✍ रिपोर्ट: राजेन्द्र पंत ‘रमाकान्त’ | ओखलकांडा (नैनीताल)
उत्तराखंड सदियों से देवभूमि, साधना स्थल और आध्यात्मिक शोध की भूमि रही है। इसी पवित्र हिमालयी क्षेत्र में बसा है ऐसा दुर्लभ और रहस्यमयी मंदिर, जहाँ देवताओं के गुरु—देवगुरु बृहस्पति महाराज स्वयं पिण्डी स्वरूप में विराजमान माने जाते हैं। यह मंदिर केवल नैनीताल जनपद का नहीं, बल्कि समूचे विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर माना जाता है जहाँ बृहस्पति देव की पूजा पिण्डी रूप में की जाती है।
📍 स्थान और पहुँच
यह पवित्र स्थल ओखलकांडा विकासखंड की लगभग 8000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। निकटतम गांवों में कोटली, करायल, देवली और पुटपुरी शामिल हैं। यहाँ पहुंचने हेतु धानाचूली–ओखलकांडा–करायल मार्ग से पैदल यात्रा करनी पड़ती है। कठिन मार्ग, घनघोर वन और प्रकृति की शांति यहाँ की विशेषता है।
🌿 ऐतिहासिक और पौराणिक मान्यता
जनश्रुति के अनुसार सत्ययुग में जब देवराज इंद्र ब्रह्महत्या के पाप से ग्रस्त हुए, तब वे इस पर्वतीय क्षेत्र की गुफाओं में तपस्या करने आए। देवताओं के आग्रह पर देवगुरु बृहस्पति स्वयं इंद्र को खोजते हुए यहां पहुंचे और इस तप्त स्थल से प्रभावित होकर यहाँ ध्यानमग्न हो गए। उसी समय से यह स्थान देवगुरु धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
🚫 महिलाओं के प्रवेश पर प्राचीन विश्वास
मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार पूर्वकाल में पूजा का उत्तरदायित्व एक पुजारिन के पास था। एक बार जल्दबाजी में गरम खीर चढ़ाने पर देवगुरु रुष्ट हो गए और तब से महिलाओं के दर्शन एवं पूजन पर प्रतिबंध की परंपरा अब तक कायम है।
🌌 चमत्कारों से जुड़ी मान्यता
स्थानीय ग्रामीणों का विश्वास है कि यहाँ देवगुरु बृहस्पति की साधना व्यर्थ नहीं जाती। श्रद्धालुओं के अनुसार रात्रि में यहां ध्यान लगाने पर पर्वतों से रहस्यमयी संगीत सुनाई देता है। अनेक वर्षों से साधुओं, तपस्वियों और संतों ने यहाँ साधना कर सिद्धियाँ प्राप्त की हैं।
🛕 मंदिर निर्माण क्यों नहीं होता?
कई बार मंदिर के निर्माण के प्रयास किए गए, किन्तु हर बार कार्य बाधित हो गया। पुरानी घटनाओं के अनुसार पत्थरों की खुदाई के दौरान सर्प समूह निकलना, पत्थरों का अत्यंत भारी हो जाना—इसे देवगुरु की इच्छा माना गया। इसलिए यह मंदिर खुले आकाश तले, प्राकृतिक स्वरूप में ही स्थित है।
🌍 भारत में अन्य प्रमुख बृहस्पति मंदिर
हालाँकि भारत में बृहस्पति देव के कुछ और मंदिर हैं, किन्तु पिण्डी रूप में पूजा केवल इसी धाम में होती है। प्रमुख मंदिर इस प्रकार हैं—
स्थान विशेषता
उज्जैन (मध्यप्रदेश) ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के निकट स्थित प्राचीन गुरु मंदिर
काशी (वाराणसी) शिव नगरी में स्थित पौराणिक बृहस्पति तीर्थ
केरल ज्योतिष एवं गुरु ग्रह शांति का प्रसिद्ध स्थान
महाराष्ट्र नवग्रह श्रेणी में पूजनीय गुरु स्थान
🌟 विशेष
