श्रीधाम वृ सप्तऋषि अखाड़े के स्थापना दिवस पर जीवन्त हो उठी महान सनातन संस्कृति

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श्रीधाम वृंदावन में ऋषि पंचमी उत्सव एवं सप्तऋषि अखाड़े के स्थापना दिवस पर जीवन्त हो उठी महान सनातन संस्कृति

वृंदावन धाम ( मथुरा ) । पावन वृंदावन धाम में बीते गुरुवार 28 अगस्त को ऋषि पंचमी उत्सव एवं अंतर्राष्ट्रीय सप्तऋषि अखाड़ा परिषद का स्थापना दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया गया। बड़ी संख्या में सन्तों, महात्माओं, भक्तों और श्रद्धालुओं की उपस्थिति से वास्तव में श्रृद्धा-भक्ति- त्याग – समर्पण तथा सेवा की प्रतीक महान सनातन संस्कृति यहाँ जीवन्त हो उठी ।
इस अवसर पर पूजा – अनुष्ठान व अन्य धार्मिक परम्पराएं सम्पन्न होने के पश्चात अखाड़े द्वारा देश के अलग-अलग प्रांतो से पधारे 18 संतों एवं महात्माओं को सनातन धर्म की रक्षा एवं प्रचार-प्रसार हेतु विभिन्न पदों से अलंकृत किया गया।
महामण्डलेश्वर के पदों से अलंकृत किये गए सन्तों में
नेपाल राष्ट्र के लिए श्री लामा घ्याछो रिंपोछे,
लखनऊ से श्री दीपकेश्वरानंद जी महाराज, चरखी दादरी (हरियाणा) से श्री भगवानदास जी राधे राधे महाराज, टीकमगढ़ (म.प्र.) से संत स्वामी चौकी बाले बाबा, उत्तराखंड से तपस्वी संत श्री भगतजी महाराज, पंजाब से महंत डॉ. श्री प्रवीणदास जी महाराज, नागपुर (महाराष्ट्र) से श्री अवघड़ानंद जी महाराज, सीहोर (म.प्र.) से श्री कृष्णदास जी महाराज, हमीरपुर (उ.प्र.) से श्री राजेंद्र दास जी महाराज, नेपाल से आचार्य वनझाँक्री लामा रत्नमाया जी, जोधपुर (राजस्थान) से श्री ललितदास जी महाराज ,गोवर्धन (मथुरा) से श्री अवधेश शास्त्री अवध सरकार , नई दिल्ली से श्री जयकृष्ण दास जी महाराज प्रमुख हैं।
इसी क्रम में मण्डलेश्वर के पदों से अलंकित किये गए सन्तों में यूनाइटेड किंगडम (UK) से श्रीमती केतकी गोखले जी, गाज़ियाबाद से श्री अंकितदास जी त्यागी, कानपुर से श्री राघवेंद्र दास जी महाराज, नई दिल्ली से श्री राजेशदास जी (तंवर), उत्तराखंड से श्री बंशी जी महाराज, देवास मध्यप्रदेश से श्री कैलाशदास जी, प्रमुख हैं।
इस पावन अवसर पर उपस्थित ऋषिवर कैलाशानंद महाराज समेत सभी संतों ने धर्म, संस्कृति और मानवता के संरक्षण हेतु समाज में जागृति लाने का पावन संकल्प दोहराते हुए सनातन धर्मावलम्बियों से सत्य सनातन मूल्यों की रक्षा हेतु एकजुट होने का आह्वान किया।
इस अवसर पर समारोह में देश-विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु भन्तों एवं साधु-संतों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज कर सनातन की सेवा के सर्वोच्च त्याग करने का संकल्प लिया ।