प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है। प्लास्टिक प्रदूषण का मतलब है पर्यावरण में प्लास्टिक का संचय होना, जो वन्यजीवों और मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसमें हर साल अरबों टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है और अधिकांश प्लास्टिक ऐसे स्थानों पर पहुँच जाता हैं जहाँ उसे नहीं होना चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) अनुसार प्रतिदिन लगभग 2000 ट्रकों जितना प्लास्टिक कचरा दुनिया भर के के महासागरों, नदियों और झीलों फेंका जाता है जिससे यह सब तंत्र प्रदूषित होते हैं। वर्ष भर में यह लगभग लगभग 19 से 23 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जलीय पारिस्थितिकी तंत्र में रिसता है।
प्लास्टिक के विभिन्न स्तरों पर और कई तरह के प्रयोग-उपयोग हैं, जो हमारे दिन-प्रतिदिन का हिस्सा हो गया है, जिनसे हम लोग भली भाती परिचित हैं। परंतु प्लास्टिक प्रदूषण से हो रहे प्रभावों से अब कोई देश, कोई राज्य, कोई व्यक्ति अछूता नहीं है। यह किसी ने किस प्रकार से हमें, हमारे स्वास्थ्य को, हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र को दूषित करता जा रहा है और एक गंभीर रूप ले चुका है।
प्लास्टिक एक कृत्रिम सामग्री है, जो कई तरह के रसायनों को मिलाकर बनाई जाती है। प्लास्टिक, पॉलीमर से बने होते हैं, जो दोहराए जाने वाले बिल्डिंग ब्लॉक से बने बड़े अणु होते हैं। यह विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है, जैसे कि पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, और कोयला। प्लास्टिक कई प्रकार में उपलब्ध है जैसे पॉलीइथिलीन, एचडीपीई, एलडीपीई, पॉलीप्रोपाइलीन, पॉलीविनाइल क्लोराइड, पॉलीस्टाइनिन, पॉलीस्टाइनिन, थर्मोसेटिंग प्लास्टिक (जैसे बैकेलाइट, मेलामाइन), पॉलीकार्बोनेट, पॉलिएस्टर, नायलॉन, इत्यादि।
प्लास्टिक के प्रकार और उसके कई प्रकार के उपयोगों को हम जानते हैं और उससे हो रहे प्रदूषण से अधिकतर लोग संभवतः चिंतित भी हैं। प्लास्टिक प्रदूषण, पर्यावरण में प्लास्टिक कचरे के जमा होने को कहते हैं, जिससे वन्यजीवों, मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है। प्लास्टिक का उत्पादन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन में भी योगदान देता है। प्लास्टिक के उत्पादन और जलने के दौरान वातावरण में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जित होता है। प्लास्टिक में पाए जाने वाले रसायन, जैसे कि फ़थलेट्स, बिस्फेनॉल ए (BPA), और फ्लेम रिटार्डेंट्स,जहरीले होते हैं और शरीर में प्रवेश करने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
*जब इतनी समस्या है तो फिर प्रयोग-उपयोग क्यों?*
क्या आपने सोचा है कि मूल समस्या किस बात से है।
मूलतः यह एकल-उपयोग प्लास्टिक अथवा सिंगल यूज प्लास्टिक है जो चिंता का विषय है और होना भी चाहिए। यह वह प्लास्टिक उत्पाद है जो एक ही बार उपयोग में आते हैं और उसके बाद फेंक दिया जाता है। इनमें प्लास्टिक पन्नी/थैली/बैग, स्ट्रॉ, पानी की बोतलें, खाद्य पैकेट, डिस्पोजेबल कटलरी इत्यादि शामिल है। जिनका ठीक से निस्तारण नहीं होने पर समस्या उत्पन्न होने लगती है।
कई सिंगल-यूज प्लास्टिक वस्तुओं को पुनर्चक्रण करना मुश्किल होता है, क्योंकि वे जटिल संरचना, संदूषण या पतले आकार के कारण पुनर्चक्रण योग्य नहीं होते हैं। यह एक बार उपयोग कर फेंका गया प्लास्टिक सड़कों पर गंदगी करता है, पशुओं के खाने में आता है, नालियों को बंद कर देता है, भूमिगत प्रदूषण और मिट्टी पर दुष्प्रभाव, सामुदायिक एवं पर्यटन स्थानों पर अव्यवस्था एवं सुंदरता को ख़राब करता है। यह कई हज़ार वर्षों तक ऐसे ही भूमि में पड़ा-गड़ा रह सकता है, धीरे धीरे इसके टुकड़े यहाँ वहाँ फैलने भी लगते हैं। श्वानों, गायों, बकरियों, पक्षियों इत्यादि के संपर्क में आता है, कई बार उनके खाने में भी चला जाता है।
