सर्व मंगल कामना पूर्ति का पर्व है दीपावली

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यूँ तो भारतीय समाज में सभी पर्व सामाजिक सद्भाव एवं पारस्परिक सहयोग से जीवन को प्रफुल्लित करने का संदेश देते हैं। पर्व मनाए जाने की पृष्ठभूमि में समाज को जोड़ने के लिए जनमानस की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। रोटी, कपड़ा और मकान जुटाने की चाहत में जूझते जनमानस के लिए पर्व जहां परिजन के संग बैठकर खुशियाँ मनाने के लिए एक सशक्त माध्यम बनते हैं। वहीं परिवारों की आर्थिक समृद्धि में भी पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर्व कोई भी हो, उसे मनाने के लिए समाज का एक बड़ा वर्ग अल्पकालिक रोज़गार पाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में भी समर्थ होता है। यदि दिवाली की विशिष्टता का अध्ययन करें, तो स्पष्ट होगा, कि अन्य पर्वों की अपेक्षा दिवाली सर्व मंगल कामना पूर्ति का महापर्व है। दिवाली पर्व अकेला नहीं आता, बल्कि यह पांच पर्वों की श्रृंखला का संयुक्त पर्व है, जिसके अंतर्गत आने वाले सभी पर्व अपनी अपनी विशिष्टता का परिचय देते हुए समाज को आर्थिक रूप से समृद्ध करते हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्रृंखला का प्रथम पर्व धनतेरस मनाया जाता है। इसे औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है तथा आरोग्य रहने की कामना की जाती है । दूसरी ओर इस पर्व पर नई वस्तुओं को क्रय करके गृह सज्जा सामग्री सहित अनेक घरेलू उपकरण व रसोई हेतु नए बर्तन ख़रीदने की परम्परा है। भले ही तर्क की कसौटी पर इनका औचित्य समझ न आए, किंतु इतना अवश्य है, कि उपयोगी सामग्री से परिवार की भौतिक समृद्धि हेतु इसे कल्याण पर्व की संज्ञा दी जाती है।
दीपावली पर्व श्रृंखला का दूसरा पर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी के रूप में मनाए जाने इस पर्व को दानव नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की विजय पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। किवदंती है कि काली चौदस के नाम से विख्यात अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक पर्व पर यमराज की पूजा करने से मृत्यु का भय कम होता है तथा अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला मुख्य पर्व दीपावली लंका पति रावण पर भगवान श्रीराम की विजय के उपरांत अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में इसे स्वच्छता का पर्याय मानते हुए प्रकाश पर्व की संज्ञा दी जाती है। इसी दिवस धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। वर्ष भर की बारह अमावस्याओं में सबसे काली रात को मिट्टी के दीयों में कपास की बत्ती को सरसों के तेल में भिगोकर अंधकार पर विजय का प्रतीक सिद्ध किया जाता है। भारतीय परिवार विश्व के किसी भी कोने में हों, इस पर्व को विशिष्ट प्रकार से मनाते हैं। इस पर्व को आर्थिक समृद्धि का प्रतीक मानते हुए लक्ष्मी जी की विशिष्ट पूजा करके धन धान्य से पूर्ण होने की कामना की जाती है तथा मित्रों, परिचितों, सगे सम्बन्धियों के मध्य उपहारों का आदान प्रदान किया जाता है। आतिशबाजी करके जहां एक ओर प्राकृतिक रूप से कीट पतंगों को नष्ट किया जाता है। वहीं कंदील, दीप तथा प्रकाश के विविध माध्यमों से अंधकार पर विजय प्राप्ति का संकल्प पूर्ण किया जाता है।
दीपावली के उपरांत कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजने की परम्परा है। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देवता के कोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठाकर रखा तथा ब्रजवासियों की रक्षा की तथा इंद्र का कोप शांत होने पर ब्रजवासियों ने गोवर्धन की पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाया, तब से गोवर्धन पर्व श्रृंखला के एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। कालांतर में यह पर्व गोवंश वृद्धि की कामना हेतु भी मनाया जाने लगा। उपलब्ध अधिक से अधिक मौसमी तरकारियों के मिश्रण से पकवान बनाकर अन्नकूट से इस पर्व को मनाने की परम्परा निभाई जाती है।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाले पांचवे पर्व को भाई दूज और यमद्वितीया के रूप में मनाया जाता है। भारतीय समाज में रिश्तों का बड़ा मोल है। हर रिश्ते की अलग मर्यादा है, जिसमें बहन भाई का प्रेम श्रेष्ठ एवं पावन माना गया है। इस पर्व पर बहनें अपने भाई की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी अपने कर्तव्य को निभाने हेतु संकल्प बद्ध होकर बहन का रक्षा कवच बनने का वचन देता है। कायस्थ समाज में इस दिन कलम-दवात एवं चित्रगुप्त पूजा की भी परम्परा है। इस प्रकार यह दीपावली का पंच पर्व विधान सर्व कल्याण की कामना के साथ पूर्ण होता है। *(विनायक फीचर्स)**
(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)

