(इंजी. अरुण कुमार जैन)
“आज गौरी काम पर नहीं आई! दिवाली का सारा काम, मेहमानों के काम और घर के प्रतिदिन के काम, सभी करने हैं! हे भगवान कैसे होंगे”!
मां का व्यग्रता भरा स्वर घर में गूँजा। बाबूजी व घर के सदस्य शांत अपने-अपने कार्यों में व्यस्त रहे।
” इसको तो मैं नौकरी से निकाल दूंगी!”.. इसे पता है कि आज दिवाली है व आज ही धोखा दे गई। ” मां के स्वर में आक्रोश था।
“क्यों नाराज हो रही हो मां?.. “पिछले 7 दिनों से तो गौरी ही सारा- सारा दिन यहां रह कर आपके काम कर रही है।”
माँ को शांत करने के लिए बेटी सरिता बोली।
“वह तो ठीक है, पर आज तो सबसे अधिक काम है! आज ही धोखा दे गई! इतना बड़ा दिवाली का त्यौहार है, मैं तो उसकी छुट्टी ही करूंगी।” माँ ने दो टूक निर्णय सुना दिया.
” मां उसके लिए भी तो दिवाली सबसे बड़ा पर्व है..7 दिन निरंतर काम में खटने के बाद वह भी तो थकी होगी… उसे भी तो अपने घर के काम करने होंगे.. और बीमार भी तो हो सकती है वह। ” सरिता ने संतुलित शब्दों में अपनी बात कही.
एक-एक शब्द मां के मन मस्तिष्क पर अंकित हो गया।
गौरी की थकी कृशकाय देह उनकी आंखों के आगे तैर गई, मन में उठा आक्रोश तिरोहित होने लगा, वे तुरंत ही उनके काम हाथों-हाथ करने वाली गौरी के मंगल की कामना करने लगी। *(विनायक फीचर्स)
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