भूमिगत प्लास्टिक से मिट्टी की जैव-विविधता पर भी दुष्प्रभाव होता है। विभिन्न शोध में अब माइक्रोप्लास्टिक पाए जाने की पुष्टि की जा रही है। यह बहुत गंभीर रूप ले चुका है। केवल खाद्यान ही नहीं, जल में भी छोटे-छोटे प्लास्टिक के कणों को पाया गया है। प्लास्टिक हमारे दैनिक उपयोग के साथ ही अब हमारे शरीर का भी हिस्सा हो रहा है, जिससे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हो रहे हैं।
भारत में भी प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर समस्या है। जहां तक देश में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक कचरे का सवाल है, वह भी बढ़ता जा रहा है। संसद में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में प्रस्तुत की गई जानकारी अनुसार– “राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (एसपीसीबी) / प्रदूषण नियंत्रण समितियों (पीसीसी) द्वारा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को उपलब्ध कराई गई जानकारी अनुसार प्लास्टिक कचरे के उत्पादन की मात्रा 2016-17 में 1,568,714 टीपीए से बढ़कर 2020-21 में 4,126,997 टीपीए हुई। जिसमें अगर हम मध्य प्रदेश की बात करें तो 2016-17 में 50457 टीपीए से बढ़कर 2020-21 में 138483 टीपीए हुआ।“
भारत सरकार द्वारा इस समस्या से निपटने के लिए कई प्रयास भी किए जा रहे हैं, जैसे –
• सिंगल-यूज प्लास्टिक के उपयोग पर प्रतिबंध।
• प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन को बढ़ावा देना।
• प्लास्टिक उद्योग के लिए नियम और विनियम बनाना।
• पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रम चलाना।
पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) द्वारा प्रेषित जानकारी अनुसार – “प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016, संशोधित रूप में, देश में पर्यावरण की दृष्टि से सुदृढ़ प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वैधानिक ढांचा प्रदान करता है। इन नियम शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को प्लास्टिक कचरे के संग्रहण सहित प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन करने के लिए बाध्य बनाते है। इन नियमों के तहत, शहरी स्थानीय निकायों और ग्राम पंचायतों को यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि प्लास्टिक कचरे को खुले में न जलाया जाए। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों के तहत 2022 में अधिसूचित प्लास्टिक पैकेजिंग पर विस्तारित निर्माता जिम्मेदारी (ईपीआर) के कार्यान्वयन से देश भर में प्लास्टिक कचरे के संग्रह, पृथक्करण, प्रसंस्करण को कवर करने वाले अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र के अधिक विकास की अनुमति मिलेगी। ईपीआर दिशानिर्देशों के तहत अब तक कुल 2,614 प्लास्टिक अपशिष्ट प्रोसेसर (पीडब्ल्यूपी) पंजीकृत किए गए हैं और प्लास्टिक पैकेजिंग पर केंद्रीकृत ईपीआर पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार करीब 103 लाख टन प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे को प्रसंस्कृत किया गया है।
