भीड़,भगदड़ और मौतें, आखिर जिम्मेदार कौन?

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आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर की ऐतिहासिक जीत के जश्न में अचानक यमराज की एन्ट्री से रंग में भंग हो गया है। रॉयल चैलेंजर की जीत के जश्न के दौरान बेंगलुरु में भगदड़ से 11 लोगों की जान चली गई। इस पूरे मामले में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड और कर्नाटक सरकार ने पल्ला झाड़ लिया था लेकिन अब इस मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक्शन लिया है।

इस दर्दनाक घटना पर स्वत: संज्ञान लेते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट ने आरसीबी पर गैर इरादतन हत्या का केस दर्ज किया है। यह मामला कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी.एम. जोशी की पीठ के समक्ष उठाया गया है। हाई कोर्ट ने जहां इस मामले में सरकार ने रिपोर्ट मांगी है तो वहीं उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान सरकार का झूठ भी पकड़ा गया। कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने दावा किया था कि कार्यक्रम की सुरक्षा के लिए 5000 पुलिसकर्मी तैनात थे।

कर्नाटक सरकार ने कोर्ट में बताया कि आरसीबी के आईपीएल समारोह के दौरान 1,000 से अधिक पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। सरकार ने कोर्ट में बताया कि आरसीबी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।
बाद में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आरसीबी,इवेंट मैनेजमेंट कंपनी डीएनए नेटवर्क्स और कर्नाटक स्टेट क्रिकेट एसोसिएशन के जिम्मेदार प्रतिनिधियों की गिरफ्तारी के आदेश देते हुए बेंगलुरु पुलिस कमिश्नर, अतिरिक्त आयुक्त, डीसीपी सेंट्रल, एसीपी और जहां यह घटना हुई उस थाने क्यूबन पार्क के इंस्पेक्टर को सस्पेंड कर दिया है।
जीत के जश्न का भयावह हादसे में बदलना काफी कष्टदायक और रूह कंपाने वाली काफी दुःखद घटना है। चिन्नास्वामी स्टेडियम में मची भगदड़ में 11 से ज्यादा लोगों की जान चली गयी है और कई लोग घायल हुए हैं। क्रिकेट के प्रशंसक अपनी टीम की खुशी में शामिल होने के लिए पहुंचे थे, मगर इसमें से कुछ के परिवारों को ऐसी कष्ट और पीड़ा मिली है, जिसको वे जीवन भर नहीं भूल सकते हैं। दरअसल आईपीएल में पहली बार चैंपियन बनी आरसीबी की टीम की जीत की खुशी में जश्न का आयोजन किया गया। जैसे ही आरसीबी की जीत का जश्न मनाने के लिए विक्ट्री परेड की घोषणा हुई, उसके बाद लाखों की संख्या में प्रशंसक चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर एकत्रित हो गए। जानकारी के अनुसार भगदड़ तब मची, जब हजारों प्रशंसक विभिन्न द्वारों से जल्दबाजी में स्टेडियम में प्रवेश करने का प्रयास कर रहे थे। बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी के बावजूद भारी भीड़ अनियंत्रित थी। खबर यह भी है कि भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस के द्वारा लाठी चार्ज किया गया, जिससे भगदड़ मची। खबरों के अनुसार भीड़ काफी ज्यादा थी। अनुमान है कि करीब 3 लाख लोग इस जश्न में शामिल होने पहुंचे थे, जबकि स्टेडियम की कुल क्षमता सिर्फ 40,000 लोगों की है। देखा जाए तो ऐसे कार्यक्रम में भीड़ का उमड़ना स्वाभाविक ही है, क्योंकि अपने देश में क्रिकेट के प्रति दीवानगी किसी से नहीं छिपी नहीं है। हर उम्र के लोगों में क्रिकेट और क्रिकेटरों के लिए जैसी दीवानगी देखी जाती है, वैसी किसी और खेल और खिलाड़ियों के लिए मुश्किल है। अगर बात विराट कोहली की हो तो उनके चाहने वाले किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार हो जाते हैं। आईपीएल में मिली इस जीत से कोहली के प्रशंसकों की खुशी चरम पर है, ऐसे में भीड़ का उमड़ना स्वाभाविक ही था। ऐसे में भगदड़ के इस पूरे मामले पर भीड़ नियंत्रण, आयोजन की तैयारियों और सुरक्षा इंतजामों को लेकर गंभीर सवाल उठने लाजमी है। कर्नाटक सरकार को पता होना चाहिए था कि ऐसे आयोजनों में क्रिकेट प्रेमियों की भारी भीड़ उमड़ेगी, ऐसे में भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुख्ता इंतजाम