चार दशक पहले चंबल के बीहड़ों में कुसुमा नाइन खूंखार दस्यु सुंदरी के नाम से जानी जाती थी। कभी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में दहशत का पर्याय बनी डकैत कुसुमा नाइन ने लखनऊ के अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। वह इटावा जेल में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रही थी। साल 1984 में कुसुमा का नाम सुर्खियों में तब आया, जब उसने 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मार दी थी। कुसुमा का यूपी से लेकर एमपी तक के बीहड़ों में आतंक था। उस पर हत्या समेत दर्जनों केस दर्ज थे। कुसुमा को कभी सबसे खूंखार ‘दस्यु सुंदरी’ माना जाता था। जातीय उन्माद के चलते निर्दोषों का खून बहाकर,उनकी आंखे निकालकर ठहाका लगाने वाली कुसुमा खुद जर्जर शरीर के साथ दुनिया से चली गयी।
1981 में बहमई कांड में डाकू फूलन देवी ने 22 राजपूतों की सामूहिक हत्या की थी। इसके बदले में 1984 में कुसुमा ने 14 मल्लाहों को मौत नींद की सुला दिया था। उनके घरों को भी आग के हवाले कर दिया था। कुसुमा की मौत के बाद नरसंहार वाले औरैया के गांव अस्ता में जश्न का माहौल है।
समय का चक्र भी बड़ा विचित्र है । कुसुमा जिस पति केदार नाई का साथ छोड़ कर डकैत माधव मल्लाह के साथ भाग कर बीहड़ में कूदी थी,अंतिम समय में उसी पति केदार नाई ने उसे मुखाग्नि देकर इस संसार से विदा किया। मूल रूप से महेवा ब्लाक के टिकरी मुस्तकिल की रहने वाली कुसम का उसके ससुराल कुठौंद ब्लाक के कुरौली गांव में अंतिम संस्कार किया गया।
कुसुमा नाइन पर दो दर्जन से अधिक मुकदमे दर्ज थे। कई मुकदमों में गवाहों और साक्ष्य न मिलने से वह बरी हो गई। बाद में कानपुर के सेवानिवृत्त एडीजी के अपहरण व हत्या के मामले में वह ऐसा फंसी कि उसे आजीवन कारावास की सजा हुई, इसी सजा के चलते वह इटावा जेल में कैद थी।
कुसुमा नाइन का जन्म साल 1964 में उत्तर प्रदेश के जालौन जिले के टिकरी गांव में हुआ था। पचनद के जंगलों की कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन पर हत्या समेत 24 से अधिक मामले दर्ज थे। देश में जितनी महिला डकैत थीं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी। सिरसाकलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था। कुसुमा के पिता गांव के प्रधान थे। चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। इकलौती संतान होने के चलते लाड़ प्यार से पल रही थी। 13 साल की उम्र में उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम हो गया। वह उसके साथ चली गई। करीब दो साल तक उसका कोई पता नहीं चला। इसके बाद उसने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह दिल्ली के मंगोलपुरी में माधव के साथ है। तब पिता दिल्ली पुलिस के साथ पहुंचे और उसे घर ले आए। इसके बाद माधव मल्लाह पर डकैती का केस लगा और कुसुमा के पिता ने उसकी शादी केदार नाई से कर दी। माधव मल्लाह चंबल के कुख्यात डकैत का साथी था। शादी की खबर पाने के कुछ माह बाद माधव गैंग के साथ कुसुमा के ससुराल पहुंचा और उसे अगवा कर लिया। माधव, उसी विक्रम मल्लाह का साथी था,जिसके साथ फूलन देवी का नाम जुड़ता था। विक्रम मल्लाह की गैंग में रहने के दौरान ही उसे फूलन के जानी दुश्मन लालाराम को मारने का काम दिया गया। लेकिन फूलन से अनबन के कारण बाद में कुसुमा नाइन, लालाराम के साथ ही जुड़ गयी और फिर विक्रम मल्लाह को ही मरवा दिया। इसी कुसुमा नाइन और लालाराम ने बाद में सीमा परिहार का अपहरण किया था, जो कि कुख्यात डकैत के रूप में उभरकर सामने आई थी। साल 1981 में फूलन देवी ने बेहमई कांड को अंजाम दिया था।
चुर्खी थाना क्षेत्र के एक गांव में 1982 में लालाराम और कुसुमा का गैंग रूका था। पिथऊपुर के पीछे इस गांव में डकैत अक्सर रहा करते थे। इसकी जानकारी तत्कालीन चुर्खी थानाध्यक्ष केलीराम को हुई, तो वह दबिश देने गांव पहुंच गए। उस समय कुसुमा शीशा लेकर मांग में सिंदूर भर रहीं थी। जैसे ही उसे शीशे में पुलिस दिखी तो उसने पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी थी। इस घटना में थानाध्यक्ष केलीराम और सिपाही भूरेलाल की मौत हो गई थी। विभिन्न थानों की फोर्स के साथ एसपी जब तक पहुंचे लालाराम, कुसुमा बीहड़ों की ओर भाग गए थे। कुसुमा पुलिस की दो थ्री नाट थ्री राइफल भी लूट ले गई थी।
प्रतिशोध की आग में जलने के कारण ही उसने संतोष और राजबहादुर नामक दो मल्लाहों की आंखें निकाल कर बेरहमी की नई इबारत लिख दी थी। पिछले 20 साल से इटावा जेल में उम्रकैद की सजा काट रही कुसमा टीबी रोग से ग्रसित थी। उसकी क्रूरता के किस्से आज भी लोगों के जेहन में हैं।
कुसुमा नाइन ने 2004 में मध्य प्रदेश के भिंड में आत्मसमर्पण किया था। तभी से वह जेल में बंद थी। इस बीच उसे कई बीमारियों ने जकड़ लिया। उम्र का भी असर था। इन सबके बीच बीते दिनों लखनऊ के एक अस्पताल में इलाज के दौरान कुसुमा का निधन हो गया।
बेहमई कांड के बाद फूलन ने सरेंडर कर दिया था। इसके बाद बीहड़ में कुसुमा नाइन का दबदबा तो बढ़ा ही। उसने लूट, डकैती और हत्या की दर्जनों घटनाओं को अंजाम भी दिया। वह अपनी क्रूरता के लिए भी कुख्यात थी। जिसमें वह किसी को जिंदा जला देती थी तो किसी की आंखें निकाल लेती थी। साल 1984 में कुसुमा का नाम सुर्खियों में तब आया, जब उसने बेहमई कांड की तर्ज पर 15 मल्लाहों को एक साथ गोली मार दी थी। इसी घटना के बाद उसकी लालाराम से भी अनबन हो गई और वह रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा से जुड़ गई। उस पर एक रिटायर्ड एडीजी समेत कई पुलिसवालों की हत्या का भी आरोप था। कई सालों बाद उसका बीहड़ों से मन उचट गया। साल 2004 में कुसुमा और फक्कड़ ने अपनी पूरी गैंग के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। तब से कुसुमा जेल में थी और उम्रकैद की सजा काट रही थी ।
कुसुमा की कहानी आधी सदी पहले के उस भारत की सामाजिक व्यवस्था, डकैतों के समानांतर प्रभुत्व,अवयस्क लड़कियों के यौन शोषण,और जातीय उन्माद के चलते सामूहिक नरसंहार करने की सच्ची कहानी है, जिस कालखंड में शोले रील नहीं रीयल स्टोरी हुआ करती थी।
(मनोज कुमार अग्रवाल-विनायक फीचर्स)



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