दुर्लभ रहस्य: कौरव व पाण्डवों के गुरु द्रोणाचार्य जी ने उत्तराखण्ड के इस स्थान की थी महादेव की आराधना, पढ़िये द्रोण भूमि की महान् गाथा

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देहरादून/पाण्डव व कौरवों के गुरु धनुविद्या के महान उपासक भगवान शिव के महान भक्त महाप्रतापी योद्वा महर्षि भारद्वाज के पुत्र गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि देहरादून का टपकेश्वर महादेव का मन्दिर सदियों से आस्था व भक्ति का अलौकिक संगम है।

पुराणों में द्रोणाश्रम का विराट वर्णन मिलता है।स्कंद पुराण में गुरु द्रोणाचार्य की महानता का ब्यापक वर्णन मिलता है।हिमालय के द्रोणाश्रम क्षेत्र की महिमां के बारे में देवर्षि नारद को शिव पुत्र स्कंद ने सबसे पहले जानकारी देते हुए बताया द्रोणक्षेत्र का वैभव अतुलनीय है।मायाक्षेत्र से पशिचम यमुना तक तीन योजन चौड़ा और आठ योजन लम्बा द्रोण क्षेत्र परम प्रसिद्व व अतुलनीय है।इसके दर्शन से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है।देहरादून की पवित्र घाटी गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि के नाम से जहां जगत में प्रसिद्व है।वही उन्होनें इसी पावन क्षेत्र में धनुर्विधा का ज्ञान प्राप्त किया।द्रोण की पावन तपस्या के केन्द्र को शिव पुत्र स्कंद ने देवधाराचल नाम से सम्बोधित करते नारद जी को यह रहस्य बतलाते हुए कहा है।महामति द्रोण ने शिव की आराधना करते हुए इस भूभाग में परम तप किया बारह वर्षों तक शिवमन्त्रों का जाप,निराहार रहकर समस्त परिग्रहों,इन्द्रियों और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके तपस्या में लीन द्रोणाचार्य के महान तप को देखकर महादेव विप्र का रुप धारण करके द्रोण के पास पहुचें रमणीक देवधारपर्वत पर जहां से देवजन्या नदी निकली है।महादेव ने द्रोण से पूछा इतनी घोर तपस्या करनें का तुम्हारा क्या प्रयोजन है।सुधामयवाणी भरे विप्रवेशधारी शिव के इन वचनों को सुनकर द्रोण भगवान भोलेनाथ को पहचान गये भक्ति और विनम्रता से गदगद होकर इस भूमि पर उन्होनें भगवान शिव की जो स्तुति की वह स्तुति जगत में द्रोण की शिव वंदना नाम से प्रसिद्व हुई *
*निराकाराय शुद्वाय निर्द्धन्द्वाय दयावते।निरीहाय समीहाय निर्गुणाय गुणाकृते।।
अरुपाय विरूपाय स्वरूपाय परात्मने ।जलाय मलहीनाय सम्मोहायावमीजिते।।*

इस प्रकार अनेक मन्त्रों से शिवजी की वदंना करते हुए द्रोणाचार्य ने भूतभावन भगवान शिव के सम्मुख अपनी स्तुति जारी रखते हुए कहा निर्वासन,मेध्य,और अध्यासरहित आपको नमस्कार है।व्यापिन,व्यपदेश्य,वंदिन,बन्धनंदिन,नन्दानन्दस्वरूप,ब्रह्मा,ब्रह्मापूजित,ज्योतिरूप,भूप और मन से अमेय आपको नमस्कार है।भव्य,भव्यरुप,भव्यदायक,भवासिन,वर्तमान,भूत,एंव भविष्यरुप,कालरूप,विकरालिन,नीलकण्ठ,रूद्र और पशुओं के पति आपको नमस्कार है।मर्यादाशून्य,श्रेष्ठ,गरिष्ठ,संसार के आदि स्वातन्त्रयरूप,परतन्त्र और मंत्री को नमस्कार है।नेदिष्ठ(अत्यन्त समीप),दविष्ठ(अत्यन्त दूर)और यदु को नमस्कार है।निरंजन कृप्य और वाघ को नमस्कार है।

