- जनपद बागेश्वर के धौलीनाग मंदिर में पहुंच कर प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता एवं युवा उद्यमी व उत्तराखंड गौरव से सम्मानित कौस्तुभ चंदोला ने सपरिवार दर्शन करके लोक कल्याण के लिए पूजा अर्चना की उन्होंने धौलीनाग मंदिर से क्षेत्र की सुख , समृद्धि एवं मंगल की कामना भी की , श्री चंदोला ने पूरे मंदिर परिसर के लिए सीसीटीवी कैमरे भी मंदिर कमेटी को भेंट किए तथा अपनी देखरेख में बेहतर सिक्योरिटी सिस्टम के साथ कैमरे लगवाए इस अवसर पर मंदिर कमेटी के अध्यक्ष विपिन धपोला , जगन्नाथ चंदोला,कांडा क्षेत्र के थानाध्यक्ष मनवर बिष्ट एडवोकेट पूरन भट्ट सहित अनेकों मौजूद रहे मूल रूप से जनपद बागेश्वर के पोखरी गांव के निवासी कौस्तुभ चंदोला की देवभूमि के देवालयों के प्रति अगाध श्रद्धा है उन्होंने बताया धौलीनाग जी इस समूचे क्षेत्र के इष्टदेव हैं आज वह जिस मुकाम पर हैं वह सब इष्ट देव श्री धौलीनाग जी की ही कृपा है श्री चंदोला ने बताया कुछ वर्ष पूर्व मंदिर परिसर से घंटियां चोरी हुई थी दोबारा चोरी की घटनाएं ना हो इसलिए उन्होंने सुरक्षा की दृष्टि से कैमरों के इंतजाम किए उन्होंने कहा कि मंदिर में लगी घंटियां हमारे पूर्वजों की अनमोल आध्यात्मिक धरोहर है इन धरोहर की रक्षा करना हम सभी का पावन कर्तव्य है यहाँ यह भी बताते चले कि श्री धौलीनाग जी परम कल्याणकारी देवता है धौलीनाग अर्थात् धवल नाग का यह मंदिर बागेश्वर जनपद अर्न्तगत विजयपुर नामक स्थान से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की रमणीक छटाओं के मध्य में स्थित है, धवल नाग यानी धौली नाग का पूजन मनुष्य के जीवन को ऐश्वर्यता प्रदान करता है, महर्षि व्यास जी ने स्कंद पुराण के मानस खण्ड के 83 वें अध्याय में नाग देवता नाग की महिमा का सुन्दर वर्णन करते हुए लिखा है।
धवल नाग नागेश नागकन्या निषेवितम्।
प्रसादा तस्य सम्पूज्य विभवं प्राप्नुयात्ररः।।
(18/19 मानस खण्ड 83रु0)
नाग पर्वत व लोगों के अनेक कुलों का पुराणों में बड़े ही विस्तार के साथ वर्णन आता है, इस गोपनीय रहस्य को उद्घाटित करते हुए धवन नाग की महिमा के साथ अनेक नागों की महिमा का विस्तार पूर्वक उल्लेख करते हुए व्यास जीने कहा है, जो प्राणी धवल नाग का पूजन करता है, उस पर अनेक नाग कृपालु होकर अतुल ऐश्वर्य प्रदान करते है, मानस खण्ड के 79 वें अध्याय में वर्णन आता है, वेद व्यास जी के साथ आध्यात्मिक चर्चा में देवयोग से लोक कल्याण के लिए ऋषियों के मन में नागों की निवास भूमि जानने की इच्छा जागृत हुई अपनी इस व्याकुल इच्छा को जानने के लिए ऋषियों ने व्यास जी से कहा महर्षेः नाग तो पाताल वासी है, पृथ्वी पर उनका आगमन कैसे हुआ, तब व्यास जी ने ऋषियों को जानकारी देते हुए समझाया ऋषिवरो! सत्युग के आरम्भ में ब्रहमा ने सारी पृथ्वी को अनेक खण्ड़ो में विभक्त कर दिया था। उन भूभागों में से एक भाग नागों के लिए हिमालय में नागपुर नामक स्थान नियत किया, जो आज भी नाग भूमि के नाम से जानी जाती है, जिसे नागों ने अपना नगर बनाया उसी नगरी के वासी श्री धौलीनाग जी है, माना जाता है, सभी नाग तमाम क्षेत्रों में अदृश्य रहकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं अनन्त, वासुकी, शेष, पदननाभ, शखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक, कालिय कम्बलमू सहित तमाम नागों के प्रति नागपुर वासियों में अगाध श्रद्वा है, अलग अलग नामों से लोग इन्हें अपने ईष्ट देव के रुप में पूजते है, धौलीनाग, बेड़ीनाग, फेडीनाग, हरिनाग, की भी विशेष रुप से यहां पूजा होती है, इन नागों में श्री मूलनारायण जी को नाग प्रमुख की पदवी प्राप्त है, ऐसा वर्णन आता है, कभी आस्तीक ऋषि की अगुवाई में अनेक ऋषियों ने नागों के साथ मिलकर इस क्षेत्र में ब्रहमा जी के दर्शन की अभिलाषा से विराट यज्ञ का आयोजन किया इस यज्ञ को सफल बनाने में फेनिल नामक