राजनीति के नये मुद्दे जलेबी,चूरमा और लड्डू

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आप मानें या न मानें लेकिन हकीकत ये है कि कड़वाहट से भरे नेताओं को भी मिष्ठान प्रिय होते हैं,भले ही नेता मधुमेह के शिकार हों लेकिन मिष्ठान सामने आ जाये तो पीछे नहीं हटता । देश के पूर्व प्रधानमंत्री और ग्वालियर के सपूत अटल बिहारी वाजपेयी को बहादुरा के लड्डू और गुलाब जामुन प्रिय थे,हालांकि वे चाची के मंगौड़ों के भी मुरीद थे। जब तक अटल जी रोग शैय्या पर नहीं गए थे तब तक इन लड्डुओं और मंगौड़ों का सेवन करते रहे। वाजपेयी जी से मिलने वाले उनके रिश्तेदार हों या और कोई यदि उन्हें बहादुरा के लड्डू भेंट करते थे तो उनके मुखमंडल पर एक स्निग्ध मुस्कान तैरने लगती थी। पूर्व राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा जलेबी के शौकीन थे । वे राष्ट्रपति भवन में आगंतुकों को भी जलेबी ही खिलते थे।
हाल ही में तिरुपति के प्रसादम में मिलने वाले लड्डुओं के विवाद के बावजूद ग्वालियर में न बहादुर के लड्डुओं के प्रेमियों की संख्या कम हुई है और न लखनऊ में ठग्गू के लड्डुओं की। लड्डू है ही ऐसी मिठाई जिसे हर जाति और धर्म के लोग खाते हैं। लड्डू मेरे हिसाब से मिठाइयों का राजा है। कायदे से उसे अब तक राष्ट्रीय मिष्ठान घोषित कर देना चाहिए था। मुमकिन है कि महाराष्ट्र सरकार ने जैसे हाल ही में गाय को राज्य माता का दर्जा दिया है वैसे ही आने वाले दिनों में कोई लड्डू प्रेमी सरकार लड्डू को भी राज्य या राष्ट्र मिष्ठान का दर्जा दे दे। हमारे यहां दर्जा देना या पेरोल देना बहुत आसान काम है।
हरियाणा विधानसभा के चुनाव प्रचार में गोहाना पहुंचे लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता और राहुल गांधी भी जलेबी नाम के एक मिष्ठान के मुरीद हो गए। गोहाना की चुनवाई सभा के मंच पर राहुल गांधी ने मातूराम हलवाई की जलेबी का स्वाद चखा। दीपेंद्र हुड्डा ने राहुल गांधी को अपने हाथों ये जलेबी खिलाई। राहुल को इसका स्वाद इतना पसंद आया कि उन्होंने एक डिब्बा अपनी बहन प्रियंका गांधी के लिए पैक करवा लिया। उन्होंने अपनी रैली में भी इस जलेबी का जिक्र किया। बता दें कि लाला मातूराम की जलेबी कोई सामान्य जलेबी नहीं है, इनका आकार सामान्य जलेबी से ज्यादा बड़ा है। एक जलेबी ढाई सौ ग्राम तक की होती है।
जलेबी केवल हम भारतीयों को ही नहीं बल्कि भारत के बाहर तमाम इस्लामिक राष्ट्रों की जनता को भी प्रिय है । वे इसे हिन्दू मिठाई मानकर इसका तिरस्कार नहीं करते। जानकार बताते हैं कि जलेबी भारतीय उपमहाद्वीप व मध्यपूर्व की एक लोकप्रिय मिठाई है। यह किसी कर्ण कुंडल की तरह ऐसी रसभरी होती है कि आप इसे खाये बिना रह नहीं सकते । कोई इसे दूध में डालकर खाता है तो कोई रबड़ी डालकर । किसी को जलेबी दही के साथ खाना पसंद है लेकिन खाते सब है। कहीं जलेबी बहुत छोटे आकार की बनती है तो गोहाना में 250 ग्राम की एक। सागर में तो जलेबी में मावा भरा जाता है। स्वाद में मीठी और खमीर की वजह से हल्की सी खट्टी जलेबी की लोकप्रियता ऐसी है कि हमारे यहां सुंदर महिलाओं का नाम तक जलेबी बाई भी रखा जाता है।जलेबी की लोकप्रियता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि हमारे यहां जलेबी बाई फ़िल्मी गीत भी है ,बेव सीरीज भी है और कार्टून श्रंखला भी ।
