माँ अवंतिका की भूमि पर नीम करोली बाबा के आध्यात्मिक स्पर्श की कहानी अब भी जीवित :लालकुआँ की स्मृतियों में आध्यात्म की एक रोचक गाथा

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लालकुआँ / हलचल, यातायात और विकसित बाज़ारों से घिरा लालकुआँ आज भले ही आधुनिक स्वरूप में दिखता हो, लेकिन इसके इतिहास में ऐसे आध्यात्मिक अध्याय दर्ज हैं, जिन्हें सुनते ही श्रद्धा और आस्था का भाव उमड़ आता है। इन्हीं पवित्र स्मृतियों में प्रमुख है माँ अवंतिका की शक्ति भूमि से जुड़ा नीम करोली बाबा महाराज का अलौकिक संबंध।

जहाँ आज सड़क किनारे भागती गाड़ियाँ दिखाई देती हैं, वहीं कभी यह क्षेत्र घने वृक्षों, शांति और जंगली प्रकृति से भरपूर साधना भूमि था। इसी क्षेत्र में बाबा महाराज का आगमन अक्सर होता था, विशेषकर जब वे कैंची धाम की ओर जाते या लौटते।

 नीम करोली बाबा का लालकुआँ से अद्भुत संबंध

बुज़ुर्ग बताते हैं कि सेमल कम्पनी क्षेत्र के पास स्थित पुराने पेट्रोल पंप पर बाबा रुकते थे। पेट्रोल भरवाने के बाद वे अक्सर वहीं घंटों तक मौन साधना में लीन रहते। उनकी उपस्थिति में बोलने की आवश्यकता नहीं होती थी  मौन ही संवाद था, और मौन ही संदेश।

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स्थानीय लोगों के मुताबिक, बाबा हर बार लालकुआँ गुजरने पर यहाँ की पवित्र भूमि को प्रणाम करते थे, मानो माँ अवंतिका की शक्ति को स्वीकार कर आशीष ले रहे हों।

 स्व. मदन नारायण पंत से आत्मीय रिश्ता

लालकुआँ के प्रथम ग्राम प्रधान और शिवभक्त स्व. मदन नारायण पंत से बाबा का संबंध महज़ जान-पहचान नहीं बल्कि आध्यात्मिक निकटता का था। पंत परिवार के सदस्य बताते हैं कि बाबा जब भी इस क्षेत्र से गुजरते, वे उनसे अवश्य मिलते।

स्व. पंत के पुत्र सुमित्रानंदन पंत की स्मृति आज भी ताज़ा है:

 “बाबा जी पिताजी से बिना मिले कभी आगे नहीं जाते थे। एक बार बाबा जी के साथ उन्हें भी कैंची धाम तक जाने का अवसर मिला, वह अनुभव शब्दों में नहीं बताया जा सकता।”

 बचपन के नज़रों में अब भी जीवित बाबा

पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष कैलाश चंद्र पंत बताते हैं:

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 “मैं तब छोटा था। बाबा मोटा कंबल ओढ़े पेड़ों के नीचे घंटों शांत बैठे रहते। उनमें कोई दिखावा नहीं था  केवल दिव्यता और गहन शांति।”

 माँ अवंतिका शक्ति पीठ जहाँ बाबा ने साधना की

पूर्व नगर पंचायत अध्यक्ष कैलाश पंत के अनुसार लालकुआँ क्षेत्र माँ अवंतिका की प्राचीन शक्ति भूमि है। मंदिर निर्माण के प्रारंभिक समय में बाबाजी स्वयं यहाँ पहुंचे थे। उन्होंने न कुछ कहा, न निर्देश दिया  बस मौन रहकर कुछ समय बैठे।

श्रद्धालुओं का विश्वास है कि —
 वह मौन ही आशीर्वाद था
 और वह मौन ही इस भूमि की आध्यात्मिक स्वीकृति।

 समय बदला, पर आशीष आज भी जीवित

जहाँ कभी हवा में पेड़ों की सरसराहट होती थी, वहाँ अब बाज़ार और जीवन की चहल-पहल है। परंतु लालकुआँ की मिट्टी में अब भी बसती है —
✨ माँ अवंतिका की ऊर्जा
✨ बाबा का आशीर्वाद
✨ और वह दिव्य आध्यात्मिक अनुभूति, जिसे शब्द नहीं  केवल भावना समझ सकती है।

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वह दौर जब लालकुआँ साधना भूमि था

सेमल कम्पनी के आसपास का क्षेत्र कभी घने वृक्षों, जंगली बेलों और प्राकृतिक नीरवता से भरपूर था। वहीं पास एक छोटा-सा पेट्रोल पंप हुआ करता था।
नीम करोली बाबा जब भी कैंची धाम जाते या लौटते, तो यह स्थान उनके लिए एक नियत पड़ाव बन जाता था।

वे वाहन में पेट्रोल भरवाते, पर आगे बढ़ने से पहले घंटों यहाँ बैठते एकांत में, मौन में, जैसे प्रकृति के साथ एक अदृश्य संवाद हो रहा हो।

कुल मिलाकर लालकुआँ की यह कथा इतिहास नहीं  आस्था की सजीव स्मृति है। यह वह पल है जहाँ शक्ति, भक्ति और साधना का संगम हुआ और उसी संगम ने लालकुआँ को आध्यात्मिक पहचान दी। आज भी यहाँ की हवाओं में अक्सर महसूस होता है—
माँ अवंतिका की दिव्यता
और
नीम करोली बाबा की शांत मुस्कुराहट का अदृश्य स्पर्श।

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