आस्था, रहस्य, आध्यात्मिक ऊर्जा और हिमालय की दिव्यता से परिपूर्ण यह धाम उत्तराखंड की धार्मिक, सांस्कृतिक और पुरातात्विक धरोहर है। तीर्थाटन की दृष्टि से यह स्थान जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही उपेक्षित भी। उचित संरक्षण, शोध और पर्यटन विकास से यह धाम विश्व आध्यात्मिक मानचित्र पर महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सकता है।
🕉 यह स्थान केवल मंदिर नहीं — एक जीवित अध्यात्म है।
॥ अथ श्री गुरुदेव बृहस्पति १०८ नामावली ॥
ॐ बृहस्पतये नमः – जो सबको संप्रेरित करते हैं।
ॐ देवानामाचार्याय नमः – देवताओं के गुरु।
ॐ ऋग्वेदविदे नमः – ऋग्वेद के ज्ञाता।
ॐ वेदविदुषे नमः – सम्पूर्ण वेदों के ज्ञानी।
ॐ ज्योतिषाचार्याय नमः – ज्योतिष विद्या के आचार्य।
ॐ दिव्यतेजसे नमः – दिव्य तेज वाले।
ॐ सुबुद्धिदाय नमः – शुभ बुद्धि देने वाले।
ॐ धर्मरक्षाय नमः – धर्म की रक्षा करने वाले।
ॐ लोकगुरवे नमः – संपूर्ण लोक के गुरु।
ॐ ज्ञानप्रदाय नमः – ज्ञान देने वाले।
ॐ वागीशाय नमः – वाणी के स्वामी।
ॐ सत्यवाचिने नमः – सत्य बोलने वाले।
ॐ सत्यप्रतिष्ठिताय नमः – सत्य में स्थित।
ॐ शुभलक्षणाय नमः – शुभ गुणों से पूर्ण।
ॐ सौम्य देहाय नमः – शांत एवं सुकोमल स्वरूप वाले।
ॐ पीताम्बरधराय नमः – पीत वस्त्र धारण करने वाले।
ॐ पुष्याधिपतये नमः – पुष्य नक्षत्र के स्वामी।
ॐ सुरपूजिताय नमः – देवताओं द्वारा पूजित।
ॐ वरदाय नमः – वरदान देने वाले।
ॐ मङ्गलप्रदाय नमः – मंगल प्रदान करने वाले।
ॐ शान्तात्मने नमः – अत्यंत शांत आत्मस्वरूप वाले।
ॐ यज्ञेशाय नमः – यज्ञों के स्वामी।
ॐ हव्यवाहनाय नमः – हवं में स्थित शक्तिरूप।
ॐ सुव्रतानां पतये नमः – श्रेष्ठ व्रतधारियों के अधिपति।
ॐ तपस्विनेमहामते नमः – महान तपस्वी एवं बुद्धिमान।
ॐ सुरदेवाय नमः – देवों के देव।
ॐ सर्वज्ञाय नमः – सर्वज्ञ, सब जानने वाले।
ॐ ब्रह्मनिष्ठाय नमः – ब्रह्म में स्थित।
ॐ सदाशिवप्रियाय नमः – भगवान शिव के प्रिय।
ॐ करुणानिधये नमः – करुणा का सागर।
ॐ शुभफलप्रदाय नमः – शुभ फल देने वाले।
ॐ शास्त्रज्ञाय नमः – शास्त्रों के ज्ञानी।
ॐ महोदराय नमः – विशाल हृदय वाले।
ॐ सिद्धिदाय नमः – सिद्धि देने वाले।
ॐ ऋषिपूजिताय नमः – ऋषियों द्वारा पूजित।
ॐ आदित्यवर्णाय नमः – सूर्य के समान तेजस्वी।
ॐ हिरण्यगर्भाय नमः – स्वर्ण-दीप्त आभा वाले।
ॐ वसुंधराप्रियाय नमः – पृथ्वी को प्रिय।
ॐ ब्रह्मचर्यपरायणाय नमः – ब्रह्मचर्य में स्थिर।
ॐ दीर्घायुषे नमः – दीर्घायु देने वाले।
ॐ आयुर्धाय नमः – आयु प्रदान करने वाले।
ॐ बालवृद्धप्रियाय नमः – बालक एवं वृद्धों के प्रिय।
ॐ वित्तेशाय नमः – धन के स्वामी।
ॐ सौभाग्यदाय नमः – सौभाग्य देने वाले।
ॐ सुखदाय नमः – सुख देने वाले।
ॐ शुभदर्शने नमः – जिनका दर्शन शुभ है।
ॐ ब्रह्मेश्वरनमस्कृताय नमः – ब्रह्मा व शिव जिनको नमन करें।
ॐ भक्तवत्सलाय नमः – भक्तों को प्रेम करने वाले।
ॐ सर्वरोगहराय नमः – रोगों का नाश करने वाले।
ॐ दुष्टनाशकाय नमः – दुष्टों का नाश करने वाले।
ॐ कल्याणप्रदाय नमः – कल्याण देने वाले।
ॐ महाभागाय नमः – असीम सौभाग्य वाले।
