चिटगल की चोटी में गुमनाम उधाणेश्वर महादेव

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चिटगल/गंगोलीहाट(पिथौरागढ़) गंगावली का गौरव कहे जाने वाला चिटगल धाम के पावन तीर्थ स्थल गुमनामी के साये में गुम है।इन बदहाल तीर्थस्थलों का कोई सुधलेवा नहीं है।चिटगल गाँव की परिधी में अनेक ऐसे पावन पौराणिक तीर्थ स्थल मौजूद है,जिनका आध्यात्मिक महत्व सदियों पुराना है, देवताओं के मामा श्री श्री1008 सागरीय सैम देवता का प्राचीन मंदिर इसी गॉव में है। इस मंदिर के भीतर स्वयंभू पिण्ड़ी के रूप में यहां उनकी पूजा होती है। गुसाणी देवी की यह मूल जन्म भूमि है।इसी भूमि पर जन्म लेकर गुसाणी माता ने अपनी लीला संसार में बिखेरी इन सबके अलावा अनेक लोक देवताओं की विरासत को समेटे चिटगल की पावन भूमि पर उधाणेश्वर महादेव जी भी विराजमान है।वियावान वनों के मध्य नीले गगन के तले बाँज के बृक्ष की छाव में खुले आकाश के नीचे पर्वत की चोटी पर स्थित उधाणेश्वर की महिमां को स्थानीय शिव भक्त अपरम्पार बतातें है।

चिटगल की चोटी में स्थित भगवान भोलेनाथ की इस पिण्ड़ी के दर्शन का महत्व भक्तजन सर्वसौभाग्य का उदयीकरण मानतें है यहीं से जीबल व पाताल भुवनेश्वर के वनों की शरहद शुरु होती है। दुर्गम वनों की श्रृखलां व कटिली झाडियों को चीरते हुए चोटी पर पहुंचकर इस पिण्ड़ी के दर्शन होते है। गुप्तड़ी पाताल भुवनेश्वर मार्ग पर टुपई की घाटी से एक मार्ग चिटगल गाँव को दूसरा मार्ग जीबल को जाता है , यहीं से उधाणेश्वर की पहाड़ी शुरु होती है।यहां तक पहुंचनें का कोई मार्ग नहीं है। लगभग दो किलोमीटर की चढ़ाई कटिली झाड़ियों को फादकर पार करनी पड़ती है। सुन्दर सोभायमान चोटी पर पहुंचकर खुले आकाश के नीचें ऊधाण के दर्शन होते है।ऊंचाई पर स्थित होनें के कारण यहां से चारों ओर का वातावरण बड़ा ही मनोरम लगता है। यहां पहुचकर आत्मा दिव्य लोक का अनुभव करती है। इस दुर्गम स्थल के बारे में किवदंती है। कि यहां अदृश्य रुप से सिद्धयोगी जन साधनारत है। जिनके दर्शन किसी सौभाग्यशाली बिरलें मनुष्य को ही होतें है। कहा जाता है कि वर्षों पूर्व चिटगल गाँव की एक महिला यहां के जगंल में घास काटने गयी उसके साथ में उसका छोटा बच्चा भी पिछे पिछे चल पड़ा वियावान जगंल में माँ और बेटे दोनों बिछुड़ गये घर पहुंचकर महिला ने रोते बिलखते अपने परिजन व गाँव वालों को बच्चे के बिछड़ने की ब्यथा बताई काफी ढूढ़ खोज के बाद भी बच्चें का पता नहीं चला थकहार कर उदास बैठै ग्रामीणों ने समझ लिया कि किसी जगंली जानवर ने बालक को अपना निवाला बना लिया होगा। एक के बाद एक दिन ब्यतीत होनें के बाद ग्रामीणों ने जगंल में पुनः खोज प्रारम्भ की तो भरी दोपहरी में उपरोक्त शिव पिण्ड़ी के पास बालक रोता मिला परिजनों व ग्रामीणों की खुशी का ठिकाना नही रहा उन्हें अपनी आखों पर विश्वास नहीं हुआ अचम्भित परिजन व गाँव वाले यह नहीं समझ पा रहे थे। आखिर वह कौन सी शक्ति थी जिसके बल पर खूखांर जंगली जानवरों से घिरे भयावह जंगल में बालक जीवित बच गया।बाद में जब उस छोटे बच्चे से पूछा गया। कि वह इस जगंल में कैसै रहा तो उसने भोलेपन अदांज में बताया कि यहां पर मुझे एक बाबाजी यहां पर खीर खिलाते थे मेरे साथ खेलते थे इस प्रकार अनेक प्रकार की रहस्य भरी बातें बतानें के पश्चात् लोगों का हृदय बाबा उधाणेश्वर के प्रति श्रद्वा से भर आया आस्था, श्रद्वा, व भक्ति का सगंम ऊधाणेश्वर का इतिहास अनजान है।इस स्थान पर शिव पिण्ड़ी कैसै प्रकट हुई या कहा से आयी यह सब अज्ञात है।

