दीपावली पर्व पर श्री एवं समृद्घि प्राप्ति हेतु पुराणादि धर्मशास्त्रीय ग्रंथों में पूजा पूर्व विशेष स्नानों का उल्लेख प्राप्त होता है। अग्निपुराण में राजाओं को विजय तथा समृद्घि प्राप्ति हेतु माहेश्वर स्नानों का विस्तृत वर्णन मिलता है इन स्नानों के प्रणेता आचार्य शुक्राचार्य थे। सर्वप्रथम यह स्नान उन्होंने दानवेन्द्र राजा बलि को करवाया था। चूंकि अब राजा व राजतंत्र दोनों ही नहीं रहे किंतु अग्रिपुराण, पदम्-पुराण, भविष्योत्तर-पुराण एवं धर्मशास्त्रों में लक्ष्मी एवं आरोग्य प्राप्ति हेतु सामान्य प्रजाजनों के लिए दीपावली महापर्व के उपलक्ष्य में विशेष स्नानों की व्यवस्था मिलती है।
सामान्यत: स्नान करने की सात विधियां प्रचलित हैं, मंत्र स्नान, भौमस्नान, अग्निस्नान, वायव्यस्नान, दिव्यस्नान, वारूणस्नान और मंगलस्नान आदि। मंत्रों के द्वारा मार्जन करना मंत्रस्नान, विशेष प्रकार की मिट्टी लगाकर स्नान करना मृत्तिका (भौम) स्नान, भस्म (भभूति-राख) लगाकर स्नान करना भस्म-अग्निस्नान, गाय के खुर की धूल लगाकर स्नान करना वायव्यस्नान, सूर्यकिरण में वर्षा के जल से स्नान करना दिव्यस्नान, पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर स्नान करना वारूणस्नान और मंगल अवसरों, त्यौहार आदि में निश्चित विधि अभ्यंग आदि से स्नान करना मंगलस्नान की श्रेणी में आता है। स्नान विधि के पश्चात् ही हम पूजा-अर्चना के योग्य बनते हैं। स्नानकर्म से दृष्ट एवं अदृष्ट शारीरिक शुद्घि, तथा पापनाश के साथ ही पुण्य की प्राप्ति होती है। संक्षेप में सामान्य रूप से स्नान कर्म से रूप, तेज, बल, पवित्रता, आयु, आरोग्य, ऐश्वर्य, दु:स्वप्ननाश, तप और मेघा इन दस गुणों की प्राप्ति होती है- *गुण दश स्नान-परस्यसाधौ, रूपंचतेजश्च बलं च शौर्यम्। आयुष्यमारोग्यमलोलुपत्वं दु:स्वप्ननाशश्च तपश्च मेघा:॥*
चतुर्दशी (रूपचौदस) से कार्तिक-शुक्ल प्रतिपदा इन तीनों दिनों के संयोग को दीपावली कौमुदी-उत्सव की संज्ञा प्राप्त है। इन दिनों प्रात:काल सतैल (अभ्यंगस्नान) का पुराण एवं धर्मशास्त्रों में बड़ा महत्व है। अभ्यंगस्नान से धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। चतुर्दशी (रूपचौदस) को नरक से बचने तथा धन एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु तेल मालिश कर पवित्र जल से स्नान करना चाहिए एवं सिर पर अपामार्ग की टहनियों को घुमाना चाहिए इससे कष्टों का नाश होता है। वास्तव में नरक-चतुर्दशी जिसे रूपचौदस के नाम से भी जाना जाता है, नरक से बचने के लिए यम को प्रसन्न करने का पर्व है। विष्णुधर्मोत्तरपुराण व श्रीमद्भागवत् में नरकासुर की लूट खसोट एवं उपद्रवों का वर्णन है कि नरकासुर ने देवमाता अदिति के गहने छीन लिये, वरूण को छत्र से वंचित कर दिया, मंदारपर्वत के मणिपर्वत शिखर को छीन लिया, देवताओं-सिद्घों व राजाओं की सोलह हजार कन्याओं का हरण कर उन्हें बंदी बना लिया ऐसे आततायी नरकासुर अर्थात् नरक से बचने के लिए शास्त्रों ने अभ्यंगस्नान की व्यवस्था की है जो शास्त्रीय एवं प्रामाणिक होने के साथ-साथ विज्ञानसम्मत भी है।