सौरि,शुरसंस्थ,वैण्व,वेणुनादी,धनी,धनरुप,स्वरुप,असुरशत्रु,बल,बलदेव,और वामदेव आपको नमस्कार है।भीम,भीमकान्त,त्रयम्बक,कपाली,त्रिलोचन,देव और देवों के पति को नमस्कार है।उमेश,महेश,गिरीश,विनाशी,गिरिव्रजैकरूप और केदारेश को नमस्कार है।एकलिंग,लिंग तथा कन्दर्पहारी को नमस्कार है।एतीश्वर,डिम्भ,शंकर,अघनाशी,मृड,शितिकण्ठ तथा उग्र आपको नमस्कार है।इस तरह अनेक प्रकार से भगवान शिव की स्तुति कर द्रोणाचार्य ने भक्तिपूर्वक महेश्वर की स्तुति की स्तुति से प्रसन्न्न शंकर ने अपना रुप दिखाकर वरदान मागने को कहा महेश्वर को अपने समीप पाकर गुरु द्रोणाचार्य बोले महेश्वर मै धन्य हूँ,कृतकृत्य हूँ।आपके दर्शन से मेरी सभी कामनाएं पूरी हो गयी है।मेरी समस्त आकाक्षाये तृप्त हो गई।मै जानता हूँ कि आपके दर्शन का फल कभी निष्फल नही जाता है।यदि आप मुझे वर देना चाहते है तो धनुर्वेद का ज्ञान दीजिये।भगवान शिव से उत्तम वर पाकर द्रोणाचार्य महान् धनुधारी बने साथ ही भगवान शिव ने कहा यह श्रेष्ठ स्थान तुम्हारे ही नाम से जगत में प्रसिद्व होगा।देवधाराचल की इस भूमि पर जो मुझ महेश्वर का ध्यान करेगा उसकी सम्पूर्ण बाधा को मैं नि:सदेह नष्ट कर दूगां *
*देवधाराचलेमां यो ध्यायिष्ययति महेश्वरम्।तस्याहं सकलां बाधा नाशयिष्याम्संशयम्।।*

द्रोणभूमि के इस पावन भूमि पर भगवानशिव ने किस प्रकार धनुर्वेद का ज्ञान द्रोण को दिया उसका संक्षिप्त वर्णन स्कंदपुराण के केदारखण्ड में विस्तार से मिलता है।शिव पुत्र स्कंद 126 वे अध्याय में नारद जी को बताते हुए कहते है धनुर्वेद के सुननेमात्र से पापों का समूहं नाश हो जाता है।इस वेद की रचना ब्रह्मा जी ने की है।धनुर्वेद के चार पाद है ।और अनेको प्रकार से उसका विस्तार है।रथ,हाथी,घोड़े,और प्रमुख योद्वागण को लेकर इस वेद के चारों पाद पूरे होते है। जिसका पूरा वर्णन पुराणों में विस्तार के साथ पढ़ा जा सकता है।

मन्त्रमुक्त,करमुक्त,मुक्तिसंधारित,अमुक्त,सर्वसम्मत,बाहुयुद्ध,शस्त्र सम्पति,अस्त्र सम्पति,ऋजुयुद्व,मायायुद्व,आदि तमाम विघाओ की साधनाओं का केन्द्र द्रोणनगरी ही रही है।मन्त्र द्वारा फेके जाने वाला शस्त्र को मन्त्रमुक्त कहते है।शक्ति,अस्त्र,तोमर,यन्त्र,आदि को करमुक्त कहा गया है।भाला आदि जो अस्त्र शत्रु पर छोड़ा जाए उसे मुक्तिसंधारित कहा गया है।खड्ग आदि को अवमुक्त मल्लयुद्व को बाहुयुद्व कहा जाता है।इस प्रकार धनुर्वेद के एक से बढ़कर एक गूढ़ रहस्य शिव कृपा से गुरु द्रोण ने द्रोणभूमि में ही प्राप्त किये।बार्णों के संधान का ज्ञान,धनुष की स्थिति,टंकार नाद का विज्ञान,प्रथम अस्त्र ब्रह्मास्त्र,दूसरा ब्रह्मदण्ड़,तीसरा ब्रह्मशिर,चौथा पाशुपत,पांचवा वायव्यास्त्र छठा आग्नेयास्त्र सातवां नारसिंह के तमाम भेद का रहस्य श्री द्रोण ने इसी भूमि पर प्राप्त किया।यहां प्रतिष्ठित लिंग के पूजन से ही गुरु द्रोण युद्व भूमि में देवत्व को प्राप्त हुए।गुरुद्रोण की तपोभूमि देवधारा के महत्व के वैभव का पुराणों में बड़ा ही सुन्दर वर्णन आता है।इस पावनतीर्थ की महिमां के प्रंसग में अनेक तीर्थ व नदियों का भी सुन्दर वर्णन मिलता है।पुराणों में देवजन्या नदी का वर्णन आया है।इस नदी में स्नान का फल अश्वमेद्य यज्ञ के समान फलदायी कहा गया है।इसके पशिचम में नवदोला तीर्थ है।पुरन्ध्री नामक पतिव्रता स्त्री ने यहां शिवजी की घोर तपस्या करके अखण्ड सौभाग्यवती होने का वर प्राप्त किया था।भगवान शिव के जटाजूट से निकलने वाली तीन धाराओं का पौराणिक महत्व अद्भूभूत माना जाता है।