जलेबी की धूम मैंने अपनी अनेक विदेश यात्राओं में भी देखी। भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ समस्त अरब देेेशों में भी यह जानी-पहचानी है। मैंने तो स्पेन में भी जलेबी खाई। अमेरिका में तो जलेबी आसानी से मिल जाती है। जलेबी की तारीफ़ कर इसके जरिये रोजगार की बात कर राहुल गांधी भले ही अपने विरोधियों द्वारा ट्रोल किये जा रहे हों लेकिन इससे जलेबी का तो भला ही हुआ।वैसे भी हमारे राम जी सभी का भला करते हैं ।
जलेबी के बाद आइये बात करते हैं चूरमा की । चूरमा राजस्थान का अघोषित राज्य मिष्ठान है और इसकी धूम देश-विदेश तक है । हाल ही में हमारे माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी भी चूरमा खाकर न सिर्फ गदगद हो गए बल्कि उन्हें अपनी दिवंगत माँ की याद भी आ गयी । भारत के स्‍टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा की मां ने ये चूरमा भेजा था । मोदी जी ने चूरमा न सिर्फ खुद खाया बल्कि जमैका के प्रधानमंत्री को भी खिलाया और भावुक होकर नीरज की माँ श्रीमती सरोज देवी को एक आभार पत्र भी लिख दिया । नीरज की माँ को मोदी जी ने खुद पत्र लिखा । ये चूरमे की ही ताकत तो थी । मोदी जी ने लिखा -, “आज इस चूरमे को खाने के बाद आपको पत्र लिखने से खुद को रोक नहीं सका। भाई नीरज अक्‍सर मुझसे इस चूरमे की चर्चा करते हैं, लेकिन आज इसे खाकर मैं भावुक हो गया। आपके अपार स्‍नेह और अपनेपन से भरे इस उपहार ने मुझे मेरी मां की याद दिला दी।”
अब आप समझ ही गए होंगे कि मिष्ठान चाहे कोई भी हो बहुत ताकतवर चीज है। मिष्ठान शुष्क से शुष्क आदमी को भी सरस बना सकता है। मिष्ठान कड़वाहट मिटाने का सबसे बढ़िया विकल्प है ,आप इसे कड़वाहट का ‘ ऐंटी डोज ‘ भी कह सकते हैं शायद इसीलिए हमारे यहां तीज-त्यौहारों पर मिठाइयों का आदान-प्रदान किया जाता है। मैं तो कहता हूँ कि मिष्ठान बिना जग सूना है। सियासत में बढ़ती कड़वाहट और अदावत को मिष्ठान के जरिये दूर किया जा सकता है,फिर मिष्ठान चाहे लड्डू हो,जलेबी हो,चूरमा हो या बंगाल का रसोगुल्ला। मैं तो कहता हूँ कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर स्वच्छता पखवाड़ा मानते हुए आम जनता को रसोगुल्ला वितरित करना चाहिए था। यदि ऐसा होता तो प्रधानमंत्री जी और उनकी पार्टी के तमाम लोग संदेशखाली और कोलकाता जैसे मुद्दे उठाना भूल जाते।
देश में पुरखों की विदाई के बाद देवी स्वरूपा दुर्गा का आगमन हो चुका है । हमें इन नौ दिनों में मिष्ठान के जरिये सौहार्द की वापसी की कोशिश करना चाहिए। मुहब्बत की दुकान खोलने से आपको ऐतराज हो सकता है किन्तु मिष्ठान की दुकान खोलने से नहीं। यदि यही मिष्ठान हमारे लिए रोजगार पैदा करने लगे तो भी क्या बुरा है। मिष्ठान भी किसी मंगौड़े से कम नहीं है। हम तो 8 अक्टूबर को हरियाणा और जम्मू -कश्मीर के सभी नए विधायकों से मिठाई खाएंगे।

(राकेश अचल -विभूति फीचर्स)

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