प्रयागराज की धरती इन दिनों पूरी तरह से आध्यात्मिक की विराट आभा से आलोकित है यहां पहुंच कर जहां सत्य साधक श्री विजेंद्र पांडे गुरु जी ने माँ पीतांबरी का अनुष्ठान किया वहीं प्रयागराज की धरती से भक्त जनों के नाम प्रेषित संदेश में कहा कि सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए सबसे पहले हमें अपने सनातन संस्कार विकसित करने होंगे क्योंकि संस्कार से ही चरित्र का निर्माण होता है और संस्कार ही मानव जीवन की अमूल्य नीधि है उन्होंने कहा कि सुन्दर चरित्र के निर्माण से सुंदर राष्ट्र का निर्माण होता है उन्होंने हर अभिभावक का आवाहन किया कि अपने बच्चों को संस्कृति का ज्ञान दें उन्हें सनातन संस्कृति की जानकारी दें साथ ही उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति अभेद चक्र हैऔर सनातन ही सब कुछ है
प्रयाग राज में 13 जनवरी यानि सोमवार से प्रयागराज में महाकुंभ मेला शुरू हो गया है देश व दुनियां के करोड़ों भक्तजन प्रयाग राज की धरती में पहुंचें हुए है
उत्तरायणी के पावन पर्व पर कुंभ के दौरान करोड़ों श्रद्धालुजनों ने त्रिवेणी संगम में स्नान किया
साथ ही उन्होंने यह भी कहा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पापों का हरण हो जाता है और सर्व सौभाग्य का उदय होता है
उन्होंने कहा तो यहां तक जाता है कि महाकुंभ के दौरान अगर प्रयागराज में व्यक्ति तीन दिन भी नियमपूर्वक स्नान कर लेता है तो उसे एक सहस्र अश्वमेघ यज्ञों के बराबर फल की प्राप्ति होती है
शाही स्नान के दिनों में संगम में डुबकी लगाने से जीवन धन्य माना जाता है
यहां यह भी बताते चले महाकुंभ में शाही स्नान का बड़ा ही आध्यात्मिक महत्व है
शाही स्नान के बारे में कहा जाता है यदि समर्पित भाव से माँ गंगा की शरणागति होकर यदि स्नान किया जाएं तो तन के साथ- साथ मन का मैल भी धुल जाता है
14 जनवरी 2025 को महाकुंभ का पहला शाही स्नान हुआ। शाही स्नान के दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद ही आम जनता स्नान कर अपने जीवन को धन्य करती है
यश वैभव कीर्ति व पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए प्रयागराज के स्नान का बड़ा ही निराला महत्व शास्त्रों में वर्णित है
उन्होंने कहा कि 12 वर्षों बाद आयोजित होनें वाले महाकुम्भ को लेकर सबसे रोचक गाथा समुद्र मंथन की है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत से भरा कुंभ अर्थात् कलश बाहर आया था तब देवताओं और राक्षस के बीच महा भयंकर युद्ध हुआ था। युद्ध के दौरान देवताओं का ईशारा पाकर इंद्र देव के पुत्र जयंत अमृत से भरा कलश लेकर बड़े ही तीव्र वेग से भागने लगे तो दैत्यों ने जयंत का पीछा करना शुरू कर दिया इस दौरान छीना झपटी में जिन-जिन स्थानों पर कलश से अमृत की बूंदें छलकी वे कुम्भ मेले का केन्द्र बने जिनमें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक है।
उन्होंने कहा महाकुंभ भारत भूमि का सबसे विराट धार्मिक एवं सांस्कृतिक आयोजन है, यह केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति, आध्यात्मिक एकता का प्रतीक भी है, जो देश-विदेश के लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है
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