इसके अलावा, भारत सरकार, योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन सहित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए, स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता भी प्रदान करती है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन इकाइयाँ, स्वच्छ भारत मिशन चरण II (ग्रामीण) [एसबीएम (जी)] के तहत स्थापित की गई हैं। एसबीएम (जी) चरण II के दिशानिर्देश पीडब्लूएमयू के निर्माण के लिए प्रति ब्लॉक 16 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं। इसके अलावा, ज़रूरत के मुताबिक, पीडब्लूएमयू को उन ब्लॉकों के लिए उपलब्ध समग्र फंडिंग सीमा के भीतर एक से अधिक ब्लॉक के लिए क्लस्टर मोड में भी स्थापित किया जा सकता है।
स्वच्छ भारत मिशन शहरी 2.0 (एसबीएम-यू 2.0) के तहत, योजना के दिशानिर्देशों के अनुसार, आवासन और शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन सहित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता प्रदान की जाती है। एसबीएम-यू 2.0 के संचालन दिशानिर्देशों के अनुसार, सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाओं (एमआरएफ) जैसी अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाओं की स्थापना, स्थायी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए वित्त पोषण का एक ज़रूरी घटक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, देश में मौजूदा ठोस अपशिष्ट सामग्री पुनर्प्राप्ति सुविधाओं की कुल संख्या 4446 है, जिनकी क्षमता 31427.2 टीपीडी है।”
भारत ने 1 जुलाई 2022 तक हल्के प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक बड्स और प्लास्टिक स्ट्रॉ, कम उपयोगिता और उच्च-कचरा एकल-उपयोग वाली एकल-उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं को चरणबद्ध तरीके से हटाने के लिए 12 अगस्त 2021 को नियम पेश किए थे और इसे लागू किया गया। इनमें गुब्बारे, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी स्टिक, आइसक्रीम स्टिक, पॉलीस्टाइनिन, प्लास्टिक प्लेट, गिलास, कटलरी (प्लास्टिक के कांटे, चम्मच, चाकू, ट्रे), प्लास्टिक स्टिरर आदि शामिल हैं। साथ ही 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन तक कर दी गई है। और विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व से संबंधित दिशानिर्देश को कानूनी शक्ति प्रदान की गई हैं।
चिन्हित एसयूपी वस्तुओं पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय नियंत्रण कक्ष स्थापित किये जायेंगे तथा प्रतिबंधित एकल उपयोग प्लास्टिक के अवैध निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री एवं उपयोग की निगरानी के लिए विशेष प्रवर्तन दल गठित किये जायेंगे। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को किसी भी प्रतिबंधित एकल उपयोग वाली प्लास्टिक की वस्तुओं के अंतर-राज्य परिवहन को रोकने के लिए सीमा जांच केंद्र स्थापित करने के लिए कहा गया है। सीपीसीबी शिकायत निवारण ऐप, नागरिकों को प्लास्टिक से जुड़ी समस्या से निपटने में मदद हेतु सशक्त बनाने के लिए शुरू किया गया है। सरकार एकल उपयोग वाली प्लास्टिक को समाप्त करने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विभिन्न उपाय कर रही है। जागरूकता अभियान में उद्यमियों और स्टार्ट अप्स, उद्योग, केंद्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों नियामक निकायों, विशेषज्ञों, नागरिक संगठनों, अनुसंधान एवं विकास और अकादमिक संस्थानों को एकजुट किया गया है।
पत्र सूचना कार्यालय द्वारा जारी की गई जानकारी अनुसार – “विश्व स्तर पर, प्लास्टिक प्रदूषण के प्रबंधन में प्रगति हुई है। उल्लेखनीय उपायों में स्थायी कार्बनिक प्रदूषकों पर स्टॉकहोम कन्वेंशन, सीमा पार प्लास्टिक कचरे के लिए बेसल कन्वेंशन के अनुबंधों में संशोधन, क्षेत्रीय समुद्रों पर समझौते, समुद्री कूड़े की कार्य योजना और जहाजों से कूड़े को रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (आईएमओ) के उपाय शामिल हैं। 2014 से संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए) के प्रस्तावों की एक श्रृंखला ने कई चुनौतियों का समाधान किया है। इसके अलावा, समुद्री कूड़े के संभावित समाधान की पहचान करने के लिए 2017 में (एएचईजी) यूएनईए3 द्वारा एक एड हॉक ओपन एक्सपर्ट ग्रुप की स्थापना की गई थी। इसने 13 नवंबर 2020 को अपना काम समाप्त किया, जिसमें “एकल-उपयोग प्लास्टिक सहित प्लास्टिक के अनावश्यक और परिहार्य उपयोग की परिभाषाओं” के विकास सहित कई प्रतिक्रिया विकल्पों को रेखांकित किया गया।