नाग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई क्षेत्र में बहने वाली भद्रावती नदी का उद्गम इन्हीं के परामर्थ पर ऋषियों ने अपने तपोबल से किया भद्रवती तट पर स्थित गोपीश्वर महादेव नागों के परम आराध्य है, इनकी स्तुति पापों का शमन कर मनुष्य को अभयत्व प्रदान करती है, इतना ही गोपेश्वर भूभाग में पहुचने पर पहुचने वाले पूर्वजों के पापों का हरण हो जाता है सूर्योदय होने पर हिम के पिघलने की तरह यहाँ पहुचने पर सोने की चोरी करने वाला, अगम्या स्त्री से गमन करने वाला तथा पूर्व में पितरों द्वारा किए गये पापों का भी विलय हो जाता है कहा तो यहां तक गया है, नागों के आश्रय दाता गोपीश्वर का पूजन करने पर सारी पृथ्वी की इक्कीस बार परिक्रमा करने का फल प्राप्त होता है।
त्रिः सप्त कृत्वा सकला धरित्री प्रत्रम्य यद्याति महीतले वै
ततत्र गोपीश्वर पूजनेन सम्पूज्य जाती कुसुमैंः सुशोमनैः
(मानसखण्ड अ0 80/श्लोक 14)
कहा जाता है, इस मंदिर की पूजा खासतौर पर नाग कन्यायें करती है, कुमाऊं के प्रसिद्व नाग मदिर क्षेत्र सनिउडियार भी नाग कन्याओं के ही तपोबल से प्रकाश में आया शाण्डिल ऋषि के प्रसंग में श्री मूल नारायण की कन्या ने इस अपनी सखियों के साथ मिलकर इस स्थान की खोज की इस विषय पर पुराणों में विस्तार के साथ कथा आती है, नाग कन्याओं को गोपियों के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है, इन्हीं की भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी गोपेश्वर के रुप में यहा स्थित हुए और नागों के आराध्य बने इस भाग को गोपीवन भी कहा जाता है भद्रपुर नामक आदि अनेक स्थान गोपीवन के ही भाग है, भद्रपुर में ही कालिय नाग का पुत्र भद्रनाग का वास है। भद्रकाली इनकी ईष्ट है, भद्रापर्वत के दक्षिण की और से इनके पिता कालीय नाग माता कालिका देवी का पूजन करते है।
ततस्तु पूर्व भागे वै भद्राया दक्षिणे तथा काली सम्पूज्यते विप्राः कालीयने महात्मना।।
(मानखण्ड अ0 81/श्लोक 11)
भद्रा के मूल में श्री चटक नाग, श्री श्वेतक नाग, का भी पूजन स्थानीय वाशिदों द्वारा किया जाता है, नाग प्रमुख मूल नारायण जी की भी अलौकिक गाथा विष्णु भक्ति का प्रताप इन्हीं क्षेत्रो से जुड़ा हुआ है, सर्वपापहारी त्रिपुर नाग भी फेनिल नाग के ज्येष्ठ पुत्र सुचूड़ नाग का वर्णन भी पुराणों में आता है - कुल मिलाकर नाग पर्वतों में विराजमान नाग मन्दिर सदियों के अटूट आस्था का केन्द्र है, श्रद्वा व भक्ति के संगम में धौली नाग का महात्म्य अतुलनीय है, यह मन्दिर भीमकाय पत्थरों से निर्मित है, यहाँ सर्प की मूति है, अन्य मूर्तिया नाग देवता की हाथ जोड़कर वंदना करती प्रतीत होती है, दंत कथाओं में भी धौलीनाग जी की महिमा सर्वत्र है इस क्षेत्र के भक्तों के अनुसार इस मंदिर की स्थापना आज से लगभग 409 वर्ष पूर्व की गई थी उससे पहले नाग देवता यहां स्थित बांज के एक विशालकाय पड़े पर निवास करते थे जो आज भी यहां मौजूद है, यहां के स्थनीय लोगों का कहना है कि एक बार रात्रि के समय इस क्षेत्र के जगंल में अचानक भयंकर आग लग गयी तब बांज के विशाल पड़े पर विराजित धौलीनाग देवता ने ग्राम वासियों को आवाज लगाकर बताया कि जंगल में आग लगी है इसे बुझाने के लिए आओ देवयोग से यह आवाज भूल जाति के लोगों ने सुनी तो वे 22 हाथ की लम्बी मशाल जलाकर रात्रि में ही आग बुझाने को निकल पड़े देवता के जयकारे की आवाज जब यही के धपोला लोगों ने सुनी तो वे घरों से बाहर निकले और भूल लोगों से सारा वृतान्त सुनकर वे भी जलती मशाल लेकर चल दिये, देखते ही देखते चन्दोला वंशज के लोग भी मशाल हाथ में लेकर निकल पड़े और छुरमल देवता के मंदिर में सभी एकत्र हो गये। वहां से एक साथ जंगल की आग बुझाने निकले। मशाल लेकर चलने की परम्परा आज भी विभिन्न मेलों के अवसर पर चली आ रही है।