ॐ चतुर्वेदज्ञाय नमः – चारों वेदों के ज्ञान के स्वामी।
ॐ कुशलायकृतये नमः – सद्कर्मों में निपुण करने वाले।
ॐ शरणागतवत्सलाय नमः – शरण में आए भक्तों से प्रेम करने वाले।
ॐ सर्वार्थदाय नमः – सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाले।
ॐ ऋद्धिसिद्धिप्रदाय नमः – ऋद्धि-सिद्धि देने वाले।
ॐ सत्यधर्मपरायणाय नमः – सत्य और धर्म में स्थिर।
ॐ पुण्यरूपाय नमः – पुण्यस्वरूप।
ॐ पापहर्त्रे नमः – पापों का नाश करने वाले।
ॐ दयामयाय नमः – दया से पूर्ण।
ॐ भक्तकल्पद्रुमाय नमः – भक्तों की इच्छाएँ पूरी करने वाले कल्पवृक्ष समान।
ॐ कामधेनुस्वरूपिणे नमः – इच्छा पूर्ण करने वाले।
ॐ सौम्यचेतसे नमः – मधुर चित्त वाले।
ॐ मंगलमूर्तये नमः – मंगलमय रूप में स्थित।
ॐ वरप्रदाय नमः – वरदान देने वाले।
ॐ शरण्याय नमः – शरण लेने योग्य महागुरु।
ॐ दिव्यातिगुरवे नमः – अद्वितीय दिव्य गुरु।
ॐ तेजोराशये नमः – तेज से भरे हुए।
ॐ सुरेशाय नमः – देवेश्वर के सहचरी।
ॐ इन्द्रपूजिताय नमः – इन्द्र द्वारा पूजित।
ॐ देवाधिदेवाय नमः – देवों में भी देव।
ॐ त्रिकालज्ञाय नमः – भूत, भविष्य, वर्तमान जानने वाले।
ॐ मन्त्रेश्वराय नमः – मंत्रों के स्वामी।
ॐ वाचस्पतये नमः – वाणी के प्रमाण स्वरूप।
ॐ ज्ञानगम्याय नमः – ज्ञान के द्वारा प्राप्त होने वाले।
ॐ यशस्विने नमः – यश देने वाले।
ॐ अचलाय नमः – स्थिर और अडिग स्वरूप।
ॐ विश्वम्भराय नमः – विश्व का पालन करने वाले।
ॐ पीतलोहितवर्णाय नमः – पीत-लाल आभा वाले।
ॐ महाबलाय नमः – अपार बल वाले।
ॐ ब्रह्माधीशाय नमः – ब्रह्मविद्या के अधिपति।
ॐ चैतन्यरूपिणे नमः – चेतना स्वरूप।
ॐ सर्वदर्शनकृतये नमः – सभी दर्शन के ज्ञाता।
ॐ सर्वत्रव्यापकाय नमः – सब जगह व्याप्त।
ॐ सौख्यदाय नमः – सुख देने वाले।
ॐ धनदाय नमः – धन के दाता।
ॐ सौभाग्यवर्धनाय नमः – जीवन में सौभाग्य बढ़ाने वाले।
ॐ संतानप्रदाय नमः – संतान सुख देने वाले।
ॐ वंशवर्धनाय नमः – वंश वृद्धि करने वाले।
ॐ कार्यसिद्धिकराय नमः – कार्य सिद्ध करने वाले।
ॐ शोकनाशकाय नमः – दुःख दूर करने वाले।
ॐ हर्षवर्धनाय नमः – हर्ष और आनंद बढ़ाने वाले।
ॐ दीर्घदृष्टये नमः – दीर्घदर्शी।
ॐ परमतत्त्वाय नमः – सर्वोच्च तत्व।
ॐ परोपकाररताय नमः – परहित में समर्पित।
ॐ विद्याधिपतये नमः – विद्या के अधिपति।
ॐ शुभकर्मफलप्रदाय नमः – शुभ कर्मों का फल देने वाले।
ॐ सर्वसम्पत्तिप्रदाय नमः – सम्पत्तियों के दाता।
ॐ मङ्गलस्वरूपिणे नमः – मंगल स्वरूप।
ॐ धर्मपालाय नमः – धर्म की रक्षा करने वाले।
ॐ अनघाय नमः – निष्पाप।
ॐ आनंदमूर्तये नमः – आनंदस्वरूप।
ॐ सद्गुरवे नमः – सच्चे गुरु।
ॐ योगेश्वराय नमः – योग के स्वामी।
ॐ शिवप्रियाय नमः – शिव के अतिप्रिय।
ॐ परमेश्वराय नमः – परमेश्वरस्वरूप।
ॐ श्रीबृहस्पतये नमः – पूर्ण रूप से वंदनीय गुरु बृहस्पति।
📿 फलश्रुति (शुभ फल)
➡️ जो भक्त इस १०८ नामावली का जप प्रतिदिन या गुरुवार को करता है, उसे मिलता है—
✔️ ज्ञान-विवेक
✔️ संतान सुख
✔️ धन और सौभाग्य
✔️ विवाह में सफलता
✔️ गुरु कृपा और दीर्घायु
❗ विशेष लाभ
