माँ अवंतिका के सानिध्य में रहकर करते हैं देवगुरु बृहस्पति देवताओं का कल्याण शास्त्रों में वर्णित दिव्य सम्बन्ध, आध्यात्मिक महत्व और रहस्यात्मक परंपरा

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भारतीय संस्कृति में देवताओं के स्थान केवल धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के केंद्र माने गए हैं। उनमें दो शक्तियाँ—माँ अवंतिका और देवगुरु बृहस्पति महाराज—विशेष रूप से शुभता, सद्गुण, ज्ञान और धर्म–संवर्धन की प्रतीक मानी जाती हैं। इन दोनों के बीच संबंध केवल आस्था का नहीं बल्कि पुराणों, ज्योतिषशास्त्र और आध्यात्मिक धारा का अद्भुत मिलन है।

🌿 अवंतिका क्या है? पुराणों में पहचान

स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि अवंतिका भूमि को स्वयं शिव ने ‘मोक्षदायिनी’ कहा है।
उज्जैन में स्थित महाकाल महाराज की नगरी अवंतिका केवल एक तीर्थ नहीं बल्कि सिद्धियों का केंद्र मानी जाती है।

🔸 स्कंद पुराण (अवंति खंड) में उल्लेख है—

 “अवंत्या भूमिरेषा सिद्धिदा मुक्तिदा शुभा।”
अर्थात—अवंतिका की भूमि मनोकामनाएँ पूर्ण करने वाली और मुक्ति देने वाली है।

🌟 देवगुरु बृहस्पति का महत्व

देवताओं के गुरु बृहस्पति महाराज ज्ञान, ब्रह्मविद्या, सत्य, विवाह, धर्म और संतान के देवता माने जाते हैं।
वे ब्रह्मर्षि अंगिरा के पुत्र और देवताओं के सलाहकार हैं।
बृहस्पति ग्रह का प्रभाव मानव जीवन पर गहन माना गया है और उनकी कृपा से—

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✔ ज्ञान
✔ संतान सुख
✔ सम्मान
✔ समाज में प्रतिष्ठा
✔ विवाह
✔ समृद्धि

जीवन में प्रवेश करती है।

🔱 माँ अवंतिका और बृहस्पति का दिव्य संबंध

युगों पूर्व, देवगुरु बृहस्पति महाराज ने अपनी तपस्या और अध्यात्म–साधना का केंद्र अवंतिका धाम को बनाया। कहा जाता है कि जब असुरों और देवों के बीच संघर्ष चरम पर था, तब देवताओं के पथदर्शक बृहस्पति ने अवंतिका की दिव्य ऊर्जा से मार्गदर्शन और शक्ति प्राप्त की।

पुराणों में उल्लेख मिलता है:

 “अवंत्यां ब्रह्मविद्याम् ब्रहस्पतिः प्राप्तवान्।”
(लोक परंपरा अनुसार, अर्थ– देवी अवंतिका के क्षेत्र में ही बृहस्पति ने सर्वोच्च ब्रह्म ज्ञान को स्थिर किया।)

अर्थात—ब्रह्मज्ञान, अध्यात्म और धर्म को स्थिर करने के लिए बृहस्पति ने अवंतिका की ऊर्जा से संबंध स्थापित किया।

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ज्योतिषीय दृष्टि से पवित्र सम्बन्ध

ज्योतिष में बृहस्पति का स्वगृह और उच्च–धाम ज्ञान और धर्म का प्रतीक माना गया है।
महाकाल (शिव) की नगरी अवंतिका—ब्रह्मांडीय ऊर्जा का केंद्र है।
शिव–लिंग का स्वरूप ॐ (प्रणव) है और बृहस्पति का मूल बीज मंत्र भी “ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः” है।

🪔 दोनों ऊर्जा ‘धर्म’ और ‘ज्ञान’ के स्तंभ हैं।
इसी कारण अवंतिका में की गई बृहस्पति पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है।

पौराणिक घटना : गुरुवर का आशीर्वाद

पुराणों में कथा मिलती है कि एक बार देवगुरु बृहस्पति अवंतिका में तप कर रहे थे। उसी दौरान अवनिनाथ (शिव) प्रकट हुए और बोले—

 “हे ब्रहस्पते! यहाँ की साधना केवल जीवों का कल्याण नहीं करेगी, बल्कि तेरे नाम से धर्म और सत्पथ का मार्ग संसार में प्रकाशित होगा।”

यही कारण है कि उज्जैन में गुरुवार और बृहस्पति ग्रह की उपासना विशेष फलदायी मानी जाती है।

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आधुनिक विश्वास: क्यों है यह संबंध आज भी जीवित?

अवंतिका की शक्ति आज भी अनेक लोगों को—
🔹 विवाह में विलंब
🔹 संतान प्राप्ति
🔹 ज्ञान में बाधा
🔹 जीवन में अपमान या असफलता
जैसी स्थितियों से उबारती है।
बहुत से श्रद्धालु गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर, चना दाल और गुड़ दान कर मंदिरों में दर्शन करते हैं, जिससे माँ अवंतिका की कृपा और बृहस्पति की ऊर्जा संयुक्त होकर शुभ फल देती है।

सार

माँ अवंतिका और देवगुरु बृहस्पति का संबंध केवल कथाओं तक सीमित नहीं बल्कि

⭐ पुराण
⭐ ज्योतिष
⭐ साधना
⭐ ऊर्जा विज्ञान
⭐ और मानव अनुभव

सभी में प्रमाणित है।

जहाँ अवंतिका शक्ति है, वहीं बृहस्पति ज्ञान हैं।
जहाँ अवंतिका मोक्ष है, वहीं बृहस्पति धर्म का प्रकाश हैं। दोनों मिलकर जीवन में सद्बुद्धि, सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करते हैं।

✍ रिपोर्ट : रमाकान्त पन्त

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