पूर्व काल में जाबालि नाम के महाप्रतापी शिव भक्त ने यहां भगवान शिव की घोर तपस्या करके उनके बिदुं में जिन धारा रुपी गंगा के दर्शन किए वही यहां बहती है।यही जबालीश्वर नामक शिवलिंग के दर्शन वैभवता को प्रदान करने वाला कहा गया है।पास में धेनुवन क्षेत्र की धेनुगंगा में स्नान से कुष्ठ रोग व चर्म रोगों का नाश होता है।मान्यता है,कि यह गंगा गाय के पसीने से उत्पन्न हुई काकाचल पर्वत का जिक्र द्रोण की तप क्षेत्र की वैभवता को विराट गति प्रदान करता है।इस पर्वत की कथा प्रभु श्री राम से जुड़ी है।पुष्पेश्वर महादेव की महिमा का गुणगान भी गुरु द्रोण की भूमि में चिरकाल से होता आया है।स्कंद जी नारद जी से कहते है।पुष्पेश्वरमहादेव जी का ध्यान् |करने से सभी आपत्तियों का नाश हो जाता है।
इस तीर्थ के दक्षिण पूर्व में नानाचल तीर्थ का भी वर्णन पुराणों में वर्णित है।जो कभी वामन नामक नाग की तपस्थली रही है।वामन नाग के बारे में कहा जाता है इनकी कथा के श्रवण से सात जन्मों के पापों का नाश हो जाता है।
*श्रृणु विप्र कथामेतां पापध्नी सर्वकामदाम्.।
सप्तजन्मार्जितै: पापैमुच्यते नात्र शंसय*।।(केदार खण्ड़ अ०१२८ श्लोलक४)

गुरु द्रोणाश्रम से जुड़ी इस कथा का अपने मुखारबिदुं से सुन्दर शब्दो में वर्णन करते हुए महादेव पुत्र स्कंद नारद जी को अवगत कराते हुए कहते है।प्राचीन काल में इन्द्रप्रस्थ नगर में वामतनु नामक एक वैश्य वास करता था।भाग्य की बिड़म्बना के फेर में पड़कर एक बार वह कंगाल हो गया धन चले जाने के कारण दुःखी वह वैश्य हरिद्वार के आदि वरुण क्षेत्र में तपस्या करने के लिए आया वहां शिवलिंग की स्थापना करके शिवजी की कठोर तपस्या से उन्हें प्रसन्न किया नागत्व को प्राप्त करके नाना प्रकार के वरदान प्राप्त किये यही शिव पिण्डी शिवकृपा से जगत में नागेश्वर के नाम से प्रसिद्व हुई स्वयं महादेव जी ने कहा है।नानाचल पर्वत की परिक्रमा का फल संसार की परिक्रमाके के समान फलदायी होगा।दोणाश्रम क्षेत्र में शुभस्रवा व चन्द्रवन तीर्थों का भी पुराणों में विशेष रुप से उल्लेख है।यही चन्द्रमां ने शिव के मस्तक पर अपने निवास स्थान को प्राप्त किया।शिव का यह स्थान चन्द्रेश्वर नाम से विख्यात हुआ।चन्द्रवती नदी में यहां स्नान का महत्व विशेष रुप से पुराणों में वर्णित है।द्रोणाश्रम के प्रसंग में इस भूभाग में विष्णुचरण का भी जिक्र विशेष रूप से वर्णित है।बारहाल यहां शम्भुशर्मा नामक ब्रहामण ने भगवान विष्णु की तपस्या करके परम पद प्राप्त किया।ऋषि मुनियों के पुरातन यज्ञ क्षेत्रं के संदर्भ में भी द्रोणाश्रम का विशेष उल्लेख पुराणों में आता है।कहा जाता है इसी भूमि पर मुनियों ने प्राचीन काल में विशाल यज्ञ किया था इस संदर्भ में पुराणों में दोणाश्रम का यह आख्यान काफी प्रसिद्व है।कहा जाता है कि अगूठें के बराबर देहधारी बालखिल्य मुनि यहां आयोजित यज्ञ के दौरान इन्द्र के एक वाक्य से कुपित हो गये।ब्रह्मा के पुत्र प्रजापति ने प्रजा की बृद्वि के लिए देवताओं और मुनियों के साथ यज्ञ किया इस हेतु कुछ देवताओं को इधन व कुछ को यज्ञ वृक्ष लाने के लिए व कुछ विप्रों को निमत्रंण देने की जिम्मेदारी सौपी गई थी