📿 इन नामों का गुरुवार, पुष्य नक्षत्र, या गुरु महादशा में जप अत्यंत फलदायी माना जाता है।
📿 इससे विद्या, बुद्धि, धन, संतान सुख, विवाह, और भाग्य में वृद्धि होती है।
देवगुरु बृहस्पति और हिमालय का संबंध — शोधपरक वर्णन
हिमालय केवल पर्वत नहीं, बल्कि तप, ज्ञान, योग और ऋषि–परंपरा का केंद्र माना जाता है। भारतवर्ष की ऋषि-परंपरा में देवताओं के गुरु बृहस्पति का हिमालय से सीधा संबंध मिलता है चाहे वह वेदांग ज्योतिष, ऋषि परंपरा, देव संस्कृति, या ध्यान साधना हो।
बृहस्पति हिमालयी ऋषि परंपरा के प्रमुख आचार्य
पुराणों के अनुसार देवताओं के गुरु—बृहस्पति, अंगिरा ऋषि के पुत्र माने जाते हैं और अंगिरा ऋषि का तपोभूमि क्षेत्र हिमालय को माना गया है। इसलिए बृहस्पति देव का संबंध सीधा अथर्ववेद, सप्तऋषि परंपरा और हिमालय के योगिक विज्ञान से है।
हिमालय – बृहस्पति की तपस्थली
शिवपुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और केदारखंड में उल्लेख है कि—
जब देवराज इंद्र ब्रह्महत्या के पाप से ग्रस्त हुए और हिमालय में तप करने आए, तब देवगुरु बृहस्पति उन्हें खोजते हुए हिमालय पहुंचे और वहीं लंबे समय तक ध्यानस्थ रहे।
कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने—
✔ ऋग्वेद की व्याख्या
✔ ब्रह्मविद्या का अभ्यास
✔ सूर्य–चंद्र मार्ग की गणना
✔ नवग्रह साधना
हिमालय की गुफाओं में की थी। इसी से हिमालय ज्योतिष और वेदविद्या का जन्मस्थान माना जाता है।
उत्तराखंड में बृहस्पति देव के तपस्थलों का उल्लेख
उत्तराखंड के कुमाऊँ और गढ़वाल क्षेत्र में बृहस्पति देव के तीन प्रमुख स्थल माने जाते हैं:
स्थान विशेषता
ओखलकांडा, नैनीताल पिण्डी रूप में विश्व का दुर्लभ देवगुरु मंदिर
कश्यप पर्वत (काशीपुर क्षेत्र) प्राचीन ज्योतिष शोधस्थल
बद्रीनाथ क्षेत्र (व्यास गुफा के समीप) गुरु परंपरा का अध्यात्मिक केंद्र यह उल्लेख मिलता है कि हिमालय में बृहस्पति ने इन्द्र, अश्विनी कुमार और कई देवताओं को शिक्षा दी।
ज्योतिष और हिमालय का संबंध
कई शोध बताते हैं कि—
नवग्रह पूजा, मुहूर्त विज्ञान, नक्षत्र विद्या और विवाह संस्कारों में उपयोग होने वाले शुभ समय बृहस्पति द्वारा दिए गए थे और इनकी नींव हिमालय की नक्षत्र–साधना परंपरा में रखी गई थी।
हिमालय के मठों और आश्रमों में आज भी:
गुरु स्वरूप बृहस्पति को बुद्धि, ज्ञान, दिव्यता, वंश वृद्धि और धर्म का प्रतीक माना जाता है।
बृहस्पति — हिमालय की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक
हिमालय योग का केंद्र है और बृहस्पति:
➡ धर्म
➡ वेद ज्ञान
➡ दया
➡ धैर्य
➡ विनम्रता
➡ अहिंसा
का प्रतिनिधित्व करते हैं।
इन्हीं गुणों के कारण हिमालय को देवगुरु की ऊर्जा से युक्त पर्वत भी कहा जाता है।
देवगुरु बृहस्पति का संबंध हिमालय से केवल धार्मिक नहीं, बल्कि—
🔹 वेदज्ञान
🔹 ज्योतिष विज्ञान
🔹 ऋषि–परंपरा
🔹 तप–संस्कार
🔹 नवग्रह साधना
🔹 गुरु–तत्व
के माध्यम से गहराई से जुड़ा हुआ है।इसलिए हिमालय आज भी बृहस्पति तत्व का जीवित केंद्र माना जाता है।
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