यूँ तो भारतीय समाज में सभी पर्व सामाजिक सद्भाव एवं पारस्परिक सहयोग से जीवन को प्रफुल्लित करने का संदेश देते हैं। पर्व मनाए जाने की पृष्ठभूमि में समाज को जोड़ने के लिए जनमानस की भागीदारी सुनिश्चित की गई है। रोटी, कपड़ा और मकान जुटाने की चाहत में जूझते जनमानस के लिए पर्व जहां परिजन के संग बैठकर खुशियाँ मनाने के लिए एक सशक्त माध्यम बनते हैं। वहीं परिवारों की आर्थिक समृद्धि में भी पर्व महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पर्व कोई भी हो, उसे मनाने के लिए समाज का एक बड़ा वर्ग अल्पकालिक रोज़गार पाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में भी समर्थ होता है। यदि दिवाली की विशिष्टता का अध्ययन करें, तो स्पष्ट होगा, कि अन्य पर्वों की अपेक्षा दिवाली सर्व मंगल कामना पूर्ति का महापर्व है। दिवाली पर्व अकेला नहीं आता, बल्कि यह पांच पर्वों की श्रृंखला का संयुक्त पर्व है, जिसके अंतर्गत आने वाले सभी पर्व अपनी अपनी विशिष्टता का परिचय देते हुए समाज को आर्थिक रूप से समृद्ध करते हैं। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को श्रृंखला का प्रथम पर्व धनतेरस मनाया जाता है। इसे औषधि के देवता भगवान धन्वंतरि की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है तथा आरोग्य रहने की कामना की जाती है । दूसरी ओर इस पर्व पर नई वस्तुओं को क्रय करके गृह सज्जा सामग्री सहित अनेक घरेलू उपकरण व रसोई हेतु नए बर्तन ख़रीदने की परम्परा है। भले ही तर्क की कसौटी पर इनका औचित्य समझ न आए, किंतु इतना अवश्य है, कि उपयोगी सामग्री से परिवार की भौतिक समृद्धि हेतु इसे कल्याण पर्व की संज्ञा दी जाती है।
दीपावली पर्व श्रृंखला का दूसरा पर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी के रूप में मनाए जाने इस पर्व को दानव नरकासुर पर भगवान श्रीकृष्ण की विजय पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। किवदंती है कि काली चौदस के नाम से विख्यात अंधकार पर प्रकाश की विजय के प्रतीक पर्व पर यमराज की पूजा करने से मृत्यु का भय कम होता है तथा अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है।
कार्तिक अमावस्या को मनाया जाने वाला मुख्य पर्व दीपावली लंका पति रावण पर भगवान श्रीराम की विजय के उपरांत अयोध्या लौटने की ख़ुशी में मनाया जाता है। भारतीय संस्कृति में इसे स्वच्छता का पर्याय मानते हुए प्रकाश पर्व की संज्ञा दी जाती है। इसी दिवस धन की देवी लक्ष्मी जी की पूजा का विधान है। वर्ष भर की बारह अमावस्याओं में सबसे काली रात को मिट्टी के दीयों में कपास की बत्ती को सरसों के तेल में भिगोकर अंधकार पर विजय का प्रतीक सिद्ध किया जाता है। भारतीय परिवार विश्व के किसी भी कोने में हों, इस पर्व को विशिष्ट प्रकार से मनाते हैं। इस पर्व को आर्थिक समृद्धि का प्रतीक मानते हुए लक्ष्मी जी की विशिष्ट पूजा करके धन धान्य से पूर्ण होने की कामना की जाती है तथा मित्रों, परिचितों, सगे सम्बन्धियों के मध्य उपहारों का आदान प्रदान किया जाता है। आतिशबाजी करके जहां एक ओर प्राकृतिक रूप से कीट पतंगों को नष्ट किया जाता है। वहीं कंदील, दीप तथा प्रकाश के विविध माध्यमों से अंधकार पर विजय प्राप्ति का संकल्प पूर्ण किया जाता है।
दीपावली के उपरांत कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजने की परम्परा है। पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र देवता के कोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी ऊँगली पर उठाकर रखा तथा ब्रजवासियों की रक्षा की तथा इंद्र का कोप शांत होने पर ब्रजवासियों ने गोवर्धन की पूजा करके अन्नकूट उत्सव मनाया, तब से गोवर्धन पर्व श्रृंखला के एक पर्व के रूप में मनाया जाने लगा। कालांतर में यह पर्व गोवंश वृद्धि की कामना हेतु भी मनाया जाने लगा। उपलब्ध अधिक से अधिक मौसमी तरकारियों के मिश्रण से पकवान बनाकर अन्नकूट से इस पर्व को मनाने की परम्परा निभाई जाती है।
कार्तिक शुक्ल द्वितीया को मनाए जाने वाले पांचवे पर्व को भाई दूज और यमद्वितीया के रूप में मनाया जाता है। भारतीय समाज में रिश्तों का बड़ा मोल है। हर रिश्ते की अलग मर्यादा है, जिसमें बहन भाई का प्रेम श्रेष्ठ एवं पावन माना गया है। इस पर्व पर बहनें अपने भाई की लम्बी उम्र, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं। भाई भी अपने कर्तव्य को निभाने हेतु संकल्प बद्ध होकर बहन का रक्षा कवच बनने का वचन देता है। कायस्थ समाज में इस दिन कलम-दवात एवं चित्रगुप्त पूजा की भी परम्परा है। इस प्रकार यह दीपावली का पंच पर्व विधान सर्व कल्याण की कामना के साथ पूर्ण होता है।

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(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)

 

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