पुराणों में यहां के पर्वत दारूगिरी के नाम से प्रसिद्ध है।यदि उधाणेश्वर तक मार्ग बन जाये व इस स्थान को तीर्थाटन के रूप में विकसित किया जाए तो यह स्थान आध्यात्म की महान् धरोहर बनकर ऊभर सकता है। ऊधाणेश्वर की निचली पहाड़ी पर शिव के अशांवतार सैम देवता का प्राचीन मंदिर है यहां स्वंयभू पिण्ड़ी के रूप में सैम देवता की पूजा प्राचीन काल से होती आयी है*इसी के समीपस्त पहाड़ी पर इस गांव की मुख्य देवी गुस्याणी देवी है। इनके पिता हीरामणी दादा वशिष्ठ व परदादा व्यास जी थे। कहा जाता है कि जब गंगोली क्षेत्र में राजाओं का राज था उस दौर में गुस्याणी का जन्म हुआ। राज कर की झंझावत में बालपन में ही गंगोलीहाट-जजुट पैदल मार्ग पर मणकोट के पत्थर में इन्हें जोरदार तरीके से पटका गया। मणकोट के पत्थर पर पछेटी गयी इस देवी के प्रतीक चिन्ह आज भी उस पत्थर पर देखा जा सकता है मान्यता है कि पत्थर पर पछेटी जाने के बाद गुस्याणी अदृश्य हो गयी। प्रतीक पत्थर पर शेष रह गया और बाद में समूचे क्षेत्र में हाहाकार मच गया। महाकालिका के आंचल में हुई इस अन्याय भरी अकाल अबोध मौत को शायद महाकाली भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और गंगावली घाटी त्राहिमाम हो उठी। बाद में इन्हीं देवी की कृपा से क्षेत्र में आयी विपदाएं शांत हुई और इन्हें देवी के रूप में पूजा जाने लगा। इस विषय पर बहुत लम्बी दंत कथा है जिसे स्थानीय लोगों के मुंह से सुना जा सकता है।

कहा गया है। जैसै सतियों में माता पार्वती श्रेष्ठ़ है,देवताओं में विष्णु,सरोवरों में समुद्र,नदियों में गंगा,योगियों में याज्ञवल्क्य,भक्तों में नारद,शिलाओं में वैष्णवी शालग्रामशिला,वनों में वदरीवन,धेनुओं में कामधेनु,मनुष्यों में विप्र,विप्रों में ज्ञानदाता,स्त्रियों में पतिव्रता,प्रियों में पुत्र,पदार्थों में सुवर्ण ,मुनियों में शुकदेव,सर्वज्ञों में व्यास देव ,देशो में भारत,मनुष्यों में राजा,देवताओं में इन्द्र ,वसुओं में कुबेर,पुरियों में कैलाशपुरी,अप्सराओं में1 रम्भा,गन्धर्वो में तुम्बरू,क्षेत्रों में केदार,व पर्वतों में हिमालय,हिमालय में गंगावली व गंगावली में चिटगल श्रेष्ठ़ है

गौरतलब है,कि जनपद पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट तहसील के अंतर्गत भेरंग पट्टी क्षेत्र में स्थित चिटगल गांव अपनी अलौकिक छटाओं के लिए जितना प्रसिद्व है ,उससे ज्यादा कहीं आध्यात्मिक समृद्वि के लिए प्रसिद्व है। गंगावली घाटियों की अलौकिक रागनियों में चिटगल का मधुर संगीत व गीत बसा हुआ है।सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार में गंगावली के इस गांव का गौरवशाली इतिहास रहा है। महर्षि पाराशर गोत्र के ब्राह्मणों के अलावा क्षत्रिय आदि अन्य जातियां यहां निवास करती हैं लोक देवताओं की विरासत की अनेकों गाथाएं इस भूमि से जुड़ी हुई हैं। सैम देवता की स्वयंभू पिण्डी के दर्शन का सौभाग्य भी लोगों को यही आकर मिलता है। सैम देवता उत्तराखण्ड के प्रसिद्व लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं, लेकिन स्थानीय श्रद्वालु जन यहां सैम देवता को साक्षात शिव के रूप में पूजते हैं यूं तो सैम देवता के अनेकों मंदिर हिमालयी भूभाग में मौजूद हैं जिनमें बौराणी क्षेत्र जो बेरीनाग के अन्तर्गत आता है, स्थित सैम मंदिर व जनपद अल्मोड़ा में जागेश्वर धाम के निकट स्थित झाकर सैम मन्दिर एवं जनपद नैनीताल के बेतालघाट क्षेत्र में सैम देवता के अनेक मंदिर खासे प्रसिद्व हैं। अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत, डीडीहाट आदि तमाम क्षेत्रों में श्री सैम देवता ईष्ट देवता के रूप में पूजित हैं।