इसलिए, एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों की खपत को कम करने और वैकल्पिक समाधानों पर विचार करने की आवश्यकता है। मार्च 2019 में, चौथी संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए-4) ने ‘एकल-उपयोग प्लास्टिक उत्पादों से प्रदूषण को संबोधित करने’ (यूएनईपी/ईए.4/आर.9) पर एक संकल्प अपनाया। यह ‘सदस्य देशों को कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित करता है।’ उन विकल्पों के पूर्ण जीवन चक्र प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों के लिए पर्यावरण के अनुकूल विकल्पों की पहचान और विकास को प्रोत्साहित करना। आईयूसीएन ने एकल-उपयोग प्लास्टिक (डब्लूसीसी 20202 आरईएस 19 और आरईएस 69 और 77) के मुद्दे को संबोधित करते हुए तीन प्रस्तावों को अपनाया है। संकल्प 69 ‘सदस्य देशों से एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों द्वारा संरक्षित क्षेत्रों के प्रदूषण को रोकने के लिए 2025 तक प्राथमिकता कार्रवाई करने का आह्वान करता है, जिसका अंतिम लक्ष्य संरक्षित क्षेत्रों में सभी प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना है।”
प्लास्टिक प्रदूषण पर प्रयास काफ़ी समय से किए जा रहे हैं। जैसे विश्व पर्यावरण दिवस 2018 की थीम “बीट प्लास्टिक पॉल्यूशन” (Beat Plastic Pollution) थी, जिसकी मेजबानी भारत ने की थी। इस थीम का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण विशेषकर एकल-उपयोग प्लास्टिक (single use plastic) के उपयोग को कम करना और प्लास्टिक प्रदूषण के कारण होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
इस विश्व पर्यावरण दिवस 2025 की थीम है “एक राष्ट्र, एक मिशन, प्लास्टिक प्रदूषण का अंत”।
*अब इसका अंत कैसे हो?*
एकल उपयोग प्लास्टिक एक राक्षस की तरह है, एक कुप्रथा की तरह है, एक ऐसी आदत है, जिसके उन्मूलन की आवश्यकता है।
प्लास्टिक कचरे का निपटान और प्रबंधन एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए सरकार और नागरिकों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। सिंगल यूज प्लास्टिक को कम करने, उसके सही उपयोग, प्रबंधन, नियंत्रण एवं सही निस्तारण करने के संकल्प से ही सिद्ध हो सकता है। हमें एकजुट हो, एक-दूसरे को सही तरीकों, पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली के लिए प्रोत्साहित करे, और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करें। हमारे प्रधान मंत्री जी ने देश को स्वच्छता के अभियान से जोड़ा है। उनके द्वारा विभिन्न अवसरों पर स्वच्छता का उदाहरण स्वयं प्रस्तुत किया है, सिर्फ़ कहा या बोला ही नहीं करके भी दिखाया है। यह तभी संभव है जब “मैं से हम और हम से सब” के मंत्र को ध्यान में रखते हुए जब हम ख़ुद से आरम्भ करेंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे।
प्लास्टिक के पर्यावरणीय, सामाजिक, आर्थिक, जलवायु परिवर्तन, पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण, संसाधनों के उपयोग, और स्वास्थ्य जोखिमों का मूल्यांकन भी अन्य विषयों के साथ किया जाना चाहिए।
(कार्तिक सप्रे -विभूति फीचर्स)



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