्होनें श्रीकृष्ण की लीला के अद्भूत केन्द्रो को खोज निकाला कहा जाता है। वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर राजा मानसिंह ने प्रभु कृपा व प्रेरणा से बनवाया यहां दर्शनीय स्थलों की लम्बी श्रृखंला है। सेवा के अनेकों कुंज यहां की शोभा से बरबस ही आगन्तुको को अपनी ओर चुंबक की भांति खेचतें है।प्रकृति की मनभावन रमणीक छटाओं के बीच स्थित वृदांवन की शोभा पर कल कल धुन में बहती यमुना जी प्रभु की वशीं की धुन में नृत्य करती प्रतीत होती है।सायंकाल के समय यहां का वातावरण बेहद सुहाना हो जाता है।अनेको मंदिर बाकेंविहारी के सानिध्य में यहां कदम कदम पर शोभा बढ़ाते प्रतीत होते है।धरोहरो की आपार श्रद्वा के बीच गौसेवा के लिए भी वृदावन सारे सेसार में प्रसिद्व है। हरि की नगरी में यहां हरियाली के मध्य नदी यमुना के तीर अनेक नामों से प्रसिद्व घाट है।जिनमें श्रीवराहघाट, नागराजकालिय के नाम पर।कालीयदमनघाट , आदित्यघाट , हनुमानघाट,युगलघाट ,भ्रमरघाट है।श्रीपानीघाट ,बद्रीघाट सहित अनेकों घाट योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से गुथे हुए है।जिनका बड़ा विस्तृत वर्णन पुराणों में वर्णित है।
यहाँ दर्शन को पहुंचे उत्तराखण्ड के वरिष्ठ समाज सेवी हेमवती नन्दन दुर्गापाल व पूर्व दर्जा राज्य मन्त्री ललित पंत ने कहा मथुरा वृदांवन की महिमां अपरम्मार है। जिसे शब्दों में नहीं समेटा जा सकता है
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