सैम देवता के साथ हरज्यू की पूजा भी होती है। झाकर का सैम दरबार सदियों से पूज्यनीय रहा है। द्वादश ज्योतिर्लिंग जागेश्वर धाम के निकट होने के कारण श्रद्वालुओं की आवाजाही यहां पर लगी रहती है। पुराणों के अनुसार यह स्थान माता शती के वियोग में भगवान शिव की तपस्या का केन्द्र भी रहा है जिस कारण उत्तराखण्ड के सैम मन्दिरों में झाकर का सैम मंदिर संभवतः सर्वाधिक प्रसिद्व है। तीर्थाटन एवं पर्यटन की दृष्टि से भी इस स्थान का अपना विशेष महत्व है।

गंगावाली घाटी के चिटगल गांव में स्थित सैम मंदिर की महिमा स्थानीय लोगों तक ही सीमित है।लेकिन यहां साक्षात् रुप से भगवान शिवजी की सैम देवता के रुप में पूजा होती है। क्षेत्र के प्रवासी जन फुर्सत में दूरदराज क्षेत्रों से यहां पधारकर अपने ईष्ट देवता को पूजते हैं। देवदार, बुरांश, काफल, बाज के वनों के मध्य स्थित सैम देवता का यह दरबार आस्था का अखण्ड स्तम्भ है। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि इस देव दरबार में जो भी भक्त अपने आराधना के श्रद्वा पुष्प इन्हें सच्चे मन से अर्पित करता है वह सहज में ही शान्ति का अनुभव करता है। मंदिर के एक ओर सामने पहाड़ी पर श्री महाकाली दरबार व शैल शिखर की पहाड़ियां दृष्टिगोचर होती हैं पास में उधाण का शिवालय टुपई के बियावान वन तो दूसरी ओर पाताल भुवनेश्वर की पहाड़ियां हैं।

चिटगल गांव जिसे चिटगल धाम भी कहा जाता है, के चारो ओर नैसर्गिक सौन्दर्य की भरमार है। गुप्तड़ी क्षेत्र से चिटगल आने वाले मार्ग पर चीड़, देवदार, बाज, बुरांश, काफल, उतीस आदि का घना वन क्षेत्र है। गुप्तड़ी क्षेत्र को पुराणों ने गुप्त क्षेत्र कहा है। माना जाता है कि इन्हीं क्षेत्रों में महाभारत काल के महाप्रतापी योद्वा बर्बरीक ने तपस्या की।टुवई नामक स्थान से एक रास्ता सीधे पाताल भुवनेश्वर तो दूसरा रास्ता चिटगल को आता है। हालांकि अब इस गांव तक पहुंचने के लिए दशाईथल से होते हुए मोटर मार्ग बन गया है। हाल के कुछ वर्षों तक गुप्तड़ी से टुपई होते हुए चिटगल पैदल पहुंच जाता था। इस गांव से आगे अग्रौन, पाली, पोखरी, तामानौली तथा रामगंगा के किनारे स्थित गांवों तक पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। जीप, टैक्सियां व छोटे वाहनों का मार्ग सुलभ होने से यात्रा का कष्ट कम जरूर हुआ है किन्तु यात्रा पथ की स्थितियां सरकारी उदासीनता के चलते मौत का मुहाना बनी हुई है। गांव के आसपास के अन्य गांव जजुट, उपराड़ा, खरीक, फुरसिल आदि भी सड़क मार्ग से जुड़े तो जरूर मगर मार्गों की हालत ज्यादा सही नही है।

इस गांव को बसाने का श्रेय दक्षिण भारत से यहां पधारे दिनकर राव पन्त को जाता है। बाद में वंश विस्तार के साथ श्री कालेश्वर के पुत्र कालशिला, पिपलेत आदि अनेको क्षेत्रों में बसते चले गये।/// @रमाकान्त पन्त////

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