करने की जरूरत थी। देखा जाए तो अपने देश में भगदड़ एक त्रासदी बन चुकी है, चाहे वो धार्मिक आयोजन हो या फिर कोई अन्य कार्यक्रम, भगदड़ में लोगों की मौतों की खबरें आती ही रहती हैं। भगदड़ की ये घटनाएं बदइंतजामी का ही नतीजा है। भगदड़ की इन घटनाओं से शासन प्रशासन को सबक लेने की जरूरत होती है। किसी भी हादसे का सबसे बड़ा सबक यह होना चाहिए कि ऐसे उपाय किए जाएं, ताकि दोबारा उसी तरह के हालात पैदा न हों। मगर धार्मिक स्थलों पर या ऐसे आयोजनों में जमा होने वाली भीड़ और उसके प्रबंधन को लेकर अक्सर इस हद तक लापरवाही बरती जाती है कि बार-बार भगदड़ की वजह से लोगों की जान जाने की घटनाएं सामने आ रही हैं। चिन्नास्वामी स्टेडियम में हादसा भी बदइंतजामी का नतीजा है। यह आमतौर पर देखा गया है कि किसी खास आयोजन की तैयारी तो कर ली जाती है, लेकिन भीड़ नियंत्रण और प्रबंधन के उपाय पहले से नहीं किए जाते। भारत सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होना चाहिए कि यहां के लोग भीड़ वाले स्थानों में बदइंतजामी के कारण रह-रहकर मरते रहें। जब भी कहीं भीड़ भरे स्थलों में कोई हादसा होता है और उसमें लोग मारे जाते हैं तो घटना की जांच करने-कराने वालों से यही सुनने को मिलता है कि इस पर भी ध्यान दिया जाएगा कि भविष्य में इस तरह के हादसों को कैसे रोका जाए? ऐसा केवल सुनने को ही मिलता है, क्योंकि बार-बार वैसे ही हादसे होते रहते हैं, जैसे पहले हो चुके होते हैं। एक ऐसे समय जब देश को विकसित राष्ट्र बनाने की बातों के साथ इसके लिए प्रयत्न भी हो रहे हैं, तब फिर सार्वजनिक स्थलों में भीड़ नियंत्रण के उपाय प्राथमिकता के आधार पर किए जाने चाहिए। और सच तो यह है कि भीड़ नियंत्रण के नियम-कानून भी बने हुए हैं, लेकिन उनका पालन मुश्किल से होता है। अपने यहां नियम-कानूनों के उल्लंघन की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है, लेकिन इसका कारण केवल यह नहीं कि लोगों को उनकी परवाह नहीं होती, बल्कि यह भी है कि शासन-प्रशासन के स्तर पर उनके अनुपालन पर जोर नहीं दिया जाता। प्रायः यह अनुपालन मनचाहे तरीके से होता है। अधिकतर देखा जाता है कि जब भी कोई भगदड़ मचती है और लोगों की जान जाती है, तो जांच कमेटी का गठन कर दिया जाता है और मुआवजे की घोषणा कर दी जाती है। कर्नाटक के सीएम सिद्धारमैया ने मृतकों के परिजनों को 10 लाख रुपए की सहायता राशि देने की घोषणा की है। साथ ही कहा कि घायलों का मुफ्त इलाज कराया जाएगा। मगर समझना होगा कि मुआवजे से किसी परिवार के दुःखों का अंत नहीं होता है। जिस किसी परिवार का कोई अपना मारा जाता है, तो उनको ताउम्र ऐसा दर्द मिलता है, जिसको लेकर उसको जीना पड़ता है। मानव प्राण अमूल्य होते हैं और इसकी रक्षा प्राथमिकता होनी चाहिए। मगर ऐसी घटनाओं को रोकने को लेकर न तो कभी गंभीरता से विचार होता है, न कभी कोई ऐसी कार्रवाई होती है, जो आगे के आयोजनों के लिए सबक सिद्ध हो। ज्यादातर जांच रपटों में इसकी वजह भीड़ बताई जाती है, जबकि कुप्रबंधन का तथ्य आमतौर पर छिपा लिया जाता है। शायद ही कभी ऐसी भगदड़ और उसमें लोगों की मौत के लिए आयोजकों की जवाबदेही तय की जाती है और प्रशासनिक लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जाता है। नतीजतन, ऐसे हादसे लगातार सामने आ रहे हैं। हालांकि इन सबके बीच लोगों को भी समझने की जरूरत है कि जहां ज्यादा भीड़ उमड़ने की संभावना है, वहां पर बुजुर्ग, बच्चों और महिलाओं को लेकर नहीं जाए। कहीं पर भी भगदड़ मचती है,तो सबसे ज्यादा इसका शिकार यही लोग बनते हैं। यह कहने में कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भगदड़ भारत की नियति बन चुकी है और ऐसे में जब तक हमारी सरकारें भीड़ नियंत्रण को लेकर कारगर उपाय नहीं ढूंढ लेती है।
जरूरत है कि लोग खुद ही ज्यादा सतर्क रहें। इन सबके बीच जरूरत है कि बेंगलुरु की घटना से सबक लिए जाएं और भविष्य में ऐसे इंतजाम किए जाएं कि फिर कोई बेगुनाह भगदड़ का शिकार न बने।

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(मनोज कुमार अग्रवाल-विनायक फीचर्स)

 

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