देवराज इन्द्र के नेतृत्व में देवताजन काष्ठों को लेने हेतु वन में गये इस दौरान वन में इन्द्र को बालखिल्यगण दिखाई दिए वे मुनिजन पलाशवृक्ष की डाल से चिपके हुए थे संख्या में अनेक थे,बोझ से पीडित थे और वर्षा के जल से भरे हुए गोखुर के गड्डे को तैरना चाहते थे अगूठे के बराबर शरीर वाले तथा अल्पशाक्ति उन विप्रों को देखकर इन्द्र उपहास भरी दृष्टि से हंसकर बोले ये क्या करेगें क्रोधित मुनिजनों ने इन्द्र को सबक सिखाने की ठानी खैर बारहाल इन मुनिजनों की अगुवाई में चन्द्रवन दोणाश्नम क्षेत्र में यज्ञ की तैयारी आरम्भ हुई मुनियों ने घोषणा कर दी कि यज्ञ में बैठने के लिए हम दूसरा इन्द्र बनाऐगे व इसका पतन हो जाऐगा महात्माओं के इस कर्म को देखकर इन्द्र बुरी तरह घबरा गये व्याकुल इन्द्र ब्रह्मा की शरण में पहुचें अपनी ब्यथा उन्हें बताई ब्रह्मा स्वयं यज्ञ स्थल पर पहुंचे देवराज के आस्तित्व के लिए मुनियों से विनती की तथा स्वंय ब्रह्मा जी ने सहयोग देकर सफलतापूर्वक इस यज्ञ को सम्पन्न कराया इस यज्ञ से विष्णु के वाहन गरुड़ की उत्पत्ति हुई ,द्रोणाश्रम के गणकुजर पर्वत पर पराक्रमी भैरव का भी वास है।

देहरादून क्षेत्र गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि के साथ साथ देवभूमि उत्तराखण्ड की राजधानी भी है।यही वह भूमि है जो पुराणों में द्रोणाश्रम के नाम से प्रसिद्व है।इसी भूमि पर गुरूद्रोणार्चाय ने घोर तपस्या करके धनुविधा का ज्ञान प्राप्त किया साथ शिवजी की घोर तपस्या के प्रभाव से वैभवता व सम्पन्नता को प्राप्त किया। यह स्थान राज्य के प्रमुख पर्यटक व देवस्थलों में एक है।पौराणिक महत्व वाले इस स्थान में तीर्थाटन का महत्व पुरातन काल से रहा है।गुरु द्रोणाचार्य की तपोभूमि होनें का गौरव प्राप्त करने के बाद महाभारतकाल में यह स्थान विशेष रुप प्रकाश में रहा इस द्रोणाश्रम क्षेत्र में भगवान शिव टपकेश्वर महादेव के रूप में परम पूज्यनीय है। राज्य में स्थित यह मंदिर अनेक दंत कथाओं को भी अपने आप में समेटे हुए है। शहर से लगभग पाँच किमी की दूरी पर स्थित यह दरवार भगवान शिव की ओर से उनके भक्तों के लिए अनुपम भेंट है।

 

मंदिर सेना के गढ़ी छावनी क्षेत्र में स्थित है।
टपकेश्वर मंदिर एक गुफा मंदिर है जो एक नदी के तट पर स्थित है।इस नदी का महत्व पुराणों में गंगा नदी की तरह है।गुफा के भीतर विराजमान शिवलिंग पर प्रकृति ने स्वंय ही जलाभिषेक की ब्यवस्था की है।शिव लिंग पर गुफा की छत से टपकते जल के कारण भक्तजन इसे टपकेश्वर महादेव के नाम से पुकारते है।जबकि पुराणों में इस भूभाग क्षेत्रं को द्रोणाश्रम कहा गया है।इस गुफा में दो शिव लिंग है।माना जाता है,कि द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा का जन्म भी इसी गुफा में हुआ सावन व शिवरात्रि के मौके पर यहां भक्तों की आपार भीड़ उमड़ती है।

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