शिक्षक पढ़ाता है, गुरु जगाता है, दोनों के साथ से ही जीवन की संपूर्णता

ख़बर शेयर करें

 

भारतीय संस्कृति में ज्ञान को देवत्व का स्थान दिया गया है। विद्या को सरस्वती का वरदान और शिक्षा को जीवन का दीपक माना गया है। किंतु इस ज्ञान की यात्रा में हमें दो रूप मिलते हैं – एक है शिक्षक, जो हमें पढ़ाता है और दूसरा है गुरु, जो हमें जगाता है। दोनों पूजनीय हैं, दोनों आवश्यक हैं, किंतु दोनों की भूमिका और प्रभाव में गहरा अंतर है।

शिक्षक वह है जो किसी विद्यालय या संस्थान में बैठकर हमें पाठ्य विषयों का ज्ञान कराता है। उसकी वाणी से अक्षरों की ध्वनि निकलती है, पुस्तकों के सूत्र जीवन का हिस्सा बनते हैं और परिश्रम से विद्यार्थी परीक्षा में सफल होकर करियर की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। शिक्षक हमारी बुद्धि को धार देता है और हमें समाज में आगे बढ़ने योग्य बनाता है। डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, लेखक और अधिकारी- सब किसी न किसी शिक्षक की मेहनत का परिणाम हैं। शिक्षक वह दीपक है जो अंधकार में दिशा दिखाता है और हमें जीविका के साधन उपलब्ध कराता है।
लेकिन केवल पढ़ा देने से जीवन संपूर्ण नहीं होता। जीवन में ऐसे प्रश्न आते हैं जिनका उत्तर किताबों से नहीं मिलता। मन के संशय, आत्मा की पीड़ा और जीवन की दिशा तब तक अस्पष्ट रहती है जब तक कोई गुरु उन्हें दूर न करे। गुरु का कार्य शिष्य को केवल जानकारी देना नहीं, बल्कि उसके भीतर छिपे ज्ञान को जागृत करना है। शिक्षक से हम पाठ याद करते हैं, पर गुरु से हम जीवन का अर्थ समझते हैं। शिक्षक हमारे मस्तिष्क को प्रशिक्षित करता है, पर गुरु हमारी आत्मा को स्पर्श करता है।
यही कारण है कि भारत की परंपरा में गुरु को देवत्व तक माना गया। कहा गया *“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः, गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।”* इस श्लोक में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूजनीय बताया गया है। गुरु केवल हमें विषय में दक्ष नहीं बनाता, बल्कि हमें धर्म, सदाचार और आत्मबल से भी परिपूर्ण करता है। कृष्ण ने अर्जुन को युद्धभूमि में केवल शस्त्र विद्या ही नहीं दी, बल्कि गीता के माध्यम से जीवन का परम सत्य बताया। यही गुरु की पहचान है- वह शिष्य के मोह को तोड़कर सत्य का मार्ग दिखाता है।
आज के समय में शिक्षक और गुरु दोनों की आवश्यकता है। शिक्षक हमें जीवन जीने का साधन देता है, पर गुरु हमें जीवन जीने का सार समझाता है। शिक्षक हमें नौकरी दिला सकता है, पर गुरु हमें मोक्ष की ओर ले जा सकता है। शिक्षक पढ़ाता है कि प्रश्नों के उत्तर कैसे लिखें, पर गुरु जगाता है कि जीवन के प्रश्नों का उत्तर कैसे जियें। शिक्षक हमारी बुद्धि को तेज करता है, गुरु हमारी चेतना को प्रज्वलित करता है।
यही कारण है कि हम शिक्षक दिवस भी मनाते हैं और गुरु पूर्णिमा भी। एक दिन आधुनिक शिक्षा को सम्मान देने का है, और दूसरा सनातन परंपरा के उस दिव्य संबंध को प्रणाम करने का, जो गुरु और शिष्य के बीच आत्मीय बंधन के रूप में स्थापित है। हमारी संस्कृति में भी शिक्षा का उद्देश्य केवल अक्षरों को पढ़ाना नहीं, बल्कि आत्मा को जगाना है। शिक्षक पढ़ाता है, गुरु जगाता है और जब यह दोनों साथ मिलते हैं, तभी जीवन की संपूर्णता प्रकट होती है।

यह भी पढ़ें 👉  माँ नन्दा सुनन्दा दिव्य ज्योति महोत्सव हल्द्वानी का धार्मिक विधि-विधान के साथ हुआ समापन

 

(विजय कुमार शर्मा-विनायक फीचर्स)

Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad Ad