उत्सव व मेले सांस्कृतिक परम्परा का प्रमुख अंग: डा० ए० पी० पाण्डे लोक संस्कृति के रंगारंग संगम में श्वेता महर व खनवाल के गीतों में झूमें दर्शक

ख़बर शेयर करें

लालकुआँ में आयोजित तीन दिवसीय उत्तरायणी एवं कौतिक मेला धूमधाम के साथ आयोजित हुआ। मेले के तीसरे दिन लोकसंस्कृति की ऐसी रौनक छायी कि लोक संस्कृति के रंगारंग कार्यक्रमों को देखकर दर्शक झूम उठे पर्वतीय लोक संस्कृति पर आयोजित कार्यक्रमों ने तो फिजा की रंगत में चार चाँद लगा दिये।मेले के आभामण्डल में झोड़े चाचरी के साथ साथ लोक देवताओं की झाकियों ने दर्शकों को उत्साह व उंमग से भरकर झूमनें को मजबूर कर दिया। अभिनेत्री श्वेता महरा व प्रसिद्ध लोक गायक राकेश खनवाल ने दर्शकों को मन्त्र मुग्ध कर दिया
तीसरे दिवस के मेले का उद्घाटन करने के पश्चात् सेंचुरी मिल के एच० आर० हेड डा० अरुण प्रकाश पाण्डे ने कहा उत्सव मेले लोक संस्कृति का प्रमुख अंग है।इनमें अपनी संस्कृति की झलक के दर्शन होते है।मेले ही एक ऐसा माध्यम है।जिनमें सामाजिकता व संस्कृति का एक साथ संगम देखनें को मिलता है।उन्होनें कौतिक मेले की सराहना करते हुए कहा इस तरह के आयोजनों से संस्कृति के दर्शन होनें के साथ ही पर्यटन एवं तीर्थाटनों को बढ़ावा मिलता है।तथा एक दूसरें के निकट आनें और आपसी सहयोग व सौहार्द की भावना बढ़ती है।तथा सांस्कृतिक आदान प्रदान होता है। उन्होनें कहा कि
मेले न केवल मनोरंजन के साधन हैं, अपितु ज्ञानवर्द्धन के साधन भी कहे जाते हैं। प्रत्येक मेले का इस देश की धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक परम्पराओं से जुड़ा होना इस बात का प्रमाण हैं कि ये मेले किस प्रकार जन मानस में एक अपूर्व उल्लास, उमंग तथा मनोरंजन से मानव में उत्साह भरते है।यहां की संस्कृति यहाँ के मेलों में समाहित है। मेलों में ही यहाँ का सांस्कृतिक स्वरुप निखरता है। धर्म, संस्कृति और कला के व्यापक सामंजस्य के कारण लालकुआँ के आंचल में मनाये जाने वाले इस उत्सव का स्वरुप बेहद तारीफे काबिल है। उन्होनें कहा मेलो के माध्यम से संस्कृति का दर्शन होता है। जिनमें यहाँ के लोक जीवन, लोक नृत्य, गीत एवं परम्पराओं की भागीदारी सुनिश्चित होती है।

Ad
Ad Ad Ad Ad
Ad