साल में तीन बार यहां भव्य मेलों का आयोजन होता है, जिसमें धपोला व भूल लोग मिलकर बाईस हाथ लम्बी जलती मशाल लाते हैं - यह भव्य मंदिर हिमालय की तलहटी में चारों ओर बांज, बुरांश, चीड़, काफल, देवदार आदि के वनों से आच्छादित है। तमाम गाँवों के लोग धौलीनाग देवता को अपना आराध्य देव मानते हैं। वर्ष में ऋषि पंचमी, नाग पंचमी और प्रत्येक नवरात्रि की पंचमी की रात्रि को यहां भव्य मेले लगते हैं, जिनमें हजारों लोग भाग लेते हैं। परम्परा के अनुसार इस मंदिर में विधि-विधान से पूजा-अर्चना होती है। यहां के पुजारी धामी वंशज होते हैं। मंदिर में हमेशा दो पुजारी रहते हैं- एक गर्भ गृह पास ऊपर की ओर तथा दूसरा नीचे की ओर।
- धौलीनाग देवता के मंदिर में प्राचीन काल से सात्विक पूजा-अर्चना का विधान है। इस मंदिर में धौलीनाग जी को घी, खीर, दूध का भोग लगाया जाता है। मंदिर में भोग बनाने का कार्य परम्परा के अनुसार पाण्डे लोगों को सौंपा गया है। इसके अलावा इस मंदिर में समय-समय पर रामायण, महाशिव पुराण, सत्य नारायण कथा, देवी भागवत, श्रीमद् भागवत इत्यादि धार्मिक कार्यों का आयोजन होते रहता है। प्राचीन परम्परानुसार राणा वंशज के लोगों में देवता अवतरित होता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में हमेशा नई फसल के समय सर्वप्रथम धौलीनाग देवता को नैवेद्य के रूप में प्रथम भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात इस क्षेत्र के निवासी उस अन्न का प्रयोग करते हैं। इसके अलावा क्षेत्र में जो भी गाय, भैंस ब्याती हैं उनका दूध बाइसवें दिन में सर्वप्रथम छुरमल देवता एवं धौलीनाग देवता को ही चढ़ाया जाता है।
इस क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि धौलीनाग जी की कृपा से आज तक इस इलाके में महामारी, सूखा, अकाल, बाढ़, भूस्खलन, सर्प भय, जंगली जानवरों आदि का कोई भय नहीं रहता है।
धौलीनाग मंदिर के चारों ओर अनेक गांव बसे हैं जिनमें विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। धौलीनाग मंदिर को स्थानीय भाषा में ‘उधाण’ मंदिर भी कहा जाता है। यह मंदिर तल उधाण में स्थित है। धौलीनाग मंदिर के गर्भ गृह में जो धौलीनाग की आकृति है वह शिव लिंग के रूप में विद्यमान है तथा मंदिर के अन्दर नौ दुर्गाओं की मूर्तियां स्थापित हैं। यह मंदिर सभी नाग देवताओं का केन्द्र है। ये नाग देवता नौ भाई हैं- इस मंदिर के चारों ओर अनेक स्थानीय देवताओं के मंदिर भी सुशोभित हैं। पूर्व में नौलिंग, पश्चिम में मां भगवती, उत्तर में बंजैंण, मूल नारायण तथा दक्षिण दिशा की ओर छुरमल एवं भूमिया देवता सहित अनेक मंदिर हैं। मां भगवती के मंदिर को ‘बुढ़ उधाण’ भी कहा जाता है। जब धौलीनाग जी को स्नान कराया जाता तो दूध, जल एवं पुष्प सुरंग के माध्यम से मंदिर से तीन किलोमीटर दूर देलख गांव में दिखायी देता है क्योंकि गर्भ गृह के अंदर से एक छोटी से लंबी सुरंग है जिसका कोई अता-पता नहीं है। इस क्षेत्र में मेले के दौरान अनेक देवी-देवता डंगरियों के शरीर में अवतरित होते हैं जो देश-विदेश से आये हुए यहां के श्रद्वालु भक्तजनों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस क्षेत्र के समस्त लोगों का धौलीनाग देवता पर अटूट आस्था व विश्वास है। यहां के लोग कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व धौलीनाग देवता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं। इनकी कृपा से यहां लोग काफी खुशहाल हैं।//@@@रमाकांत पन्त
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Very good. Please do for water pipe line.
नाग देवताओं के सुप्रसिद्ध मंदिर में एक धोलीनाग देवता मंदिर। मैंने उत्तराखंड में नाग पूजा बिषय- में सम्पूर्ण लेख लिखा है मेरी पुस्तक ” हिमालय की चिट्ठियां” में पढ़ें। अमेजोन और फ्लिपकार्ट में उपलब्ध है।
कौस्तुभ आनंद चंदोला साहित्यकार एवं स्वतंत्र पत्रकार सदस्य उत्तराखंड राज्य भाषा संस्थान देहरादून।