सभ्यता के विकास के साथ आधुनिकता की जो आंधी चली है उससे हमारी जीवन शैली में काफी बदलाव आ गया है। भारत भर में करोड़ों व्यक्ति किसी न किसी रूप में धू्म्रपान करते आ रहे हैं। धूम्रपान से फैलने वाले धुएं को अगर हमारे ऊपर मंडराती मौत की छाया कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। एक कड़वा सच तो यह है कि धूम्रपान के कारण ही मुंह के कैंसर से पीड़ित सर्वाधिक रोगी भारत में ही हैं। धूम्रपान एवं मद्यपान ऐसी बुरी लतें हैं जिनकी चपेट में आने के बाद युवाओं को इस बात का अहसास नहीं होता कि वे कदम-दर-कदम मौत के मुंह की ओर जा रहे हैं। सवाल यह पैदा होता है कि आखिर वे कौन-से कारण हैं जिनकी वजह से युवा इनका आदी हो जाता है। निश्चित तौर पर युवाओं में बढ़ती धूम्रपान-मद्यपान की लत आज केवल माता-पिता ही नहीं बल्कि समाज तक के लिए एक गंभीर खतरा बन गई है।
इस बुराई के परिणामों से ऐसा नहीं है कि युवा वर्ग पूरी तरह से बेखबर हो बल्कि उसे इस बात का पूरा अहसास है कि प्रतिवर्ष हजारों लोग टी.बी. जैसी संक्रामक बीमारी की चपेट में आकर दम तोड़ देते हैं। एक अनुमान के अनुसार सारे देश में प्रतिवर्ष लगभग दस लाख लोग तंबाकू सेवन के कारण होने वाले रोगों का शिकार होकर मौत का ग्रास बन जाते हैं। इस तरह प्रतिदिन तकरीबन 300 लोगों की मृत्यु तंबाकू सेवन के कारण होती है। एक सर्वे के अनुसार भारत भर में दस वर्ष की आयु के ऊपर के लगभग 35 करोड़ लोग चाहे वह पुरुष हों या महिलाएं तम्बाकू का किसी न किसी रूप में सेवन करते हैं। लेकिन आज के दौर में युवाओं में नशे की लत कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है। जिसके मूल में कोई ना कोई समस्या है, चाहे वह बेरोजगारी या असफल प्रेम प्रसंग की हो या परीक्षा में असफलता की हो मगर कुछ युवा फैशन के तौर पर भी नशे के आदी होते प्रतीत हो रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार फेफड़ों में होने वाले सभी प्रकार के कैंसर में लगभग नब्बे प्रतिशत कैंसर धूम्रपान की वजह से होते हैं। अनुमान है धूम्रपान करने वालों में हृदय रोग भी सामान्य की अपेक्षा दो गुना ज्यादा बढ़ सकता है।
एक सिगरेट पीने से हमारी आयु साढ़े चार मिनट कम हो जाती है। सिगरेट में लगभग एक हजार प्रकार के रसायन होते हैं। मगर फिर भी हमारी युवा पीढ़ी, हमारे करोड़ों नागरिक किसी न किसी तरीके से इस मौत के धुएं के आदी हैं चाहे वह बीड़ी, सिगरेट या तम्बाकू ही क्यों न हो। हम यह भी नहीं कह सकते, हमने अपने आपको बदलने का कोई प्रयास नहीं किया। पर हमारा देश भी पश्चिमी देशों के समान भौतिकवादी युग में पहुंच गया है। प्राचीनकाल से भारतीय आध्यात्मिक विकास की दौड़ में, चरित्र निर्माण की दौड़ में आगे रहे हैं पर आज येन-केन प्रकारेण किसी भी तरह सब कुछ प्राप्त करो की दौड़ ने हमें कहीं का नहीं रखा है। अब हमको धूम्रपान के बारे में भाषण की जरूरत नहीं बल्कि कुछ गहराई से सोचना होगा। कम करना होगा धुएं में उड़ती जिंदगी को वरना धुएं के आदी करोड़ों लोग अपने आस-पड़ोस को भी धुएं में तैरते जहर का आदी बना डालेंगे।
धूम्रपान का जिंदगी से बढ़ता खिलवाड़ कम करना होगा, चाहे आपसी समझाईश से हो या कठोर कानून के जरिए। वरना प्रतिवर्ष यों धूम्रपान निषेध दिवस मनाकर लम्बे-चौड़े भाषण के जरिए इसको मिटाने की कोई कोशिश कारगर नहीं होगी। परिवर्तन की आंधी आखिर चलनी चाहिए, वरना इस दिन को मनाने का कोई औचित्य न होगा। धुएं में तैरता जहर हमारी जिंदगी में यों ही विष घोलता रहेगा और हम चुपचाप जिंदगी से होती खिलवाड़ यों ही देखते रहेंगे।
(सुरेन्द्र शर्मा – विभूति फीचर्स)



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