पद्मपुराण में उल्लेख है कि दीपावली की चतुर्दशी तिथि में तिल में लक्ष्मी तथा सामान्य जल में भी गंगा प्राप्त होती है, अत: दीपावली के उपलक्ष्य में चौदस को प्रात:काल अभ्यंगस्नान करने से यमलोक नहीं देखना पड़ता है और नरक का नाश होता है- *तैले लक्ष्मीर्जले गंगा दीपावल्याश्चतुर्दशीम्। प्रात:तुय:कुर्याद् यमलोकं न पश्यति॥* दक्षिण भारत में चतुर्दशी को अभ्यंगस्नान करने के बाद कारीट नामक कड़वा फल पैर से कुचलने की प्रथा आज भी प्रचलित है जो नरकासुर के नाश का प्रतीक है। दीपावली पर्व के उपलक्ष में लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति हेतु निम्नांकित स्नानों में से कोई भी एक स्नान कर सहजता से धन समृृद्घि की वृद्घि के साथ श्री प्राप्त की जा सकती है।
(1) दीपावली को प्रात:काल सूर्योदय के पूर्व अभ्यंगस्नान करने से धन समृद्घि की वृद्घि होती है एवं दरिद्रता का नाश होता है।
(2) दीपावली पर्व के उपलक्ष में पंचत्वचा (छाल)-बरगद, गूलर, पीपल, आम और पाकड़़ की छाल को पानी में उबालकर स्नान करने से लक्ष्मी से कभी वियोग नहीं होता है।
(3) गाय के गोबर को पवित्र जल से स्पर्श कराकर गौमयस्नान से धन व लक्ष्मी की अभिवृद्घि होती है।
(4) दुग्धस्नान करने से शक्ति एवं बल की वृद्घि होती है।
(5) दधिस्नान करने से सम्पत्ति बढ़ती है।
(6) घृतस्नान करने से आयु, आरोग्य एवं ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
(7) शतमूल या शतावरी की जड़ से सिद्घ जलस्नान कामनापूर्ति में सहायक होता है।
(8) पलाश, बिल्वपत्र, कमल एवं कुशा से सिद्घ जल स्नान लक्ष्मी प्राप्ति की अचूक साधन है।
(9) रत्नस्नान करने से आभूषणों की प्राप्ति होती है।
(10) तिलस्नान करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
(11) धातृपलस्नान करने से लक्ष्मी सहजता से प्राप्त होती है।
इन स्नानों के साथ ही दीपावली के मंगल पर्व पर लक्ष्मी प्राप्ति श्री एवं समृद्घि हेतु शहद, गन्ने का रस तथा दुग्धमिश्रित त्रिमधुर स्नान सौभाग्यवर्धक होता है। अत: लक्ष्मी पूजा प्रारंभ करने के पूर्व प्रात:काल उपुर्यक्त स्नान विधियों में से कोई भी स्नान का सुविधापूर्वक चयन कर श्री एवं समृद्घि सरलता से प्राप्त की जा सकती है। निर्णयसिन्धु में वर्णन है कि- *वत्सरादौ बलिराज्ये तथैव च। तैलाभ्यंगम् कुर्वाणों नरकं प्रतिपद्यतें।*
दीपावली के साथ कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा वर्ष की अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है अत: चतुर्दशी, दीपावली एवं प्रतिपदा को अभ्यंगस्नान करने से नरक अर्थात् कष्टों का नाश होता है एव धन व समृद्घि की वृद्घि होती है। संक्षेप में कौमुदी-उत्सव (दीपावली) में अभ्यंग अर्थात् मंगलस्नान करने से लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
(आचार्य पं. रामचन्द्र शर्मा ”वैदिक”-विभूति फीचर्स)











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